परशुराम की प्रतिज्ञा | ष [ २३७
एकविशतिकारं प्रहिःभूश- दुःखपरीतया ।.:
त्रिःसप्तकृत्वो निःक्षत्रां करिष्ये पृथिवीमिमाम् १७३
अतोऽयं वायंमाणोऽपि त्वया पित्रा-निरंतरम् ।
भाविनौऽयेंस्य च बलात्करिष्यत्येव मानद ।\७४ .
सतु राजा महामायो वृद्धानां पयु पासित्ता ।
दत्तात्रेयाद्धरेरंणाल्लन्धबोधो महा मततिः ।॥७५
साक्षादृभक्तो महात्मा च तद्वधे पातकं भवेत् ।
एवमुक्त वा महाराज स भृगुब्रेह्मण:-सुतः ।
यथागतं ययौ विद्रास्भविष्यत्कालपर्यंयातु ।।७६
मुनि तो सर्वदा सत्यवक्ता होते हैं अत: उस महामुनिः का वचने किस
प्रकार से अन्यथा होगा । यहं जापका पुल राम महान वीर्यं वाले उस श्रेष्ठ
नृप को बल पूर्वक मार देगाः। टै महाबाहो ! यह पहिले ही ऐसी प्रतिज्ञा
कर चुकादै। कारण यह है कि वियोग के शोक से संतप्त होकर मेरे ही
समक्ष से अपने वक्षःस्थल को प्रताड़ित किया है ।७१-७२। आपने अपने उर
स्थल को बहुत ही दु:ख से-परीत होकरः:इकक््कीस-बार' प्रेताड़ितःक्रिया है सो
मैं भी इक्कीस बार ही:इस-सम्पूर्ण -भूमण्डल को क्षत्रियों से रहित करूभा
।७३। हे मानद ! इसीलिए पिता. आपके द्वारा यह निरन्तर रोके व पर्
भी भविष्य में हने वाले अर्थं के बलं से ऐसा अवश्य ही करेगा क्योकि ऐसा
ही होनहार है ।७४। यह साक्षात् भक्त ओर भहात्मा है-।-उस्तके वध: करने में
पातक भी होगा । इस रीति. सेःकहकर:हे महाराज-] -उत-अ्रह्माजी के पुत्र
'भृगुमुनि-ने -फिर यह --भी कहा थाकि वह् राजा महान भाग वाला है और
'ब्रुद्धों की :उपासना:करने काला है ।-साक्षात् भगवात्रु हरि के अंश दत्ताजेय
“मुनि से उसमे ज्ञानः प्राप्त. किग्रा :है: और-महती भति से सुसम्पन्त है । ऐसे का
“यध्च करना -भी. महान् पातक: हैं। इतना: ही कहकर, भविष्य में आने वाले
'कालः के:पर्यतःसे: ये: जिद्वात्-भूगु जैसे ही आये थे बसे ही वहाँ से. चले गये
ये .॥७५-७६। . . | |