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* बैवस्वत मनुके वंशजोंका वर्णन « ११

विवस्वान्‌ (सूर्य) -का जन्म हुआ। विश्वकर्माकी | तेजस्वी पुत्र उत्पन्न किया। वह अपने बढ़े भाई

पुत्री संज्ञा विवस्वानूकौ पनी हुई । उसके गर्भसे | मनुके ही समान धा, इसलिये सावर्णं मनुके नामसे

सूर्यने तीन संताने उत्पन्न कीं, जिनमें एक कन्या प्रसिद्ध हुआ । छाया - संज्ञासे जो दूसरा पुत्र हुआ,

और दो पुत्र थे। सबसे पहले प्रजापति श्राद्धदेव, | उसकी शनैश्चरके नामसे प्रसिद्धि हुई । यम धर्मयजके

जिन्हें वैवस्वत मनु कहते हैं, उत्पन्न हुए। तत्पश्चात्‌ | पदपर प्रतिष्ठित हुए और उन्होंने समस्त प्रजाको

यम और यमुना--ये जुड़वी संताने हुईं। भगवान्‌ | धर्मसे संतुष्ट किया। इस शुभकर्मके कारण उन्हें

सूर्यके तेजस्वौ स्वरूपको देखकर संज्ञा उसे सह | पितरोंका आधिपत्य और लोकपालका पद प्राप्त

न सकी। उसने अपने ही समान वर्णवाली अपनी ¦ हुआ। सावर्ण मनु प्रजापति हुए। अनेवाले साबर्णिक

छाया प्रकट कौ । वह छाया संज्ञा अथवा सवर्णा मन्वन्तरके वे हौ स्वामी होंगे। वे आज भी

नामसे विख्यात हुई। उसको भी संज्ञा हौ | मेरुगिरिके शिखरपर नित्य तपस्या करते हैं। उनके

समझकर सूर्यने उसके गर्भसे अपने ही समान | भाई शनैश्वरने ग्रहकी पदवी पायी।

[ गये न्‍2>

वैवस्वत मनुके वंशजोंका वर्णन

लोमहर्षणजी कहते है ~ वैवस्वत मनुके नौ , बात है, प्रजापति मनु पुत्रकौ इच्छासे मैत्रावरुण-

पुत्र उन्हीकि समान हुए; उनके नाम इस प्रकार | याग कर रहे थे। उस समयतक उन्हें कोई पुत्र

है इक्ष्वाकु, नाभाग, धृष्ट, शर्याति, नरिष्यन्त, | नहीं हुआ था। उस यज्ञमें मनुने मित्रावरुणके

प्रांशु, अरिष्ट, करूष तथा पृषभ्र। एक समयकी | अंशकी आहुति डाली। उसमेंसे दिव्य वस्त्र एवं

गे | नामकी कन्या उत्पन्न हुई। महाराज मनुने उसे

| "इला" कहकर सम्बोधित किया और कहा-

कल्याणी! तुम मेरे पास आओ।' तब इलाने

पुत्रकी इच्छा रखनेवाले प्रजापति मनुसे यह

धर्मयुक्त वचन कहा--' महाराज! मैं मित्रावरुणके

अंशसे उत्पन्न हुई हूँ, अतः पहले उन्हीके पास

जाऊँगी। आप मेरे धर्ममें बाधा न डालिये।' यों

| कहकर वह सुन्दरौ कन्या मित्रावरुणके समीप

गयी और हाथ जोड़कर बोलो--“ भगवन्‌! मैं

आप दोनोंके अंशसे उत्पन्न हुईं हँ । आपलोगोंकी

किस आज्ञाका पालन करूँ? मनुने मुझे अपने

पास बुलाया है।' |

मित्रावरुण बोले सुन्दरी ! तुम्हारे इस धर्म,

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