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देष्णबजण्ड-भूमियाराहलण्ड ]

# पोणतीर्थेका माहारमन्‍्य--गन्धर्व॑पत्नीका उद्धार #

२३५

सन्दर गन्धर्वका बचिष्टजीके श्रापसे राभरपपारको प्राप्त होकर पुनः उपते शक होना

"न्क्व

ऋषियोंनि पूछा--यज़जी ! वह राक्षस कौन था

जिसने भगवान्‌ विप्शके भक्त मात्मा ब्राह्मणकों कष्ट

पहुँचाया !

सूतजी बोझे--आह्षणो ! पूर्यकालकी यात है ।

भरीरक्षे्रमे जो वेकुप्टके सश्श भगवान्‌ विष्णुकां विधार

मन्दिर है; उसमें वधिष्ट ओर अत्रि आदि मइतेजस्वी मोक्षके

डिये वैष्णव भर्त अभय प्रदान रमेव देवेश्वर औविष्णु-

भगबानकी उपासना करते थे । एक दिन यीरवाहुका कटवान्‌

पुत्र सुम्दर नामाह गन्धर्वं खऊड़ों स्वियोंफे साथ उस क्षेत्र-

में आया और एक जछाशयमें नन होकर नग्न हुई

युषतियोके साथ आनन्दपूर्यक्र जल-प्रेद्टार फरने लगा | उसी

समय मध्याह-सम्ब्या फरनेके छिये मुनिषर वशि भन्व

महर्पियोंके साथ शीरन्नमन्दिरते यादर निकके और उस

जखाशयपर गये । उन ऋषिफेंफो देखकर ये छमी रमणो

मते कातर हो अफ़ोअपने कपड़े ओद्कर बैठ गवौ; परंतु

साहसी सुन्दर र्यो-कात्य खड़ा रदा । पह देख बरिष्ठ

मुनिनें कुपित होकर उस निर्जज्को श्राप दिया--सुन्दर

गन्धर्य | शूने हमलोगोंकों देखकर मी लज्जावश्ष दलन धारण

नहीं किया इसलिये तू शीषर राक्षस शे जा।

अर्पि वश्चिए्फे ऐसा ऋश्नेपर उसद्धी कियो हाथ जोड़-

कर उनके उरणोंमें गिर पी और भकभायसे भिनीतवित्त

दोकर बोटीं--'मगयन्‌ ! आप छव धमोके शता हैं, साक्षात्‌

अल्लाजीके पुत्र हैं। दयाशिन्धो ! पति ही नारियोछा उत्तम

भूपण कदृटाता टै । परतिट्वीन नारी सो पूर्ेबाखी होकर मी

संसारमें विधवा ही वाइलाती है | ऐसी नारियोंका जन्म व्यर्थ

खमर्ञा जाता है। अतः मुने ! हमारे पिके ऊपर आप प्रसन्न

हों। तण्यद्शों मुनिर्यो्े एक अपराध श्चप्ा कर देना

चाहिये । दयासिस्थों ! सुन्दर आपका भिष्व है, इसे

क्षमा करें |?

सुन्दरकी ल्लियोंके इस प्रकार प्रार्थना करनेपर वशिप्रजी-

में फट्टा--“सुन्दरियों ! मेरा वचन कभी व्यर्थ नहीं होगा

इससे छूटनेकां उपाय बतछाता हूँ; उसे भ्रद्धापू 'क खनो ।

यह राक्षसके समान आफासथाछा न्दर आजसे सोलह वर्षोके

बाद इच्छानुसार धुमता-प्रामता सर्ववापदारी बेझ्ुटाइल-

पर पहुँच आयगा और वहाँ ८छतीर्थपर जायगा । देयाप्ननाओों!

अक्रतीर्थपर मद्ायोगी मुनियर प्मननाभजी रहते हैं। उन्हें

सा जनेफे लिये जव यह आमन करेगा; तव ब्राह्मणकी रक्षा

के छिये मगवान्‌ पिष्णुका भेजा हुआ उत्तम चतर. इसका

मस्तक काट डालेगा। रादनन्तर झापसे मुक्त होकर यह तुम्हारा

पति सुन्दर अपने स्वरूपकों प्रात होकर पुनः स्वर्गणोकम्म

अस्त जायगा ।›

आओरद्ननाथमे भक्ति करनेवाठे वशिक्क ऐसा कहकर

झीप्र दी अपने आंभमकों छाले गवे । तदनन्तर याक्षसहूपमें

परिणते हुआ मयानक आंकारबाहा सुन्दर इधर-ठघर

धूमता हुआ गिरिभे४ बेड्डटाचछपर गया और चक्रतीर्थपर भी

जा पहुँचा । इस भ्रमणमें ही उसके सोल यपं पूरे हो गये

ये । तदनन्तर चकतीर्थ निषासी पंच्चननाभको खा जानेके लि

उसने यड़े देगसे आक्रमण क्रिया । मुनने भगवान्‌ विष्णुकौ

स्येति फ्री और भगवान्‌ने राश्षसद्वारा पीड़ित पद्मनामझी रक्षाके

किये चको भेजा । इस प्रकार षने आकर उस राक्षसका

मस्तक कार डाटा । तद यह राशस शरीर छोड़कर दिव्य देह

धारण दरके ब्रिमानरर जा बैठा | उस समय उसके ऊपर पूर्य.

की रर्षा दो रही थी। उसने हाथ जोड़कर खुदशनको प्रणाम

किया । फिर उन द्िजभेप्ठ पप्ननाभकछझो भी प्रणाम कर्के

उनही आशा केकर सुन्दर गन्धर्व स्वर्गको चला गया ।

ब्राक्षणो | ख प्रकार मैने उस राक्षसक्री उदन्तिका

बृत्तात्त और ऋछतीर्थका पापनादाक मादारम्य आपरोगेति

अतव्यया । इसे रूनकर मनुप्य खव प्पे मुक्त हो जाता दै ।

~क > 99

घोणतीर्थका माहात्म्य--गन्धर्वपत्नीका उद्धार

ब्रा्तणो ! अप प्रोणतीर्थक्म मादात्म्य सुनो | मः ङतस्न, अ्रणइत्पा एरनेवाका, परख्रीमाधी, स्वामीते रोद

प्रापोर्मे तपर, चाष्डालकुछमें सपते नीच, भूर, कुछफा करनेवाद्म, ठग, समी, पिवृष्रती, देशताओंसे विनुख+

नाथ करनेवाला, फ्षकारफ) दानपूत्य। सत्कर्मरड्ठेत। पशु. आस्मग्रशंसा करनेयाला। शड, अगोग्य प्के लिये ब्यय

शती, परोरी, चुगछलोर, अधत्पयादी, एखण्डी, मित्रद्ोदी, करेखा, धर्मम बाधा डालनेबास्य/ अनुकूछतामें अन्तर

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