Home
← पिछला
अगला →

स्तम्भमान निर्णय |] [ ४१७

के भाग में उदुम्बर (गूलर) का वृक्ष और वारुणी दिणा में परम शुभ

पीपल का वक्ष समारोपित करना चाहिए ।१६-२०॥

प्लक्षश्चोत्तरतो ध्न्यो विपरीतास्त्वसिद्धये ।

कण्टकीक्षी रवृक्षश्च आसन: सफलो द्र. मः ।२१

भार्य्याहानों प्रजाहानौ भवेतां क्रमशस्तदा ।

न च्छिन्यात्‌ यदि तानन्यानत्तरे स्थापयेच्छभान्‌ ।२२

पुन्नागाशोकबकूलशमीतिलक चम्पकान्‌ ।

दाड़िमोपिप्पलीद्राक्षा तथा कुसुममण्डपान्‌ ।२३

जम्बो रपूगपनसद्र.मकेतकीभिर्जातीसरोजणतपच्रिकमल्लिकाभिः।

सन्नारिकेलकदलीदलपाटलाभियुं क्तंतदचत्रभवनंश्चियमाप्नोति। २४

भवन के उत्तर दिम्भाग में व्लक्ष (पारख) के वृक्ष का समारोपण

करे । इस तरह से ग्रह की इन चारों दिशाओं में उपयुक्त चार प्रकार

के वृक्षों का समारोपण सिद्धि दायक हुआ करता है । इनके विपरीत

आरोपण से असिद्धि होतीहे । काँदार क्षीर देने वाला बुक्ष और आसन

सफल दर मे होता है । उस समय में क्रम से भार्या की हानि और प्रजा

की हानि हुआ करती है । यदि उनको दूसरों के अन्तर में शुभ वुक्षोक।

स्थापित करे तो फिर इनका छेदन कभी भी नहीं करना चाहिए ।२१-

२२। पुन्नाग, अशोक, बकुल, शमी, तिलक, चम्पक, दामिड, पिप्पली,

द्राक्षा, कुसुम मण्डप, जम्बीर, पग. पनसद्र.म, केतकी, जाती, सरोज,

शत पत्रक--मल्लिका, नालिकेर, कदली दल, पाटल इन समस्त व॒क्नों

के समारोह्ण से समन्विति होता है बह श्री का विस्तार किया करता

है ॥२३-२४।

← पिछला
अगला →