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५०

पुनरागमन नहीं होता । पुष्प तथा चन्दनके जलसे

भगवान्‌ गोविन्दको भक्तिपूर्वक नहलाकर मनुष्य

विष्णुधाममें जाता है। जो कपड़ेसे छाने हुए

जलके द्वारा भगवान्‌ लक्ष्मीपतिको स्नान कराता है,

वह सब पापोंसे छूटकर भगवान्‌ विष्णुके साथ

सुखी होता है। जो सूर्यकी संक्रान्तिक दिन दूध

आदिसे श्रीहरिको नहलाता है, वह इफ्कीस पीढ़ियोंके

साथ विष्णुलोकमें वास करता है। शुक्लपक्षमें

चतुर्दशी, अष्टमी, पूर्णिमा, एकादशी, रविवार,

द्वादशी, पञ्चमी तिथि, सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण, मन्वादि

तिथि, युगादितिधि, सूर्यके आधे उदयके समय,

सूर्यके पुष्यनक्षत्रपर रहते समय, रोहिणी और

बुधके योगे, शनि ओर रोहिणी तथा मङ्गल और

अश्चिनीके योगे, शनि-अश्विनी, बुध-अश्विनी,

शुक्र-रेवती योग, बुध-अनुराधा, श्रवण-सूर्य, सोमवार-

श्रवण, हस्त- बृहस्पति, बुध-अष्टमी तथा बुध

और आषाढके योगमें और दूसरे-दूसरे पवित्र

दिनोंमें जो पुरुष शान्तचित्त, मौन और पवित्र होकर

दूध, दही, घौ और शहदसे श्रौविष्णुको स्नान कराता

है, उसको प्राप्त होनेवाले फलका वर्णन सुनो। वह

सब पापोंसे छूटकर सम्पूर्ण यज्ञोंका फल पाता और

इक्कीस पीढ़ियोंके साथ बैकुण्ठधाममें निवास करता

है। राजन्‌! फिर वहाँ ज्ञान प्राप्त करके वह

पुनरावृत्तिरहित और योगियोंके लिये भी दुर्लभ

हरिका सायुज्य प्राप्त कर लेता है। भूपते! जो

कृष्णपक्षमें चतुर्दशी तिथि और सोमवारके दिन

भगवान्‌ शङ्करको दूधसे नहलाता है, शिवका

सायुज्य प्राप्त कर लेता है। अष्टमी अथवा सोमवारको

भक्तिपूर्वक नारियलके जलसे भगवान्‌ शिवको

स्नान कराकर मनुष्य शिव-सायुज्यका अनुभव

करता है। भूपते! शुक्लपक्षकौ चतुर्दशी अथवा

अष्टमीको घृत और मधुके द्वारा भगवान्‌ शिवको

स्नान कराकर मनुष्य उनका सारूप्य प्राप्त कर लेता

संक्षिप्त नारदपुराण

है। तिलके तेलसे भगवान्‌ विष्णु अथवा शिवको

स्नान कराकर मनुष्य सात पीढ़ियोंके साथ उनका

सारूप्य प्राप्त कर लेता है। जो शिवको भक्तिपूर्वक

ईखके रससे स्नान कराता है, वह सात पीढ़ियोंके

साथ एक कल्पतक भगवान्‌ शिवके लोकमें निवास

करता है। (फिर शिवका सायुज्य प्राप्त कर लेता है।)

नरेश! एकादशीके दिन सुगन्धित फूलोंसे

भगवान्‌ विष्णुकी पूजा करके मनुष्य दस हजार

जन्मके पापोंसे छूट जाता और उनके परम धामको

प्राप्त कर लेता है। महाराज! चम्पाके फूलोंसे

भगवान्‌ विष्णुकौ ओर आकके फूलोंसे भगवान्‌

शङ्करकी पूजा करके मनुष्य उन-उनका सालोक्य

प्राप्त करता है। जो मनुष्य भक्तिपूर्वक भगवान्‌

शङ्कर अथवा विष्णुको धूपमें घृतयुक्त गुग्गुल

मिलाकर देता है, वह सब पापोंसे छूट जाता है।

नृपश्रेष्ठ! जो भगवान्‌ विष्णु अथवा शङ्करको

तिलके तेलसे युक्त दीपदान करता है, वह समस्त

कामनाओंको प्राप्त कर लेता है। जो भगवान्‌ शिव

अथवा विष्णुको घीका दीपक देता है, वह सब

पापोंसे मुक्त हो गङ्गा-स्नानका फल पाता है।

जो-जो अभीष्ट वस्तुं हैं, बह सब ब्राह्मणको

दान कर दे-एेसा मनुष्य पुनर्जन्मसे रहित भगवान्‌

विष्णुके धाममें जाता है। अन्न और जलके समान

दूसरा कोई दान न हुआ है; न होगा। अन्नदान

करनेवाला प्राणदाता कहा गया है और जो

प्राणदाता है, वह सब कुछ देनेवाला है। नृपश्रेष्ठ!

इसलिये अन्नदान करनैवालेको सम्पूर्ण दानोंका

फल मिलता है। जलदान तत्काल संतुष्ट करनेवाला

माना गया है। नृपश्रेष्ठ! इसलिये ब्रह्मवादी मनुष्योंने

जलदानको अन्रदानसे श्रेष्ठ बताया है। महापातक

अथवा उपपातकोंसे युक्त मनुष्य भी यदि जलदान

करनेवाला है तो वह उन सब पापोंसे मुक्त हो जाता

है, यह ब्रह्माजीका कथन है। शरीरको अन्नसे उत्पन्न

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