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सेवामें सौंप दो, इससे तुम कृतकृत्य हो ऐसा ही होगा।' मुने ! तब मैं अत्यन्त हर्षित

जाओगे । मैं नारदके साथ जाकर उन्हें तुम्हारे हो वहाँसे उस स्थानको छौटा, जहाँ त्जेकः

घर ले आऊँगा। फिर तुम उन्हींके ल्यि कल्याणे तत्पर रहनेवाद भगवान्‌ द्विव

उत्पन्न हुई अपनी यह पुत्री उनके हाथमें बड़ी उत्सुकतासे मेरी प्रतीक्षा कर रहे थे।

देदो।' नारद ! मेरे लौट आनेपर स्री ओर पुप्रीसहित

ब्रह्माजी कहते है नारद्‌ ! मेरी यह प्रजापति दक्ष भी पूर्णकाम हो गये । वे इतने

बात सुनकर मेरे पुत्र दक्षको बड़ा हर्ष हुआ। संतुष्ट हुए, मानो अमृत पीकर अघा गये हों ।

थे अस्वन्त प्रसन्न होकर *फ्ताजी (अध्याय ९७)

। ॥

ब्रह्माजीसे दक्षकी अनुमति पाकर देवताओं और मुनियोंसहित भगवान्‌ शिवका

दक्षके घर जाना, दक्षद्वारा सबका सत्कार तथा सती और शिवका विवाह

ब्रह्माजी कहते हैं--नारद ! तदनन्तर मै युषभध्वज ! मुझसे दक्षने ऐसी बात कही

हिमालयके कैलास-शिखरपर रहनेवाले है। अतः आप शुभ मुहूर्तमें उनके घर चलिये

परमेश्वर महादेव शिवको लानेके लिये और सतीकों ले आइये |!

प्रसन्नतापूर्वक उनके पास गया और उनसे मुने! मेरी यह जात, सुनकर

इस प्रकार बोला--''बृषभध्वज ! सतीके भक्तबत्सल रुदर त्पैकिक गतिका आश्रय ले

लिये पेरे पुत्र दक्षने जो बात कही है, उसे

सिये और जिस कार्यको ये अपने लिये

असाध्य मानते थे, उसे सिद्ध हुआ ही

समझिये। दक्षने कहा है कि “मैं अपनी पुत्री

भगवान्‌. शिवके ही हाथमें दूँगा; क्योकि

उनके लिये यह उत्पन्न हुई है। शिवके साथ

सतीका विवाह हो यह कार्य तो मुझे स्वतः ही

अभीष्ट है; फिर आपके भी कहनेसे इसका

महत्त्व और अधिक बढ़ गया । मेरी पुत्रीने [< «&

स्वर्य इसी उद्देश्यले भगवान्‌ शिवकी £ है

आराधना की है और इस समय शिवजी भी ५ 2

मुझसे इसीके विषयमे अन्वेषण (पूछत्ताछ) (| ५ ९८ 03

कर रहे हैः इसल्डिये मुझे अपनी कन्या

अवश्य ही भगतान्‌ शिवके हाथमे देनी है। ह. ह%

विधातः ! ये भगवान्‌ दौकर शुभ लश्र ओर #* 40. 5

शुभ मुहूर्तमें यहाँ पधार । उस समय मैं उन्हें (35. कोश क

शिक्षाके तौरपर अपनी यह पुत्री दे दगा ।' --

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