१६८ * संक्षिप्त ब्रह्मपुराण *
है। आप गुरुवालोंके भी गुरु और बड़ोंके भी बड़े | लौकिकी, वैदिकौ तथा अन्यान्य विद्याएँ भी दीं।
हैं। मैं छोटा बच्चा हूँ। मुझपर कृपा कीजिये । | जब साक्षात् भगवान् शंकर हो प्रसन्न हो गये थे,
जगन्मय ! आपको नमस्कार है। सुरेश्वर ! मैं तब क्या बाकी रह जाता। बह महाविद्या पाकर
विद्याके लिये आपकी शरणमें आया हूँ। मुझे | शुक्र अपने पिता ओर गुरुके पास गये। अपनी
आपके स्वरूपा कुछ भी ज्ञान नहीं है । आप | विद्यासे पूजित होकर वे दैत्योंके गुरु हुए। किसी
स्वयं ही कृपा करके मेरी ओर देखें। लोकसाक्षी (4 कुछ कारणवश वृहस्पतिके पुत्र कचने
शिब ! आपको नमस्कार है। शुक्राचार्यसे मृतसंजीवनी विद्या प्राप्त कौ । कचसे
शुक्रके इस प्रकार स्तुति करनेपर भगवान् | बृहस्पतिने और बृहस्पतिसे पृथक्-पृथक् देवताओंने
शंकर प्रसन्न होकर बोले-' वत्स ¦ तुम्हारा | उस विद्याकों ग्रहण किया। गौतमीके उत्तरतटपर,
कल्याण हो। तुम इच्छानुसार वर माँगो, भले ही | जहाँ भगवान् महेश्वरकी आराधना करके शुक्रने
वह देवताओंके लिये भी दुर्लभ क्यों न हो।' | विद्या पायी थी, वह स्थान शुक्रतीर्थं कहलाता है।
उदारबुद्धि कविने भी हाथ जोड़कर कहा--“नाथ! | मृत्यु -संजीवनीतीर्थं भी उसका नाम है। वह
ब्रह्मा आदि देवताओं तथा ऋषियोंको भी जो । आयु और आरोग्यकी वृद्धि करनेवाला है । वहा
विद्या नहीं प्राप्त हुई हो, उसके लिये मैं याचना | स्नान, दान आदि जो कुछ भी शुभ कर्म किया
करता हं । आप ही मेरे गुरु और देवता है।' | जाता है, वह अक्षय पुण्य देनेवाला होता है।
शुक्रतीर्थके बाद इन्द्रतीर्थं है । वह ब्रह्महत्याका
विनाश करनेवाला है। उसके स्मरणपात्रसे पाप-
राशि तथा क्लेशसमुदायका नाश हो जाता है।
नारद ! पूर्वकालकौ बात है ! जब इन्द्रे वृत्रामुरका
वध किया, तब ब्रह्महत्या उनके पीछे लग गयी ।
उसे देखकर इन्द्रकों बड़ा भय हुआ। वे इधर-उधर
| भागने लगे। किंतु जहाँ-जहाँ वे जाते, ब्रह्महत्या
उनका पीछा नहीं छोड़ती थी। तब वे एक बहुत
बड़े सरोवरमें प्रयेश करके कमलकी नालमें छिप
गये और उसमें तन्तुकी भाँति होकर रहने लगे।
ब्रह्महत्या भी उस सरोवरके तटपर एक हजार दिव्य
वर्षोतक बैठी रही । इस बीचमे सब देवता बिना
इन्द्रके हो गये थे। उन्होंने आपसमें सलाह को,
== । | किस प्रकार इन्द्र प्रकट हों? उस समय मैंने
ब्रह्माजी कहते ह - शुक्रने जब इस प्रकार | देबताओंसे कहा--ब्रह्महत्यांके लिये दूसरा स्थान
रर्थना की, तब देवश्रेष्ठ भगवान् शिवने उन्हें | दे दिया जाय और इन्द्रको शुद्ध करनेके लिये
मृतसंजीवनी विद्या प्रदाने कौ, जिसका ज्ञान | गोदावरी नदीमें नहलाया जाय । उसमें स्नान करनेसे
देवताओंको भी नहीं धा। साथ ही उन्होंने इद्र पुनः शुद्ध हो जायेगे।'