घं० १ सू० ११४ १६७
१२५२. स्युपना वाच उदियर्ति वहिः स्तवानो रेभ उषसो विभातीः।
अद्या तदुच्छ गृणते मघोन्यस्मे आयुर्नि दिदीहि प्रजाबत् ॥१७ ॥
ज्ञान सम्पत्र साधक दीप्तिमान् उषाओं की प्रार्थना करते हुए शोधनीय तथा मनोरम स्तोत्रों का उच्चारण
करते हैं । हे ऐश्वर्यशाली उषे ! स्तुति करने वालों के हृदय में आप ज्ञान रूपी प्रकाश भर दें । हमारे लिए सुसन्तति
से युक्त जीवन और अन्नादि प्रदान करें ॥१७ ॥
१२५३. या गोपतीरुषसः सर्ववीरा व्युच्छन्ति दाशुषे मर्त्याय । `
वायोरिव सूनृतानामुदर्के ता अश्वदा अश्नवत्सोमसुत्वा ॥१८ ॥
हविदाता मनुष्यो के लिए ये उषाएँ सम्पूर्ण शक्तियों से युक्त, कान्तिमान् रश्मियों से सम्पन्न होकर प्रकाशमान
हो रही हैं । वायु के तुल्य तीव्र गतिशौल स्तोत्र रूपौ श्रेष्ठ वाणियो से प्रशंसित होकर जीवनी शक्ति प्रदान करने
वाली ये उषा, सोमयज्ञ सप्यादित करने वाले साधको के समीप जाती हैं ॥१८ ॥
१२५४. माता देवानामदितेरनीकं यज्ञस्य केतुर्बृहती विभाहि ।
प्रशस्तिकृद् ब्रह्मणे नो व्युच्छा नो जने जनय विश्ववारे ॥९९ ॥
हे देवी उषे ! आप देवत्व का संचार करने से देवमाता है, अदिति के मुख के सपान तेजस्वी है । यज्ञ की
ध्वजा के समान हे विस्तृत उपे ! आप विशेष रूप से प्रकाशित हो रहो रै । हमारे सदज्ञान की प्रशंसा करती हुई
आलोकित हों । हे विश्ववंद्र उपे ! हमें श्रेष्ठ मार्ग से उत्तम लोकों में ले चलें ॥१९ ॥
१२५५. यच्चित्रमप्न उषसो वहन्तीजानाय शशमानाय भद्रम्।
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः ॥२० ॥
जिन आश्चर्यजनक विभूति को उषाएँ धारण करती हैं, वही विभृतियां यज्ञ का निर्वाह करने वाले यजमान
के लिए भी कल्याणप्रद हों । मित्र. वरुण. अदिति, समुद्र, पृथ्वी और दिव्य लोक ये सभी देवत्व सम्वर्धक धाराएँ
हमारी प्रार्थना को पूर्ण करें ॥२० ॥
[सूक्त - ११४ |]
[ऋषि- कुत्स आङ्गिरस । देवता- रुद्र । छन्द- जगती, १०-११ वरिष ।]
१२५६. इमा रुद्राय तवसे कपर्दिने क्षयद्वीराय प्र भरामहे मतीः ।
यथा शमसद्द्विपदे चतुष्यदे विश्व पुष्टं राप अस्मिननातुरम् ॥९॥
हमारी प्रजाओं और गवादि पशुओं को सुख की प्राप्ति हो । इस गाँव के सभी प्राणी बलशालो
और उपद्रव रहित हों। हम अपनी बुद्धि को दुष्टो का नाश करने वाते वीरो के प्रेरक जटाधारी रुद्रदेव को
समर्पित करते हैं ॥१ ॥
१२५७. मढा नो रुद्रोत नो मयस्कृधि क्षयद्वीराय नमसा विधेम ते ।
यच्छं च योश्च मनुरायेजे पिता तदश्याम तव रुदर प्रणीतिषु ॥२॥
हे रुद्रदेव ! हम सभी को स्वस्थ व निरोग रखते हुए सुख प्रदान करे । शुरो को आश्रय प्रदान करने वाले
आपको हम नमन करते है । आप मनुष्यो का पालन करते हुए शान्ति और रोग प्रतिरोधक शक्ति प्रदान करते हैं ।
हे रुद्रदेव हम आपकी उत्तम नीतियों का अनुगमन करें ॥२ ॥