रेष # संक्षिप्त शित्रपुराण ५
5322.00020000000/ 20020 00 06000 222002 000 000 000 000 0000 00000 0000 000 00 0000 00000 00% ॥ ७ # ७ ७ # ७ ###
बढ़ने लगीं -- ठीक उसी तरह, जैसे त्रहापुत्रोमें श्रेष्ठ ज्ञानबान् प्रभो ! आप सर्वज्ञ
ब्रषकि समयमे गङ्गाजीकी जलराशि और हैं और कृपापूर्वक दूसरोंके उपकारमें लगे
झरद-कतुके शुक्रपक्षमें चाँदनी बढ़ती है। रहते हैं। मेरी पुप्रीकी जन्मकुण्डल्डीमें जो
सुशीकृता आदि गुणोंसे संयुक्त तथा गुण-दोष हो, उसे बताइये। मेरी बेटी
बन्धुजनोंकी प्यारी उप्र कन्याको कुदुम्बके किसकी सौभाम्यवती प्रिय पत्नी होगी।
लोग अपने कुलके अनुरूप पार्यत्ती नामसे ब्रह्माजी कहते हैं--मुनिश्चेष्ठ ! तुम
पुकारने लगे । माताने कालिकाको 'उ मा' जातत्ीतमें कुझल और कौतुकी तो हो ही,
(अरी } तपस्या मत कर) कहकर तप
करनेसे रोका था । मुने ! इसलिये यह सुन्दर
मुखवाली गिरिराजनन्दिनी आगे चलकर
त्मकं उमाके नामसे विख्यात हो गयी।
नारद ! तदनन्तर जब विद्याके उपदेशका
समय आया, तब शिवादेवी अपने चित्तको
एकाग्र करके बड़ी प्रसच्रताके साथ श्रेष्ठ
गुरुसे ल्िछा पढ़ने त्वग । पूर्वजन्पकी सारी
विद्या उन्हें उसी तरह प्राप्त हो गयीं, जैसे
हारतक़ालमें हंसोंकी पोत शप आप
स्वर्ग्गाके तटपर पहुँच जाती है और रात्रिमें
अपना प्रकाझ स्वतः महौषधियोंको प्राप्त हो
जाता हैं। मुने ! इस प्रकार मैंने शिलाकी
किसी एक लीस्याका ही वर्णन किया है।
अब अन्य लीज़ाका वर्णान करूँगा, सुनो ।
एक समयकी यात्त है तुम भगवान्
हिवकी प्रेरणासे प्रसन्नतापूर्वक हिमाचलके
घर गये । मुने ! तुम शिवतत्त्वके ज्ञाता ओर =
उनकी कीत््रके जानकारोंमें शष्ठ हो। नारद बोले--झैकूराज और मेना !
नारद ! गिरिराज हिमालयने तुम्हें घरपर आपकी यह पुत्री चदद्धमाकी आदिकलाके
आया देख प्रणाम करके तुम्हारी पूजा की समान बड़ी है। समस्त शुभ लक्षण इसके
और अपनी पुत्रीकों बुलाकर उससे तुम्हारे अज्ञॉंकी शोभा बढ़ाते हैं। यह अपने पतिके
चरणोमें प्रणाम करवाया। सुनीश्चर ! फिर लिये अत्यन्त सुखदायिनी होगी और माता
स्वयं हो तुम्हें नमस्कार करके हिमाचलने पिताकी मी कीर्ति खढ़ायेगी। संसारकी
अपने सौभाग्यकी सराहना की और अत्यन्त समस्त नारियों यह परम साध्वी और
मस्तक झुका हाथ जोड़कर तुमसे का । स्वजनोंको सदा पदान् आनन्द देनेयात्ली
हिमालय बोले--हे मुने नारद ! हे होगी। गिरिराज! तुष्हारी पुत्रीके हाथमें