Home
← पिछला
अगला →

१५०

तस्मिस्तीर्थे च संप्लाव्य कायं संयतमानसः।

* श्रीवामनपुराण *

[ अध्याय ३५

मनको नियन्त्रित करनेवाला मनुष्य उस तीर्थमें

परं पदमवाप्नोति यस्मान्नावर्तते पुनः॥ १९ | शरीरको धोकर (प्रक्षालित कर) उस परम पदको

ततो गच्छेत विप्रेन्द्रास्तीर्थ त्रैलोक्यविश्रुतम्‌।

लोका यत्रोद्धृताः सर्वे विष्णुना प्रभविष्णुना॥ २०

लोकोद्धारं समासाद्य तीर्थस्मरणतत्परः।

स्त्रात्वा तीर्थवरे तस्मिन्‌ ल्लोकान्‌ पश्यति शाश्वतान्‌॥ २९

यत्र विष्णु: स्थितो नित्यं शिवो देव: सनातन: ।

तौ देवौ प्रणिपातेन प्रसाद्य मुक्तिमाप्नुयात्‌॥ २२

श्रीतीर्थं तु ततो गच्छेत शालग्राममनुत्तमम्‌।

तत्र स्रातस्य सांनिध्यं सदा देवी प्रयच्छति ॥ २३

कपिलाहृदमासाद्य तीर्थं त्रैलोक्यविश्रुतम्‌।

तत्र स्रात्वाऽर्चयित्वा च दैवतानि पितृंस्तथा॥ २४

कपिलानां सहस्रस्य फलं विन्दति मानवः।

तत्र स्थितं महादेवं कापिलं वपुरास्थितम्‌॥ २५

दृष्टा मुक्तिमवाप्नोति ऋषिभिः पूजितं शिवम्‌।

सूर्यतीर्थं समासाद्य स्त्रात्वा नियतमानसः ॥ २६

अभित पिन्‌ देवानुपवासपरायणः।

सूर्यलोकं च गच्छति ॥ २७

सहस्रकिरणं देवं भानुं त्रैलोक्यविश्रुतम्‌।

दृष्टा मुक्तिमवाप्नोति नरो ज्ञानसमन्वितः॥ २८

भवानीवनमासाद्य तीर्थसेवी यथाक्रमम्‌।

तत्राभिषेकं कुर्वाणो गोसहस्रफलं लभेत्‌॥ २९

पितामहस्य पिबतो ह्यमृतं पूर्वमेव हि।

उद्रारात्‌ सुरभिर्जाता सा च पातालमाश्रिता॥ ३०

तस्याः सुरभयो जाताः तनया लोकमातरः ।

ताभिस्तत्सकलं व्याप्तं पातालं सुनिरन्तरम्‌॥ ३९

पितामहस्य यजतो

आहूता ब्रह्मणा ताश्च विभ्रान्ता विवरेण हि॥ ३२

प्राप्त करता है, जहाँसे उसे पुनः परावर्तित नहीं होना

पड़ता। विप्रवरो ! उसके बाद तीनों लोकॉमें विख्यात

लोकोद्धार नामके तीर्थमें जाना चाहिये, जहाँ सर्वसमर्थ

विष्णुने समस्त लोकोंका उद्धार किया धा। तीर्थका

स्मरण करनेमें तत्पर मनुष्य लोकोद्धार नामके तीर्थमें

जाकर उसमें खान करनेसे शाश्वत लोकोंका दर्शन प्राप्त

करता है। वहाँ विष्णु एवं सनातनदेव शिव -ये दोनों

ही स्थित हैं। उन दोनों देवोंकों प्रणामद्वारा प्रसन्‍न कर

फिर मुक्तिका फल प्राप्त करे। तदनन्तर अनुत्तम

शालग्राम एवं श्रोतीर्थमें जाना चाहिये। वहाँ शान

करनेवार्लोको भगवती (लक्ष्मी) अपने निकट निवास

प्रदान करती हैं॥ १९--२३॥

फिर जैलोक्यप्रसिद्ध कपिलाहद नामक तीर्थम

जाकर उसमें खान करनेके पश्चात्‌ देवता तथा पितरोंकी

पूजा करनेसे मनुष्यकों सहस्न कपिला गायोंके दानका

फल प्राप्त होता है। वापर स्थित ऋषियोंसे पूजित

कापिल शरीरधारी महादेव शिवका दर्शन करनेसे

मुक्तिकी प्राप्ति होती है। स्थिर अन्तःकरणवाला एवं

उपवास-परायण व्यक्ति सूर्यतीर्थं जाकर खान करनेके

बाद पितरोंका अर्चन करनेसे अग्निष्टोम यज्ञका फल

प्राप्त करता है एवं सूर्यलोककों जाता है॥ २४--२७॥

तीनों लोकॉमें विख्यात हजारों किरणोंवाले सूर्यदेव

भगवान्‌का दर्शन करनेसे मनुष्य ज्ञानसे युक्त होकर

मुक्तिको प्राप्त करता है। तीर्थसेवन करनेवाला मनुष्य

क्रमानुसार भवानीवनमें जाकर वहाँ ( भवानीका) अभिषेक

करनेसे सहस्नत गोदानका फल प्राप्त करता है। प्राचीन

कालमें अमृत-पान करते हुए ब्रह्माके उद्रार (डकार)-

से सुरभिकी उत्पत्ति हुई और वह पाताल लोकमें चली

गयी। उस सुरभिसे लोकमाताएँ (सुरभिको पुत्रियाँ)

(गार्य) उत्पन्न हुईं। उनसे समस्त पाताल लोक व्याप्त

हो गया॥ २८--३१॥

पितामहके यज्ञ करते समय दक्षिणाके लिये लायी

एवं ब्रह्माके द्वारा बुलायी ये गायें विवरके कारण

← पिछला
अगला →