पूर्वभाग-द्वितीय पाद
सलाह कौ । मन्तरियोनि कहा-' यह शत्रु इस समय
हमारे वशे है, अतः इसे मार डालना चाहिये ।
इसके मारे जानेपर यह सारी पृथ्वी आपके अधीन
हो जायगी ।' यह सुनकर खाण्डिक्य उन सबसे
बोले-' निःसंदेह ऐसी ही बात है। इसके मारे
जानेपर यह सारी पृथ्वी अवश्य मेरे अधीन हो
जायगी। परंतु इसे पारलौकिक विजय प्राप्त होगी
और मुझे सम्पूर्णं पृथ्वी । यदि इसे न मारूँ तो
पारलौकिक विजय मेरी होगी और इसे सारी
पृथ्वी मिलेगी । पारलौकिक विजय अनन्तकालके
लिये होती है तथा पृथ्वीकी जीत थोड़े ही दिन
रहती है । इसलिये मैं तो इसे मारूँगा नहीं। यह
जो कुछ पूछेगा उसे बतलाऊँगा।' ऐसा निश्चय
करके खाण्डिक्य जनक अपने शत्रुके समीप गये
और इस प्रकार बोले-- तुम्हें जो कुछ पूछना हो
वह सब पूछ लो, मैं बताऊँगा।' नारदजी!
खाण्डिक्यके ऐसा कहनेपर केशिध्वजने होमसम्बन्धी
गायके मारे जानेका सब वृत्तान्त ठीक-ठीक बता
दिया और उसके लिये कोई व्रतरूप प्रायश्चित्त
पूछा! खाण्डिक्यने भी वह सम्पूर्ण प्रायश्चित्त
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जिसका कि उसके लिये विधान था, केशिध्वजको
विधिपूर्वक बता दिया। सब बातें जान लेनेपर
महात्मा खाण्डिक्यकी आज्ञा ले केशिध्वजने
है प यज्ञभूमिको प्रस्थान किया और वहाँ पहुँचकर
| | क्रमश: प्रायश्चित्तका सारा कार्य पूर्ण किया । फिर
धीरे-धीरे यज्ञ समाप्त होनेपर राजाने अवभृथस्नान
किया। तत्पश्चात् कृतकार्य होकर राजा केशिध्वजने
मन-ही-मन सोचा--' मैंने सम्पूर्ण ऋत्विजोंका
७ | | पूजन तथा सब सदरस्योका सम्मान किया। साथ
कक | हो याचकोको भी उनकी मनोवाज्छित वस्तु दीं।
"छ | इस लोकके अनुसार जो कुछ कर्तव्य था वह सब
मैंने पूरा किया। तथापि न जाने क्यों मेरे मनमें
ऐसा अनुभव होता है कि मेरा कोई कर्तव्य अधूरा
रह गया है।' इस प्रकार सोचते-सोचते राजाके
ध्यानमें यह बात आयी कि मैंने अभीतक
खाण्डिक्यजीको गुरुदक्षिणा नहीं दी है। नारदजी !
तब वे रथपर बैठकर फिर उसी दुर्गम बनमें गये,
जहाँ खाण्डिक्य रहते थे। खाण्डिक्यने पुनः उन्हें
आते देख हथियार उठा लिया। यह देख राजा
केशिध्वजने कहा--' खाण्डिक्यजी ! क्रोध न कीजिये।
मैं आपका अहित करनेके लिये नहीं, गुरुदक्षिणा
देनेके लिये आया हूँ। आपके उपदेशके अनुसार
मैंने अपना यज्ञ भलीभाँति पूरा कर लिया है।
अतः अब मैं आपको गुरुदक्षिणा देना चाहता हूँ।
आपकी जो इच्छा हो, माँग लीजिये।'
उनके ऐसा कहनेपर खाण्डिक्यने पुनः अपने
मन्त्रियोंसे सलाह ली और कहा-'यह मुझे
गुरुदक्षिणा देना चाहता है, मैं इससे क्या मग?
मन्त्रियोंने कहा--' आप इससे सम्पूर्ण राज्य माँग
लौजिये।' तब राजा खाण्डिक्यने उन मन्त्रियोंसे
हँसकर का~ पृथ्वीका राज्य तो थोड़े ही
समयतक रहनेवाला है, उसे मेरे-जैसे लोग कैसे
माँग सकते हैं? आपका कथन भी ठीक ही है,