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ॐ श्रीपरपात्पने नमः

प्रतिसर्गपर्व

(प्रथम खण्ड)

( यास्तवमों भ्रविष्यपुराणके भविष्य नामकी सार्थका प्रतिसर्गपर्वरमें ही चरितार्थ हुईं दीखती है । वंशालुकीतन सभी

पुराणोंका मुख्य लक्षण है-- 'बंशानुकीरन॑ बेति पुराणौ पञलक्षणम्‌ ।' यह विषय सभी पुराणोमें प्राप्त होता है। भविष्यपुएणमें

तो कई स्थानोंपर आया है, पर अतिसर्गपवनी आधुनिक इतिहासका मार्ग प्रशस्त कर दिया है। अरबी-फारसी और जदि

इतिहासकों तवारीख (तारीख) कहते हैं। सभी पटनाओका उल्लेख तारीख (तिधि, वर्ष) क्रमपूर्वक हुआ है। अंग्रेजीमें भी

इतिहासका सही नाम क्रानिकिल्स' है । भारतीय दृष्टिमें कालका प्रवाह अनन्त है । एक सृष्टिक याद दूसरी सृष्टिमें

कल्प-महाकत्प लगे हुए हैं--जैसे-- हय बसत मोहि सुत खग ईसा । बीते कलप सात अरु बीसा ॥' इसलिये किसी एक

कल्पक ही वर्णन एक पुराणमें सम्भव होता है । प्रतिसर्गपर्त अपनेकों वाराह-कल्पमें वैवस्वत मन्वत्तरका ही इतिहास-निर्देशक

बतला रहा है और बड़ी सावधानीते सत्ययुग, ज्रेतायुग आदिके दीर्घायु एजाओके राज्य आदिका उल्लेख कर रहा है । यादें

कलियुगी रजाओके वैशका भी वर्णन करता है । प्रस्तुत विषरणमें नामॉकी विशेष शुद्धिके लिये वाल्मीकीय रामायण,

विष्णुपुराण, वायुपुराण, अह्माष्डपुराण, श्रीमद्धागवतके साथ अप्य मन्थो एवं ऐतिहासिक पौराणिक कोषोंसे भी सहायता ली गयी

है ।--सम्पादक 3

सत्ययुगके राजवंशका वर्णन

जारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्‌ ।

देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत्‌ ॥

भगवान्‌ नर-नारायणके अवतारस्वरूप भगवान्‌ श्रीकृष्ण

एवं उनके सख नरश्रेष्ठ अर्जुन, उनकी कीतर ओको प्रकट

करनेवाली भगवती सरस्वती तथा उनके चरित्रोंका वर्णन

करनेवाले येदव्यासको नमस्कार कर अष्टादशा पुराण्य, ग्रमायण

और महाभारत आदि जय नामसे व्यपदिष्ट प्र्योंका वाचन

करना चाहिये।'

महामुनि आचार्य शौनकजीने पूछा--मुने ! ब्रह्माकी

आयुके उत्तरार्धमें भविष्य नामके महाकल्पमें प्रथम वर्षके

तीसरे दिन वैवस्वत नामक मन्वत्तरके अट्ठाईसवें सत्ययुगमें

कौन-कौन राजा हुए ? आप उनके चरित्र तथा राज्यकरलका

वर्णन करें ।

सूतजी बोले--श्रेतवाराहकल्पमें ब्रह्मे वर्षके

तैसे दिन स्तवे मुहूर्तके प्रारम्भ होनेपर महाराज वैवस्वत यनु

उत्पन्न हुए। उन्होंने सरयू नदीके तटपर दिव्य सौ वर्षोतक

तपस्या की और उनकी छींकसे उनके पुत्ररूपमें राजा इक्ष्वाकुका

जन्म हुआ।

ब्रह्मके यरदानसे उन्होंने दिव्य नकी प्राप्ति की । राजा

इकषयाकु भगवान्‌ विष्णुके परम भक्त थे। उन्हींकी कृपासे

उन्होंने छत्तीस हजार वर्षोतक राज्य किया । उनके पुत्र विकुक्षि

हुए, अपने पिता इक्ष्वाकुसे सौ वर्ष कम अर्थात्‌ पैंतीस हजार

नौ सौ वर्षोतक राज्य करके वे स्वर्ग पधार गये। उनके पुत्र

रिपुत्रय हुए और उन्होंने भी पिता विकुक्षिसे सौ वर्ष कम

अर्थात वैतस हजार आठ सौ बर्षोतक राज्य किया | उनके पुत्र

ककुत्स्थ हुए। उन्होंने पैतीस हजार सात स्मौ वर्षोतक राज्य

किया। उनके पुत्र अनेना हुए, उन्होने चैतीस हजार छः सौ

वर्षोतक राज्य किया। अनेनाके पुत्र पृथु नामसे विख्यात हुए।

उन्होंने पैंतीस हजार पाँच सौ वर्षोत्क राज्य किया और उनके

पुत्र विष्वगश् हुए, उन्होंने पैतीस हजार चार सौ वर्षोतक राज्य

किया। उनके पुत्र अद्रि हुए, उन्होंने पैतीस हजार तीन सौ

वर्षोतक राज्य किया! उनके पुत्र भ्र दृण, जिन्होंने पैतीस

हजार दो सौ कौतक राज्य किया । राजा भद्राशचके पुत्र युवनाश्च

हुए, उन्होंने पैतीस हजार एक सौ वर्षोतक राज्य किया । उनके

पुत्र श्रावस्त हुए। (इन्होंने श्रावस्ती नायकी नगरी बसायी

थौ ।) उस समय सत्पपुगमें समग्र भारतवर्षे धर्म अपने तप,

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