* अध्याय २१२०
करता है, वह पुण्डरीकयागका फल प्राप्त करता
है॥ ५६--६२॥
जीविका-दानके तो फलका अन्त हो नहीं है।
जो अपने पितरोंकों अक्षय लोकोंकी प्राप्ति कराना
चाहें, उन्हें इस लोकके सर्वश्रेष्ठ एवं अपनेकों
प्रिय लगनेवाले समस्त पदार्थोका पितरोंके उद्देश्यसे
दान करना चाहिये। जो विष्णु, शिव, ब्रह्मा, देवी
और गणेश आदि देवताओंकी पूजा करके पूजा-
द्रव्यका ब्राह्मणको दान करता है, वह सब कुछ
प्रात करता है। देवमन्दिर एवं देवप्रतिमाका
निर्माण करनेवाला समस्त अभिलषित वस्तुओंको
प्राप्त करता है । मन्दरे झाड़ू-बुहारी और प्रक्षालन
करनेवाला पुरुष पापरहित हो जाता है । देवप्रतिमाके
सम्मुख विविध मण्डर्लोका निर्माण करनेवाला
मण्डलाधिपति होता है। देवताको गन्ध, पुष्य,
धूप, दीप, नैवेद्य, प्रदक्षिणा, घण्टा, ध्वजा,
चंदोवा ओर वस्त्र आदि समर्पित करनेसे एवं
उनके दर्शन और उनके सम्मुख गाने-बजानेसे
मनुष्य भोग ओर मोक्ष--दोनोंको प्राप्त करता है ।
भगवानूको कस्तूरी, सिंहलदेशीय चन्दन, अगुरु,
कपूर तथा मुस्त आदि सुगन्धि-द्रव्य और
विजयगुग्गुल समर्पित करे और संक्रान्ति आदिके
दिन एक प्रस्थ घृतसे स्नान कराके मनुष्य सब
कुछ प्राप्त कर लेता है । ' स्नान" सौ पलका और
पच्चीस फलका " अभ्यङ्ग" मानना चाहिये । ' महासरान'
हजार पलका कहा गया है । भगवान्कों जलस्नान
करानेसे दस अपराध, दुग्धस्नान करानेसे सौ
अपराध, दुग्ध एवं दधि दोनोंसे खान करानेसे
सहस्र अपराध और धृतस्नान करानेसे दस
हजार अपराध विनष्ट हो जाते हैँ । देवताके
उद्ेश्यसे दास-दासी, अलंकार, गौ, भूमि, हाथी-
घोडे ओर सौभाग्य-द्रव्य देकर मनुष्य धन और
दीर्घायुसे युक्त होकर स्वर्गलोकको प्राप्त होता
है॥ ६३--७२॥
इस प्रकार आदि आरतेव महाएराणमें “ताना एकारके दातोकी महिमाका वर्णन” नायक
दो सौ स्वारह॒वाँ अध्याय यूटा हुआ॥ २११ #
न
दो सौ बारहवाँ
अध्याय
विविध काम्य-दान एवं मेरुदानोंका वर्णन
अग्निदेव कहते है -- वसिष्ठ ! अव मैं आपके
सम्मुख काम्ब-दानोंका वर्णन करता हूँ, जो
समस्त कामनाओंको पूर्ण करनेवाले रै । प्रत्येक
मासमे प्रतिदिन पूजन करते हुए एक दिन
विशेषरूपसे पूजन किया जाता है । इसे ' काम्य-
पूजन” कहते हैं। वर्धके समाप्त होनेपर गुरुपूजन
एवं महापूजनके साथ व्रतका विसर्जन किया जाता
है॥ १२ ॥
जो मार्गशीर्षमासमें शिवका पूजन करके पिष्ट
(आटा) निर्मित अश्च एवं कमलका दान करता
है, वह चिरकालतक सूर्यलोकमें निवास करता
है। पौषमासमें पिष्टमय हाथीका दान देकर
मनुष्य अपनी इक्कीस पीढ़ियोंका उद्धार कर देता
है। माघमें पिष्टमय अश्वयुक्त रथका दान देनेवाला
नरकमें नहीं जाता। फाल्गुनमें पिष्टनिर्मित बैलका
दान देकर मनुष्य स्वर्गको प्राप्त होता है तथा दूसरे
जन्ममें राज्य प्राप्त करता है। चैत्रमासमें दास-
दासियोंसे युक्त एवं ईख (गुड़)-से भरा हुआ घर
देकर मनुष्य चिरकालतक स्वर्गलोकमें निवास
करता है और उसके बाद राजा होता है। वैशाखमें
सप्तधान्यका दान देकर मनुष्य शिवके सायुज्यको
प्राप्त कर लेता है। ज्येष्ठ तथा आषाढ़में अन्नकी
बलि देनेवाला शिवस्वरूप हो जाता है। श्रावणमें
पुष्परथका दान देकर मनुष्य स्वगकि सुखोंका