Home
← पिछला
अगला →

१६८ ऋग्वेद संहिता भाग-१

१२५८. अश्याम ते सुमतिं देवयज्यया क्षयद्वीरस्य तव रुद्र मीढ्वः ।

सुम्नायनिद्धिशो अस्माकमा चरारिष्टवीरा जुहवाम ते हविः ॥३ ॥

है कल्याणकारी रुद्रदेव ! वीरो को आश्रय प्रदान करने वाली आपकी श्रेष्ठ बुद्धि को हम सब अर्जित करें ।

हमारे प्रजाजनों को अपने देव यजन अर्थात्‌ श्रेष्ठ कर्मों द्वारा सुख देते हुए आप हमारे लिए अनुकूलता प्रदान करें ।

हमारे वीर अक्षय बल को प्राप्त करें, हम आपके निमित्त आहुतियाँ समर्पित करें ॥३ ॥

१२५९. त्वेषं वयं रुद्रं यज्ञसाधं वड्ककविमवसे नि हवयामहे ।

आरे अस्मदैव्यं हेव्ठो अस्यतु सुमतिमिद्भयमस्या वृणीमहे ॥४॥

तेजस्विता सम्पन्न यज्ञीय सत्कमों के निर्वाहिक स्फूर्तिवान्‌, ज्ञानवान्‌ रुद्रदेव की हम सभी स्तुति करते हैं । वे

हमें संरक्षण प्रदान को । देव - शक्तियों के क्रोध के भागीदार हम न बन सकें, अपितु हम उनकी अनुकम्पा

को प्राप्त करें ॥४ ॥

१२६०. दिवो वराहमरुषं कपर्दिनं त्वेषं रूपं नमसा नि हवयामहे ।

हस्ते बिभ्रद्धेषजा वार्याणि शर्म वर्म च्छर्दिरस्मभ्यं यंसत्‌ ॥५ ॥

सात्विक आहार ग्रहण करने वाले दीप्ियुक्त सुन्दर रूपवान्‌ जटाधारी वीर का हम सादर आवाहन

करते है । अपने हाथों ये आरोग्य प्रदायक ओषधियों को धारण कर वे दिव्यलोक से अवतरित हों।

हमें मानसिक शान्ति तथा बाहरी रोगों की प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करें । हमारे शरीरो मे समाहित विषों को

बाहर निकालें ॥५ ॥

१२६१. इदं पित्रे मरुतामुच्यते वचः स्वादोः स्वादीयो रुद्राय वर्धनम्‌ ।

रास्वा च नो अभृत मर्तभोजनं त्मने तोकाय तनयाय मृत ॥६ ॥

हम मरूद्गण के पिता रुद्रदेव के लिए यह अति मधुर और कोर्तिवर्धक स्तोत्रगान करते है । हे

अमृतस्वरूप रुद्रदेव ! आप हम सभी के निमित्त उपभोग्य सामग्री प्रदान करें । हमें तथा हमारी सन्तानो को

भी सुखी रखें ॥६ ॥

१२६२. मा नो महान्तमुत मा नो अर्भकं मा न उक्षन्तमुत मा न उक्षितम्‌ ।

मा नो वधीः पितरं मोत मातरं मा नः प्रियास्तन्वो रुद्र रीरिषः ॥७ ॥

हे रुद्रदेव ! हमारे ज्ञान और बल में सम्पन्न वृद्धो को पीड़ित न करें । हमारे छोटे बालकों की हिंसा न करें ।

हमारे बलवान्‌ युवा पुरुषो को हिंसित न करें । हमारी गर्भस्थ सन्तानो को हिंसित न करें और न ही हमारे माता-पिता

को विनष्ट करें । इन सभी हमारे प्रिय जनों के शतेरो को कष्ट न पहुँचाएँ ॥७ ॥

१२६३. मा नस्तोके तनये मा न आयौ मा नो गोषु मा नो अश्वेषु रीरिषः ।

वीरान्मा नो रुद्र भापितो वधीर्हविष्मन्तः सदमित्वा हवामहे ॥८ ॥

हे रुद्रदेव ! हमारी पुत्रपौत्रादि सन्तति, हमारे जीवन को, गौ ओं ओर अश्वो को आघात न पहुँचाएँ । आप

हमारे शवर के विनाश के लिए क्रोधित न हों । हविष्यात्र प्रदान करने के लिए यज्ञस्थल में हम आपका आवाहन

करते हैं ॥८ ॥

१२६४. उप ते स्तोमान्पशुपा इवाकरं रास्वा पितर्मरुतां सुम्नमस्मे ।

भद्रा हि ते सुपतिर्पृत्यत्तमाथा वयमव इत्ते वृणीमहे ॥९ ॥

← पिछला
अगला →