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* प्रकृतिखण्ड + २७९

११ ०७७१४१००००७०१४१४०४०१४४४४१११४११११४१४११४१४११४१४१४११४१५१११४११११५१४११११४४१४१५४११

ओर“ व' कारका अर्थं है दाता। जो मङ्गलदाता है, | मूलप्रकृति ईश्वरोको महती देवी कहा गया है।

वही शिवे कहा गया है। जो विश्वके मनुष्योंका | उस महादेवीके द्वारा पूजित देवताका नाम महादेव

सदा "शं ' अर्थात्‌ कल्याण करते हैं, वे ही शंकर | है। विश्वमे स्थित जितने महान्‌ है, उन सबके वे

कहे गये हैँ । कल्याणका तात्पर्य यहाँ मोक्षसे है । | ईश्वर हैं। इसलिये मनीषौ पुरुष इन्हें महे वर्‌ कहते

ब्रह्मा आदि देवता तथा वेदवादी मुनि-ये महान्‌ | हैं।* ब्रह्मपुत्र नारद ! तुम धन्य हो, जिसके गुरु

कहे गये है । उन महान्‌ पुरुषोंके जो देवता हैं, | श्रीकृष्णभक्ति प्रदान करनेवाले साक्षात्‌ महेश्वर है ।

उन्हें महादेव कहते है । सम्पूर्ण विश्वमे पूजित | फिर तुम मुझसे क्यौ पूछ रहे हो ! (अध्याय ५६)

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दुर्गाजीके सोलह नामोंकी व्याख्या, दुर्गाकी उत्पत्ति तथा उनके पूजनकी

परम्पराका संक्षिप्त वर्णन

नारदजी बोले--ब्रह्मन्‌! मैंने अत्यन्त अद्भुत | शब्द दैत्य, महाविघ्न, भवबन्धन, कर्म, शोक,

सम्पूर्ण उपाख्यानोंकों सुना। अब दुर्गाजीके उत्तम | दुःख, नरक, यमदण्ड, जन्म, महान्‌ भवं तथा

उपाख्यानको सुनना चाहता हूँ। वेदकी कौथुमी | अत्यन्त रोगके अर्थमें आता है तथा 'आ' शब्द

शाखामें जो दुर्गा, नारायणी, ईशाना, विष्णुमाया, |'हन्ता' का वाचक है। जो देवी इन दैत्य और

शिवा, सती, नित्या, सत्या, भगवती, सर्वाणी, | महाविघ्र आदिका हनन करतौ है, उसे "दुर्गा

सर्वमङ्गला, अम्बिका, वैष्णवी, गौरी, पार्वती ओर | कहा गया है । यह दुर्गा यश, तेज, रूप और

सनातनी- ये सोलह नाम बताये गये हैं, वे सबके | गुणोंमें नारायणके समान है तथा नारायणकौ ही

लिये कल्याणदायक है । वेदवेत्ताओंमें शर नारायण ! | शक्ति है। इसलिये " नारायणी" कही गयी है।

इन सोलह नामोंका जो उत्तम अर्थ है, वह सबको | ईशानाका पदच्छेद इस प्रकार है->ईशान+आ।

अभीष्ट है । उसमें सर्वसम्मत वेदोक्त अर्थको आप | ' ईशान ' शब्द सम्पूर्ण सिद्धियोंके अर्थमें प्रयुक्त

बताइये । पहले किसने दुर्गाजीकौ पूजा कौ है ? | होता है ओर 'आ' शब्द दाताका वाचक है । जो

फिर दूसरी, तीसरी और चौथी बार किन-किन | सम्पूर्ण सिद्धियोंकों देनेवाली है, वह देवौ 'ईशाना'

लोगोने उनका सर्वत्र पूजन किया है? कही गयो है । पूर्वकालमें सृष्टिक समय परमात्मा

श्रीनारायणने कहा-- देवर्षे ! भगवान्‌ विष्णुने | विष्णुने मायाकी सृष्टि कौ थी और अपनी उस

वेदम इन सोलह नामोंका अर्थ किया है, तुम उसे | मायाद्रारा सम्पूर्णं विश्वको मोहित किया। बह

जानते हो तो भी मुझसे पुनः पूछते हो । अच्छा, | मायादेवी विष्णुकी ही शक्ति है, इसलिये ' विष्णुमाया!

मैं आगमोकि अनुसार उन नामोंका अर्थं कहता हं । कही गयी है । 'शिवा' शब्दकां पदच्छेद यों

दुर्गा शब्दका पदच्छेद यों है--दुर्गगआ। "दुर्ग ' है-शिव+आ। * शिव ' शब्द शिव एवं कल्याण-

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*शिरिति मड़लाथ॑ च वकारो टातृवाचकः । मङ्गलानां प्रदाता यः स शिव: परिकीर्तित: ॥

नराणां संततं विश्वे शं कल्याणं करौति यः । कल्याणं मोक्षक्चनं स एवं शंकर: स्मृतेः ॥

ब्रह्मादीनां सुराणां च मुनीनां वेदवादिनाम्‌ । तेषां च महतां देवो महादेव: प्रकीर्तितः ॥

महतौ पूजिता विश्वे मूलप्रकृतिरीश्वरौ । तस्या देवः पूजितश्च महादेवः स च स्मृतः ॥

विश्वस्थानां च सर्वेषां महतामीश्वर: स्वयम्‌ । महेश्वरं च तेनेम॑ प्रवदन्ति मनीपिणः॥

(प्रकृतिखण्ड ५६। ६३--६७)

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