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पद्मनाभ मुनि चछतीर्थके किनारे निवास करने खगे । कुछ
कारके पश्चात् वहाँ एक भवद्गर राक्षस आया । बह
क्षुघाते पीत दोर नारायणपरावण परष्ननाभ मुनि
अपना ग्रास अनाना चांदता था। उसने बड़े येगते ब्राह्मणको
पक छिया। तव उन्होंने शरणागतोंके रक्षक दयासखागर
अक्रपाति भीनारायणड़ों पुकारा और बार-बार ऐसा कदा-
व्रभों ! रक्षा कीजिये; रक्षा दीजिये, है वेशूटरेश ! हे दवातिन्धो |
ह शरणागतशलक ! हे पुरुषसिंध ! मैं राक्षसके वशं
आ गया हूँ। मेरी रक्षा वीजिये। हे लध्मीकान्त ! हे दुःखदारी
हरि ]६ विष्णुदेष ! है यकुण्ठनाथ ! दे गण्डप्वन ] आपने
प्राइके चंगुलमे फते हुए गज़राजकी जिस रकार रक्षा की थी
उसी प्रकार राक्षतफे आक््मणसे दे हुए. मुझ मक्तदी रक्षा
दीजिये । दै दामोदर ! दे जगन्नाथ | है दिरष्यकरशिपु देत्य-
छा मर्दन करनेवाले उूर्सित ! प्रह्मदजी ही माति मैं भी राक्षस-
के द्वारा अयन्त पीड़ित हूँ; अतः उन्हींके समान भाप मेरी
भी रक्ता कीजिये |" 3
पद्मनाभे इस प्रकार स्तृति करनेपर अपने मक्तके ऊपर
भय आया हुआ जानरूर दया निधान चक्रपाणिने भक्तकी रक्षा-
के लिये अपने चको भेजा | भगवान् वह चक्र बड़े वेगसे
चक्रतीर्थफे तरपर आगरा । वह अनन्त सूर्यके * समान तेजत्वी
तथा अनन्त अग्निके समान ज्याल्गमालाओंसे प्रस्थित था ।
उसमे बड़े जोरकी गदगद दो ररी थी । यड़े बड़े असुरते-
कासंशर करनेवाले उस सुदर्शन *क्रकों देखकर राक्षस
भागा, परंठु सुदर्शनने सदसा पाच पहुँचकर उसझ मस्तक
# दारणं यज सर्वेशां रत्युंजयमुमापतिम #
[ संक्षिप्त स्कन्वपुराण
काट डाटा । राक्षसफ्रों पृष्यीपर पड़ा हुआ देख विप्रवर
पद्मनाभ मुनि अत्यस्त प्रवन्न हो सुदर्शन चक्रड्ी स्वति
करने च्छो |
पद्मनाभ बोले--रम्पूर्ण विके संरक्षणकी दीक्षा केन.
यालछे धिष्ठुचक्र ! आपको नमस्कार दे । आप भगवान्
नारायनके कर कमलो विभूषित करनेवाले है । आप मुदमें
असुरो फा संकर करनेमें कुरू हैं| अतिराय मर्जना करनेवाले
सुदर्शन ! आप भक्तोकी पीड़ाफ्म विनाश करते हैं । आपको
नमस्कार है। मैं भयसे उद्र हूँ | आप सय प्रकारके पाप-
तापसे मेरी रक्षा कीजिये । खामिन् | सुदर्शन ! प्रभो !
संकटते छुटकारा चाहनेयाले सम्पूर्ण जगोशूका दित केके
लिये आप सदा इस चक्रतीर्यमें निवास कर ।
पद्मनाभ ब्राह्मणके ऐसा कनेर भगवान् विष्णुके चक्रे
अपने सन्य उन्हें तृततसे करते हुए. कडा-- पद्मनाभ ! यह
चक्रतीर्थं अत्यन्त उत्तम और परम कवित्र है। मैं सम्पूर्ण
होड़ोंका टित करनेके लिये सदा १ तीर्थम निवास कग |
आपके कपर दुरात्मा राक्षसे इरा आये हुए सङ्कटका
विचार करके भगवान् विष्णुस प्रेरेत होकर मैं शभ यहाँ
आ पहुँचा । आपको पीड़ा देनेवाले उस अधम राक्षसफों मैंने
मार डाला और आपकी उसके भरसे रक्षा की; बर्योकि आप
मगवानके भक्त हैं । विषधर ! ख्य पापका दरण करनेयाले
इस परम पवित्र चक्रतीर्थमें सब्र छोगोंड्री रक्षाके सि मैं
सदा निवास करंगा । मेरे निवास करनेंसे यह तीर्थ चक्तीर्थ-
के नामे प्रस्िंद्र दोगा और को मतुष्य इख मोश्वदावक
चक्रतीर्थमें स्नान करेंगे, उन खबरे पुत्र; पौत्र आदि वनेन
निष्पाप होफर भगपान् विष्णुके परम धामफो प्राप्त होंगे ।'
यो ककर भगवान् विष्णुफे चक्रने प्दग्मनाम सुन तथा अन्य
आक्षणोंके देखते-देखते सटखा उस चकसरोवरम प्रवेश
किया । शौनकादे महर्पियों! इस प्रकार भने दुमदोगेसि
चती माहात्म्यका वर्णन किया | भो नतुध्य एफाप्रचित्त
होकर इस अध्यायको पता या छनः है उसे ऋछतीर्थमें
स्नान फरनेका उत्तम ल प्रात होता है ।
~क