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अध्याय ४ ]

अनुसर्गके खटा ११

नवमो रुद्रसर्गस्त नव सर्गाः प्रजापतेः ।

पञ्चैते वैकृताः सर्गाः प्राकृतास्ते त्रयः स्मृताः ।

प्राकृतो वैकृतश्चैव कौमारो नवमः स्मृतः ॥ २७

प्राकृता वैकृताश्चैव जगतो मूलदेतबः।

सृजतो ब्रह्मणः सृष्टिमुत्यन्ना ये पयेरिताः ॥ २८

तं तं विकारं च परं पेशो

मायामधिष्ठाय सुजत्यनन्तः।

अव्यक्तरूपी

नवां ' रुद्रसर्ग है -ये ही नौ सगं प्रजापतिसे उत्पन्न हुए हैं ।

इनमें पहलेके तीन " प्राकृत सर्ग' कहे गये हैं। उसके

बादवाले पाँच बैकृत सर्ग ' हैं और नवां जो ' कौमार सर्ग'

है, यह प्राकृत और वैकृत भी है । इस प्रकार सृष्टि - रचनामें

प्रवृत्त हुए ब्रह्माजीसे उत्पन्न हुए जो जगत्‌की उत्पत्तिके

मूलकारण प्राकृत और वैकृत सर्ग हैं, उनका मैंने वर्णन

किया। सबके आत्मरूपसे जाननेयोग्य अध्यक्तस्थरूप

परमेश्वर भगवान्‌ अनन्तदेव अपनी साथाका

आश्रय लेकर प्रेरित होते हुए- से उत- उन बिकारोंकी सृष्टि

सम्पररयभाणो निखिलात्पवेद्यः ॥ २९ | करते हैं ॥ २३-२९ ॥

इति कीनरतिहप्रते सृश्टिवत्राप्रकारेरम तृतीयौ ध्वा; ॥ ३४

इस प्रकार कीकर एरलमे "पषिरिवताकः प्रकार नामक तीसरा अध्याय पूरा हुआ 8 २ ४

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अनुसर्गके स्नष्टा

भैर्राज उकव

नवधा सुष्टिरुत्पन्ना ब्रह्मणोऽव्यक्तजन्मनः।

कथं सा ववृधे सूत एतत्कथय मेऽधुना ॥ ९

सूत उवाच

प्रथमं ब्रह्मणा सूषा मरीच्यादय एव च।

मरीचिगत्रिश्च तथा अद्भिराः पुलहः क्रतुः॥ २

पुलस्त्यश्च महातेजाः प्रचेता भृगुरेव च।

नारदो दशमश्लैव वसिष्ठश्च महामतिः॥ ३

सनकादयो निवृत्ताख्ये ते च धर्मे नियोजिताः ।

प्रवृत्ताख्ये मरीच्याद्या मुक्त्वैकं नारदं मुनिम्‌॥ ४

योऽसौ प्रजापतिस्त्वन्यो दश्चनापाङ्घसम्भवः।

तस्य दौहिन्रवंशेन जगदेतच्चराचरम्‌ ॥ ५

देवाश्च दानवाश्चैव गन्धर्वोरिगपरक्षिणः।

सर्वे दक्षस्य कन्यासु जाताः परमधार्मिका:॥ ६

चतुर्विधानि भूतानि हाचराणि चराणि च।

वृद्धिंगतानि तान्येवमनुसर्गोद्धवानि तु॥ ७

अनुसर्गस्य कर्तारो मरीच्याद्या पहर्थयः।

वसिष्ठान्ता महाभाग ब्रह्मणो मानसोद्धवा:॥ ८

भरद्वाजजी बोले ~ सूतजी ! अन्यक्त जन्मा ब्रह्माजीसे

जो नौ प्रकारकी सृष्टि हुई, उसका विस्तार किस प्रकार

हुआ ? यही इस समय आप हमें बतलाइये ॥ १॥

सूतजी बोले--अहाजीने पहले जिन मरीचि आदि

ऋषियोंको उत्पन्न किया, उनके नाम इस प्रकार हैं-

मरीचि, अत्रि, अद्विरा, पुलह, क्रतु. महातेजस्वौ पुलस्त्य,

प्रचेता, भृगु, नारद और दसवें महाबुद्धिमान्‌ वसिष्ठ है ।

सनक आदि ऋषि निदृत्तिधर्ममें तत्पर हुए और एकमात्र

नारद मुनिकों छोड़कर शेष सभी मरीधि आदि मुनि

प्रवृत्तिधर्ममें नियुक्त हुए॥२--४॥

अश्याजीके दायें अङ्गे उत्पन जो “दक्ष! नामक

दूसरे प्रजापति कहे गये हैं, उनके दौहिज्रोंके वंशसे यह

चराचर जात्‌ व्याप्त है। देव, दानव, गन्धर्व, ठरग (सर्प)

और पक्षी-ये सभी, जो सन-के-सब जड़े धर्मात्मा थे,

दक्षकी कन्याओंसे उत्पन्न हुए। चार प्रकारके चराचर

प्राणो अनुसर्गमें उत्पन्न होकर वृद्धिकों प्रात हुए।

महाभाग! पूर्योक्त मरीचिसे लेकर वसिष्टतक सभी

्रीन्यजोकी मानस संतान हैं। ये सज अनुसगके कु हैं।

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