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१६८ > संध मार्कण्डेयपुराण *

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कुपुत्रका आश्रव लेनेत्राल। मेरा यह अधम जन्म अपने दोषसे उत्पन्न हुआ है, जो अपनी दुष्टतासे

केवल नरकमें ले जानेवाला है. उत्तम गति हमारे लिये दुःखदायी और बनन्‍्धुजनोंके लिये

प्राप्ति करानेब्राला तहों।' | शोककारक हो गया है?

इस प्रकार जत्वन्त ष्ट पुत्रके दुराचारोंसे। गर्गने कहा--मुनिश्रेष्ठ ! तुम्हारा यह पुत्र रे्ती

ऋतबाकू गुनिक। हदय जलने लगा। उन्होंने | नक्षत्रके अन्तिम चरणमें उत्पन्न हुआ है, अतः

भरपमुनिसे इसका कारण पूछा दृषित समयमें जन्म ग्रहण करनेके कारण यह

2. र ५ स्खं॒सुम्हारे लिये दुःखदायों हो गया हैं।

(9 । ऋतचाक्‌ घोले--मेंरे एक ही पृत्र था तो भी

| ५:9 / /| | रेवती नक्षत्रके अन्तिम भागमें उत्पन्न होनेके कारण

इसमें ऐसी दुष्टता आ गयी; इसलिये रेवतीक

शीघ्र ही पतन हो जाय।

मुनिके इस प्रकार शाप देते हो रेवती नक्षरे

आकाशसे गिरा। सारा संसार चकितचित्त होकर

ग्रह दृश्य देख रहा था। बह नक्षत्र कुमुदगिरिके

दारो ओर गिर पड़ा! चहाँके वन, गुफाएँ तथा

झरने आदि सहसा उद्भासित हो उठछे। रेथर्ती

नक्षत्रके गिरनेसे कुमुदगिरिका नाम रैवर्तक पर्वत

| हौ गया। उस नक्षत्रकीं जो कान्ति थी, वह

कमलमण्डित सरोवरके रूपमें प्रकट हुईं। उम्र

समय उस सरोबरसे एक अत्यन्त सुन्दरी कन्याका

- =. ध 22 | ग्रादुभाव हुआ। वह रेव्तौकी कान्तिसे प्रकट हुई

ऋनवाक्‌ त्रोले-- महानुने ! पूर्वकालमें उत्तम थी, इसलिये प्रभुच मुनिने उसे देष्ठकर उसका

व्रतकं पालन करते हुए मैंने सतर तेर्दोका विधिपूर्वक्त | नाम रेनतौ रख दिया। वह उनके आश्रमके पाष

अध्ययन जिया और उन्हें रुपात करके वैदिक | हो प्रकट हुई धौ. इसलिये वे हो पिताकी भाँति

डिधिके अनु्तार स्तोक साथ विवाह किया: फिर | उम्रका पालन-पोषण करने लगे। जय कन्य

स्त्रीकों साथ रखकर वेदों और स्मृत्रियोमें बताये. बौवनावस्थामें पदार्पण कर चुकी, तब प्रमुज मुम

हुए सभी कर्तव्य कर्भेच्छि अनुष्ठान किया । आजतक इभः लिये योग्य वर पूछनेके बिचारसे अग्निशालाएं

क्रिसि भी क्रियाके अनुष्ठाने न्वूनता नहीं आने | गये । उनके प्रश्न करनेपर अग्रिदेवने उत्तर दिया-“इह

०]

दी। मुने! 'पुम्‌' नामके परकसे डस्ते हुए मैंने | कन्याके स्वामी राजा हुर्गम होंगे, जो महाबलो

गर्भाघानकी निभिरै पुत्रोत्पत्तिका उद्देश्य रखकर | महापराक्रमी, प्रियवक्ता और धर्मवत्सल हैं ।'

स्त्रीके साथ मनागपं किया है, ऋनोपधोणक्रे इसी वोचम सृगयाके प्रसक्घमे राजा दुर्गि

लवे नहीं। धह सब होनेधर भो ऐसे कु५त्धका | मुनिके आश्रमपर आ पहुँचे। वे प्रियश्नतके वशे

जम क्यों हुआ? क्या «ह मेरे दोषले अथवा | उत्पन्न अत्यन्त अलखानू और पराक्रमी थे।'उनदे

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