२६ अर्वर्ववेद संहिता भाग-९
आँखों से दिखाई देने वाले तथा न दिखाई देने वाले कीटो को हम विनष्ट करते हैं । जमीन पर चलने वाले,
बिस्तर आदि में निवास करने वाले तथा द्रुतगति से इधर-उधर घूमने वाले समस्त कीटों को हम "वाचा"
(वाणी-पन्रशक्ति अथवा वच से बनी ओषधि) के द्वारा विनष्ट करते हैं ॥२ ॥
३२७. अलूणण्डून् हन्मि महता वधेन दूना अदूना अरसा अभूवन्।
शिष्टानशिष्टान् नि तिरामि वाचा यथा क्रिमीणां नकिरुच्छिषातै ॥३ ॥
अनेक स्थानों मे रहने वाले कीटाणुओं को हम वृहत् साधन रूप मंत्र के द्वारा विनष्ट करते है । चलने वाले
तथा न चलने वाले समस्त कीटाणु सूखकर विनष्ट हो गये हैं । बचे हुए तथा न बचे हुए कीटाणुओं को हम वाचा
(वाणी-मंत्रशक्ति अथवा बच से वनी औषधि) के द्वारा विनष्ट करते हैं ॥३ ॥
३२८. अन्वान्यं शीर्षण्य१मथो पाष्टेंय॑ क्रिमीन्।
अवस्कवं व्यध्वरं क्रिमीन् वचसा जम्भयामसि ॥४ ॥
आँतों में, सिर में और पसलियों में रहने वाले कीटाणुओं को हम विनष्ट करते है । रेगने वाले ओर विविध
मार्गं बनाकर चलने वाले कौटाणुओं को भी हम "वाचा, से विनष्ट करते हैं ॥४ ॥'
३२९. ये क्रिमयः पर्वतेषु वनेष्वोषधीषु पशुष्वप्स्वन्तः ।
ये अस्माकं तन्वमाविविशुः सवं तद्धन्मि जनिम क्रिमीणाम् ॥५ ॥
वनो पहाड़ों, ओषधियों तथा पशुओं में रहने वाले कीटाणुओं और हमारे शरीर मे प्रविष्ट होने वाले कीटाणुओं
की समस्त उत्पत्ति को हम विनष्ट करते हैं ॥५ ॥
[ ३२- कृमिनाशन सक्त ]
[ ऋषि- कण्ठ । देवता- आदित्यगण । छन्द अनृष्टूप , १ त्रिपात् भुरिक् गायत्री, ६ चतुष्पाद् निचृत् उष्णिक् । |
३३०. उदयन्नादित्यः क्रिमीन् हन्तु निप्रोचन् हन्तु रश्मिभि:। ये अन्तः क्रिषयो गवि ॥९॥
उदित होते हुए तथा अस्त होते हुए सूर्यदेव अपनी किरणों के द्वारा जो कीटाणु पृथ्वी पर रहते है उन समस्त
कीटाणुओं को विनष्ट करें ॥१ ॥
[ सूर्य किरणों को रोगनाशक कमता कायौ संकेत किया गया है। ]
३३९१. विश्वरूपं चतुरक्षं क्रिमिं सारड्रमर्जुनम्। शृणाम्यस्य पृष्टीरपि वृश्चामि यच्छिरः । ।२
विविध रूप वाले, चार अश्वौ वाले, रेंगने वाले तथा सफेद रंग वाले कीटाणुओं कौ हड्डियों तथा-सिर को
हम तोडते हैं ॥२ ॥
३३२. अत्रिवद् वः क्रिमयो हन्मि कण्ववज्जमदग्निवत्।
अगस्त्यस्य ब्रह्मणा सं पिनष्म्यहं क्रिमीन् ३ ॥
हे कृषियो ! हम अग्र, कण्व ओर जमदग्नि ऋषि के सदृश, मंत्र शक्ति से तुम्हें मारते है तथा अगस्त्य ऋषि
की पंत्र शक्ति से तुम्हें पीस डालते हैं ॥३ ॥
३३३. हतो राजा क्रिमीणामुतैषां स्थपतिर्हतः । हतो हतमाता क्रिमिईतभ्राता हतस्वसा ॥४
हमारे द्वारा ओषधि प्रयोग करने पर कीटाणुओं का राजा तथा उसका मंत्री मारा गया । वह अपने माता-पिता,
भाई-बहिन सहित स्वयं भी मारा गया ॥४ ॥