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* परुष्णीतीर्थ, नारसिंहतीर्थ, पैशाचनाशनतीर्थ और शङ्खुहद तीर्थकी महिमा * २३३

समस्त असुरोंको चूर्ण कर डाला। सर्वोत्तम है। उस तीर्थम स्नान करके मनुष्य

इस प्रकार अनेक दैत्योंका संहार करके | भगवान्‌ नृसिंहका पूजन करे तो उसे स्वर्ग,

नरसिंहजी गौतमीके तटपर गये, जो उन्हीके | मर्त्यलोक और पातालका भी कोई सुख दुर्लभ

चरणकमलोंसे निकली हुई और मन तथा नेत्रोंको | नहीं रहता। बिना श्रद्धा भी जिनका नाम लेनेपर

आनन्द देनेवाली थी। वहाँ दण्डकारण्यका स्वामी | समस्त पापोंका संहार हो जाता है, वे साक्षात्‌

आम्बर्य्य नामक दैत्य रहता था, जो देवताओंके | भगवान्‌ नरसिंह ही जहाँ विराजमान हैं, उस

लिये भी दुर्जय था। उसके पास बहुत बड़ी सेना | तीर्थके सेवनसे प्राप्त होनेबाले फलका कौन वर्णन

थी। भगवान्‌ नृसिंहका उस दैत्यके साथ अत्यन्त | कर सकता है। जैसे नृसिंहजीसे बड़ा कहीं कोई

भयंकर एवं रोमाझकारी युद्ध हुआ। श्रीहरिने | देवता नहीं है, उसी प्रकार नृसिंहतीर्थक समान

गोदावरीके उत्तरतटपर अपने शत्रुका संहार कर | कहीं कोई तीर्थ नहीं है।

डाला। वह स्थान तीनों लोकॉमें नारसिंहतीर्थक | गङ्गाके उत्तर-तटपर पैशाचनाशनतीर्थ विख्यात

नामसे विख्यात हुआ। वहाँ किया हुआ स्रान- | है। नारद! वहाँ पूर्वकालमें एक ब्राह्मण पिशाच-

2 योनिसे मुक्त हुआ था। सुयज्ञके पुत्र अजीगर्ति

एक बिख्यात ब्राह्मण थे। एक समय अकाल

पड़नेपर कुटुम्ब-पालनके भारसे दुःखी एवं पीडित

होकर उन्होंने अपने मझले पुत्र शुनःशेपको बधके

लिये क्षत्रियके हाथ बेच दिया। उसके बदलेमें

अजीगर्तिको बहुत धन मिला था। शुनःशेप

ब्रह्मवेत्ताओंमें श्रेष्ठ था। ऐसे पुत्रको भी अजीगर्तिनि

धनके लोभसे बेच डाला। आपत्तिमें पड़नेपर

| विद्धान्‌ पुरुष भी कौन-सा पाप नहीं कर डालता।

। समय आनेपर अजीगर्तिकी मृत्यु हुई और वे

| नरकमें डाले गये । क्योकि इस लोकमें पूर्वजन्मके

किये हुए पार्पोका भोगके विना क्षय नहीं होता ।

अनेक पाप-योनियोंमें पड़नेके पश्चात्‌ अजीगर्ति

८ भयंकर आकारवाले पिशाच हुए। उन्हें निर्जल

दान आदि पुण्यकार्य समस्त पापरूपी ग्रहोंका | ओर निर्जन वनमें सूखे काठपर रहना पड़ता था।

शमन, वृद्धावस्था और मृत्युका निवारण तथा | गर्मी जहाँ दावानल कैल जाता, बही यमराजके

सबको रक्षा करनेवाला है । जैसे सम्पूर्ण देवताओंमें | दूत उस प्रेतको डाल देते थे। कन्या, पुत्र, पृथ्वी,

कोई भी भगवान्‌ विष्णुके समान नहीं है, उसी | अश्च तथा गौ्ओंका विक्रय करनेवाले मनुष्य

प्रकार समस्त तीर्थोमिं नारसिंहतीर्थं अनुपम और | महाप्रलय-कालतक नरकसे छुटकारा नहीं पाते * ।

* कन्यापुत्रमहौवाजिगवां विक्रयकारिणः | नरकान निवर्तन्ते यावदाभूतसंप्लवम्‌ ॥

(१५०। ९)

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