२५६ ] | अह्वा|ण्ड पुराण
“»विचित्रार्थ वद्दौदायंशुणगां पीय जातिभिः ।
स्व॑ज्ञस्यैव ते वाणी श्रूयतेऽतिमनोहरा ॥३
इन्द्रौ वहिनयंमो घातो वर्णो वा धनाधिपः;
ईशानस्तपनो ब्रह्मा कायु: सोमो ग्रुरुगु ह: ।\४
एषामन्यतमः प्रायो मवान्भंविंतुमहेँति ।
अनुभावेन जातिस्ते हृदि शंकां तनोति मे ॥।५
मायावी भगवान्विष्णुः चयते पुरुषोत्तम: ।
को वा त्वं वपुषानेन ब्रहि मां समुपागल. ।॥।६
अथ वा जगतां नाथ: सर्वज्ञः परमेश्वरः ।
परभाह्मात्मसंभत्तिरात्मारामः सनातनः ।।3
। श्री वसिष्ठ जी ने कहा --हे भूपाल ! मंतिमानों में परम श्रेष्ठ राम
से अब .इस प्रकार से कहा गया था तो फिर उसने मन से निरूपण करके
बहुत ही विस्मित होते हुए उससे कहा था ।१। राम ने कहा--है महान् भाग
बाले ! आप मुझे यह बतलाइए कि आप कौन हैं? आप कोई प्राकृत पुरुष
त्रो हैं नहीं ।आपका शरीर तो अनुभाव से इन्द्र के ही समान लक्षित हो
है ।२। विचित्र अर्थ राले पदों की उदोरता-गुणों की गम्भीरतां की
जातियों से आपकी वाणी सर्वज् की ही अधिक मनोहर सुनाई दै रही है
4३ आप था तो इन्द्र हँ---अंग्निदेव हैं->यम-घाता-बरुण' अथवा कुवेर हैं ।
आप या तो ईशान है-तपन-ब्रह्मा-बायु-सोम-गृरु और या गुह हैं ।४ इन
“ऊपर बताये हुओं में से ही आप कोई से भी एक हो सकते हैं--यही बहुधा
प्रतीत होता है आपके अनुभाव कुछ ऐसे ही हैं कि मेरे हृदय” में आपकी
जाति बड़ी भारी शंका उत्पन्न कर रही है ।५। भगवन् विष्णु बहुत अंधिक
मायावी हैं--ऐसा पुरुषोत्तम प्रभु कं चिषय सें श्रवण किया जाता है। आप
वास्तव में कौत हैं जो कि इस झूरी र-को धारण करके यहाँ समागत हुए हैं-
यह आप मुझे स्पथ्टलया बतलाने की कृपा करें। अथवा समस्त भवनों के
स्वांमी-सेब कुछ के जाता साक्षात् परमेश्वर हैं जो परमात्मा ही आत्मा
की उत्पत्ति वाले सनातन अंत्मरम हैं च - ` ।
स्कच्छंदचारी भगयवाशिछय: सवे जगन्मयः ।
वपुषानेन संयुक्तो भबान्मचितुमहँति ।३८