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२४६ # श्री लिंग पुराण #

नहीं है क्योकि ध्यान ही ज्ञान का साधन है।

जब समरस में स्थित योगी ध्यान यज्ञ में रत होता है

तब शिव उसके समीप में ही होते हैं। विज्ञानियों को

शौच तथा प्रायश्चित का विधान नहीं है। ब्रहम विद्या के

जानने वाले विद्या से ही शुद्ध होते हैं।

परमानन्द स्वरूप विशुद्ध अक्षर शिव, निष्कल

सर्वगत, योगी जनों के हृदय में स्थित रहता है । वाह्य

ओर आभ्यन्तर भेद से लिंग दो प्रकार के कहे है -

स्थूल वाहा और सूक्ष्म आभ्यन्तर हैं। कर्म यज्ञ में रत

स्थूल लिंग को पूजने में रत रहते हैं। पर आध्यात्मिक

सूक्ष्म लिंग जिसको प्रत्यक्ष नहीं वह मूढ़ ही है। तत्वार्थ

के विचार वाले कोई कहते हैं कि सकल ब्रह्माण्ड शिव

मय हैं। जैसे एक ही आकाश घट मठ भेद से नाना

प्रकार का भासता है,एक ही सूर्य जल के घटों में पृथक

पृथक भासता है वैसे ही एक शिव सर्वत्र पृथक पृथक

भासता है। क!ई सर्वज्ञ शिव को हृदय में ही पूजते हैं,

कोई शिवलिंग में, कोई अग्नि में ही पूजते हैं। जिस

प्रकार के शिव हैं उसी प्रकार की देवी हैं और जिस

प्रकार की देवी हैं वैसे ही शिव हैं। इससे दोनों का अभेद

बुद्धि से ही पूजन करना चाहिए। जो धर्मरत भक्ति तथा

योग के द्वारा योगेश्वर शिव को सब मूर्तियों में जानकर

सर्वत्र पूजते हैं वे ही देवी सहित पुराण पुरुष शिव को

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