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१६० ] [- मत्स्य पुराण

उसी भाँति वह पितु तीर्थ है जहाँ पर गोदावरी नदी है जो सहस्र

लिंगों से संयुत सर्वान्तर जलावहा है ।५७। वह महपि जामदग्न्य का

तीथ है जो अत्युत्तम दै और क्रम से समायात हुआ है । प्रतीक के भय

से भिन्न है जहाँ पर गोदावरीनदी है ।५८। वह तीर्था हव्य और

क्यों का है जो अप्सरो युग की संज्ञा वाला है । यह श्राद्ध-अग्नि कार्य

और दानों के देने में सैकड़ों करोड़ अधिक फल देने वाला है ।५६।

उसी भाँति सहस्र लिंग उत्तम राघवेश्वर--प्रुण्य. शालिनी सेन्द्रफे ना

नदी है जिस स्थल पर प्राचीन कालमें इन्द्र पतित हो गया था । इन्द्रने

नभुचि का निहनन करके फिर घोर तपण्चर्था की थी जिसके प्रभाव से

उसने स्वर्ग को प्राप्त किया था । वहाँ पर मानतवों के द्वारा दिया हुआ

श्राद्ध अनन्त फल का प्रदान करने वाला हुआ करता है ।६०-६१।

पुष्कर नाम वाला तीर्भोहे और उसी तरह से शालग्राम तीर्थ है । साम

पान तीर्थ भी परम बिख्यात तीथ है जहाँ पर वेश्वानर का आलय

है । एक सारस्वत नाम वाला ती है तथा वहीं पर कौशिकी और

चन्द्रिका नामों वाली भी दो नदियाँहैँ जो कि महान तीथ हैं ।६२-६३

वेदर्भावाथ वैरा च पयोष्णी प्राड मखापरा ।

कावेरी चोत्तरापुण्या तथाजालन्ध रोगिरिः ।६४

एतेषु श्राद्धतीर्थेषु श्चाद्धमानन्त्यमश्चते ।

लोहदण्डं तथा तीर्थ चित्रकूटस्तथैव च ।६५

विन्ध्ययोगश्च ग ज्गायास्तथा नदीतटं शुनम्‌ ।

कुन्जाम्रन्तु तथा तीर्थ उर्वशी पुलिनंतथ। ।६६

संसारमोचनं तों तथैव ऋणमोचनम्‌ ।

एतेषु पितृतीर्थेषु श्रा द्धमानन्त्यमश्न.ते ।६७

अट्टहासं तथा तीर्थ गौतमेश्वपमेव च ।

तथा वशिष्ठं तीथंन्तु हारितं तु ततः परम्‌ ।६5

बरह्मावतं कुशावतं हयतीर्थ तथं व च ।

पिण्डार कञ्च विख्यातं शङ्कोद्‌धारं तथैव च ।६&

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