# आऔशिवपुराण-माहाध््य * ११
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बह दुष्ट पिशाच्च अपने पार्पोका फल भोग विन्ध्यपर्वतपर गये द । फिर तो उस कथाकों
रहा है) तुम उसके आगे यन्नूर्वक सुननेके लोभसे बहुत-से देलर्षि भी रोघ ही
सलिवपुराणकी उस दिव्य कथाका प्रवधन वहाँ जा पहुँचे। आदरपूर्वक शिवपुराण
करो, जो परम पुण्यमयी तथा समस्त सुननेके लिये आये छोगॉक़ा उस
पापोंका नाश करनेवाली है / स्िचपुरणकी यर्जतपर बड़ा अखुत कल्याणकारी
कथाका रवण सबसे उत्कृष्ट पुण्यकर्म है। समाज जुट गया। फिर तुप्बुकने उस
उसे उसकी हृदय शोध ही सपस्त पापोंसे पिश्नान्को पाशोंसे बाँधकर आसनपर
इद्ध. छे जायगा और बह प्रेतयोनिका बिठाथा और ह्ाथपें वीणा छेकर गौरी-
परित्याग कर देगा । उस दुर्गतिसे मुक्त होनेपर न्दः
दिन्दुग नामक पिशाच्तको पेगी आज़ासे
विभानपर चिटठाकर भरम भगान् दिके
समीप ले आओ ।'
सूतजी कहते रै-- शौनकः { महेश्वरी
उभाके इस प्रकार आदेश देनेपर गन्धर्वराज
तुम्बुरु मन-ही-मन बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने
अपने भाग्यंकी सराहना की । तत्पश्चात् उस
था । ठोढ़ी श्हृत बड़ी थी । वह कभी हैँसता
पाहात्प्यसहित शिबपुराणकी
पहावत्ठी तुम्युरने उस अत्यन्त भयंकर कथाका उन्होंने स्पष्ट वर्णन किख । सातं
संहिताओसहित शिवपुराणका आदरपूर्वक
तुम्बुरुने शिवपुराणकी कथा ब्राँलनेका श्रवा करके थे सभी श्रोता पूर्णतः कृतार्थं
निश्चय करके महोत्सवयुक्त स्थान और हो गय्े। उस परम पुण्यमय जिवपुराणको
मण्डप आदिकी रचना की \ इतनेमें ही सुनकर उस पिशाचने अपने सारे पापोंकों
सम्पूर्ण सतरोकरोे बड़े वेगसे यह फलार छो घोकत उम्त फैज्ञाक्षिक हावीउको त्याग दिया ।
गया कि देत्री पार्वतीकी आज्ञासे एक फिर तो शीघ्र ही उसका रूप दिव्य हो गया ।
उद्धार करनेके ग्डेदयसे दिच- अङ्गकान्ति गौरवर्णव्की हो गयी। दारीरपर
पुराणकी उत्तम कथा सुनानेके छिये तुम्बुरु श्वेत वस तथा सब भ्रकारके पुरुषोचित