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मेंनाने कहा--जगदम्बे ! महेश्वरि !
आपने बड़ी कृपा की, जो मेरे सामने प्रकट
हुईं । अम्बिके ! आपकी बड़ी झोभा हो रही
है। छिये! आप सम्पूर्ण शक्तियोमें
आद्याराक्ति तथा तीनों ल्लोकॉकी जननी हैं।
देवि ! आप भगवान् शिवको सदा ही प्रिय
हैं तथा सप्पूर्ण देखताओंसे प्रशंसित पराक्षक्ति
हैं। महेश्वरि ! आप कृपा करें और इसी
रूपसे मेरे ध्यानमें स्थित हो जायै । साथ ही
प्रेरी पुत्रीके अनुरूप प्रत्यक्ष दर्शनीय रूप
रारण करें।
ब्रह्माजी कहते हैं--नारद ! पर्वत्त-पत्री
मेनाकी यह त्त सुनकर अत्यन्त प्रसन्न हुई
झिवादेवीने उस गिरिप्रियाकों इस प्रकार
जत्तर दिया।
देवी बओोलीं--मेना | तुमने पहले
तत्पस्तापूर्वक मेरी खड़ी सेवा की थी । उस
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पुत्री हो जावै और देवताओंका हित-साघन
करे ।' तब मैंने 'तथास्तु' कहकर तुरं सादर
यह चर दे दिया और मैं अपने भ्रामको चली
गयी । गिरिकामिनि ! उस चरके अनुसार
समय पाकर आज मैं तुम्हारी पुत्री हुई हूँ।
आज चैने जो दिव्य रूपका दर्शन कराया है,
इसका उद्य इतना ही है कि तुम्हें मेरे
स्वरूपका स्मरणा हो जाय; अन्यथा मनुष्य-
रूपमे प्रकट होनेपर मेरे विचयं तुम
अनजान ही बनी रहतीं। अश्र तुम दोनों
दम्पति पुत्रीभावसे अथवा विव्यभावसे मेरा
निरन्तर चिन्तन करते हुए सुझमें स्त्रेह रस्त्रो ।
इससे मेरी उत्तम गति प्राप्त होगी । में पृथ्वीपर
अद्भुत लीत्छा करके देखताओंका कार्य सिद्ध
करूँगी। भगवान् हाम्युकी धत्री झोऊँगी
और सज्नोंका संकटसे उद्धार करूँगी।
ऐसा कहक्छर जगन्ाता शिवा चुप हो
समय तुम्हारी भक्तिसे प्रसन्न हो मैं वर देनेके गयीं और उसी क्षण माताके देखते-देखते
लिये तुम्हारे निकट आयी । "चर माँगो' मेरी प्रसन्नतापूर्वक नवजात पुप्नीके रूपये
इस वाणीको सुनकर तुमने जो चर माँगा, परिवर्तित हो गयीं।
चह इस प्रक्तार है--“महादेवि ! आप मेरी
है
पार्वतीका नामकरण और विद्याध्ययन, नारदका हिमवानके यहाँ जाना,
पार्वतीका हाथ देखकर भावी फल बत्ताना, चिन्तित हुए हिमवानको
आश्वासन दे पार्वतीका विवाह शिवजीके साथ करनेको कहना
और उनके संदेहका निवारण करना
ब्रह्माजी कते हैं--नारद ! पेनाके श्याम कान्तिवाल्शी उस परम तेजस्विनी और
सामने महातेजस्विनी कन्या होकर त्यौकिक मनोरम कन्याको देखकर गिरिराज हिमालय
गतिका आश्रय ले वह रोने कमी । उसका अतिक्षय आनन्दे निपसर सचे गये । तदनन्तर
मनोहर रुदन सुनकर घरकी सब स्त्रियाँ हर्षसे सुन्दर घुहूर्तमें मुनियोंके साथ हिमवानने
खित उठीं और जड़े वेगसे असजञतापूर्वक अपनी पुत्रीके काली आदि सुखदायक
कहां आ पहुँचीं। नील कमरू-दलके समान नाम रखे देवी शिवा गिरिराजके भवनप
(अध्याय ६)