Home
← पिछला
अगला →

माप्रिलयनिर्पुक्ता

ब्रह्मगर्भो चतुर्विशा पदानाभाच्युतात्पिका।

वैद्युती शाश्वती योनिर्जगन्यातेश्चरप्रिया॥ ८ श॥

सर्वाधारा पहारूपा सर्वैश्चर्यसमन्विता।

विश्वरूपा महागर्भा विश्ेशेष्छानुवर्तिनी॥ ८२॥

प्रहोयसी ख्रह्ययोनि: महालक्ष्मीसपुद्भवा।

प्रहाविषानमध्यस्था महानिद्रात्महेतुका॥ ८ ३॥

अकार्या, कार्यजननी, नित्यप्रसवधर्मिणो,

स्ग्रलयनिमुा, सृष्ट्यन्तर, ब्रह्मगा, चतुर्विशा,

पद्मनाभा, अच्युतात्थिका, वैद्युतो, शाश्वतो, योनि, जगन्माता,

ईश्वर प्रिया, सर्वाधारा, महारूपा, सर्वेधर्यसपन्विता,

विश्वरूपा, महागर्भा, विश्वेशेच्छानुवर्तिनी, महौयसो,

ब्रह्मयोनि, यहालक्ष्मीसमुद्धवा, महाविपान के सध्य में

स्थित, महानिद्रा, आत्महेतुका।

सर्वसाधारणी सूक्ष्याह्मविद्या पारमार्थिका।

अनन्तरूपानन्तस्था देवी पुरुषमोहिनी॥ ८ ४॥

अनेकाकारसंस्वाना कालब्रयविवर्जिता।

ब्रह्मजन्या हरेर्मृर्तिग्रह्मविष्णुशिवात्पिका॥ ८५॥

ग्रह्ेशविष्णुजननी ब्रह्माख्या ब्रह्मसंत्रया।

व्यक्ता प्रवमा ब्राह्मी महती ब्रह्मरूपिणी॥ ८ ६॥

सैराम्यैश्चर्यधर्मात्मा ड्रह्मपूर्ति हृदिस्थिता।

अषां योनिः स्वयम्भूतिर्मानसों तत्त्वसम्भवा॥ ८७॥

सर्वसाधारणी, सूक्ष्मा, अविद्या, पारमार्थिका, अनन्तरूपा,

अनन्तस्था, पुरुषमोहिनी, अनेक आकारों में अवस्थिता,

कालत्रयविवजिता, ब्रह्मजन्मा हरि को मूर्ति, ब्रह्म

विष्णुशिवात्मिका, . ब्रह्मेश-विष्णु-जननी, ब्रह्माख्या,

ब्रह्मसंश्रया, व्यक्ता, प्रथमजा, ब्राह्मी, महती ब्रह्मरूपिणी,

चैराग्यैश्वर्यधर्मात्मा, ब्रह्ममूर्ति, दृदिस्थिता, अपांयोनि,

स्वयम्पूति, मानसौ, तत्वसंभवा।

ईश्वराणी च शर्वाणी शंकरार्धशरीरिणी।

भवानी चैव रुद्राणी महालक्ष्मीरधाम्बिका। ८ ८॥

महेश्वरसपुत्पत्ना भुक्तिमृक्तिफलप्रदा

सर्वेक्षरो सर्ववन्छा नित्यं मुदितपानसा।।८९॥

ब्रह्ेद्रोपेट्रनभिता शंकरेच्छानुवर्तिनी।

, ईश्वरार्धासनगता महेश्वरपतिव्रता॥ ९ ०॥

सकृद्विभाता सर्वार्त्तिसमुद्रपरिशोषिणों।

पार्वती हिपवतपुतरी परयानन्द्दायिनी।। ९ १॥

कर्ममहापुराणम्‌

ईश्वराणी, शर्वाणी, शंकरार्धशञरीरिणी, भवानी, रुद्राणो,

महालक्ष्मी, अम्बिका। महेश्वस्समुत्पन्ना, भुक्तिमुक्तिफलप्रदा

सर्वेश्वरी, सर्ववन्द्य, नित्यमुदितमानसा, ब्रह्मोन््रोपेन्रनमिता,

ज्ैकरेच्छानुवर्तिनी, इश्रार्थासनाता, . महेश्वरपतित्रता।

सकृद्विभाता, सर्वा्तिसमुद्रपरिशोषिणी, पार्वती, हिसवत्पुन्री,

परमानन्ददायिनी।

गुणाक्या योगजा योग्या ज्ञागपूर्तिविकाशिती।

सावित्री कमला लक्ष्मी: श्रीरनन्तोरसि स्थिता॥९२॥

सगतस्य गंगा योगत सुरा्दिनो।

सरस्वती सर्वविद्या जगज्य्येष्ठा सुमंगला॥ ९ ३॥

वाग्देवी बरदा वाच्या कीर्ति: सर्वार्थसाधिका।

स्वाहा विश्वम्भरा सिद्धिः स्वधा मेधा थृतिःशरुतिः॥ ९५॥

गुणाढ्या, योगज, योग्या, ज्ञानमृर्ति, विकासिनो, सावित्री,

कमला, लक्ष्म, श्री, अनन्ता, उरसिस्थिता, सगोजनिलया,

गंगा, योगनिद्रा, सुरादिनी, सरस्वती, सर्वविद्या, जगउन्येष्ठा,

सुमंगला। वाष्देवो, वरदा, वाच्या, कौति, सर्वार्थसाधिका,

योगीश्ररी, ब्रह्मविद्या, महाविद्या, सुशोभना, गुहाविचा,

आत्मविद्या, धर्मनिद्या, आत्मधाविता, स्वाहा, विश्वम्भर,

सिद्धि, स्वधा, मेधा, धूति, श्रुति।

नीतिः सुनौतिः सुकृतिर्मायवो नरवाहिनी।

एज्या विभावती सौप्या भोगिनी भोगशायिनी। ९६॥

शोभा च शंकरी लोला मालिनी परमेष्ठिती।

ब्रैलोक्यसुन्दरी न्या मुदरी कामचारिणी॥ ९७॥

महातुभावा सत्वस्था प्रहामहिषमरदिमी।

पद्चताभा पापहरा विचित्रमुक्ुटांगदा॥ ९८॥

कान्ता चित्राप्वर्यरा दिव्याधरणभूषिता।

हंसाख्या व्योमनिलवा जगत्सृष्टिविवर्धिती॥ ९ ९॥

नीति, सुनीति, सुकृति, माधवी, नरवाषठिनी, पूज्या,

विधावतो, सौप्या, भोगिनी, भोगल्लायिनौ, शोभा, शंकरी,

लोला, मालिनी, परमेष्ठिनौ, जैलोक्यसुन्दरो, नम्या, सुन्दो,

कामचारिणी, महानुभावा, सत्त्वस्था

पद्मनाभा, पापहरा, विचितरमुकुयंगदा, कान्ता, चित्राम्बरधरा,

दिव्याभरणभूषिता, हंसाख्या, व्योमनिलया, जगत्सृष्टि

विवर्धिनी।

नियन्री यचमप्यस्वा नैदिनी धद्रकालिका।

आदित्यवर्णा कौवेरी षयूरवरवाहना॥ १० ०॥

← पिछला
अगला →