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{ संक्षिप्त भविष्यपुराणाडु
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दिया। गोकर्णं लिङ्ग-भक्त दौव कहा जाता है। राजा अदमकके
पुत्र हरिवर्मा साधुओंके पूजक ये । उनके पुत्र दशरथ (प्रथम)
हुए, उनके पुत्र दिलीप (प्रधम) हुए, उनके पुत्र विश्वासह हुए,
उन्होंने दस हजार वर्षोतक राज्य किया। उनके अधर्म-
आचरणके कारण उस समय सौ वर्थोतक भयंकर अनावृष्टि
हुई, जिससे उनका राज्य विनष्ट हो गया और गनीके आप्रह
करनेपर महर्षि वसिष्ठने य्रकर यज्ञके दा खड़ाड़ नामक पुत्र
उत्पन्न किया। राजा खड़डाड़ने शस्त्र धारण कर इन्द्रकी
सहायतासे तीस हजार वर्षोतक राज्य किया। तदनन्तर
देवताओंसे बर प्राप्त कर मुक्ति प्राप्त की। उनके पुत्र दीर्घयाहु
हुए, उन्होंने बीस हजार वर्षोतक राज्य किया। उनके पुत्र
सुदर्शन हुए। महामनीषी सुदर्शनने राख काशीराजकी पुतरीसे
एक दिन स्थप्रमें महाकास्मीने राजा सुदर्शनसे कहा--
"वत्स ! तुम अपनी पत्नीके साथ तथा महर्षि वसिष्ठ आदिसे
समन्वित होकर हिमालयपर जाकर निवास करो; क्योकि रीघ्र
ही भीषण झंझावातके प्रभावसे भरतसण्डका प्रायः क्षय हो
जायगा। पूर्व, पश्चिम आदि दिज्ञाओंके अनेक उपद्वीप
झंझावातोंके कारण समुद्रके गर्तमें बिलीन-से हो गये हैं।
भारतवर्षमें भी आजके सातवें दिन भीषण झंझावात आयेगा ।'
स्वप्रमें भगवतीदवार प्रलय निर्देश पाकर महाराज सुदर्शन
प्रधान राजाओं, वैद्यो तथा ब्राह्मणों और अपने परिकरोंके
साथ हिमालयपर चले गये और भारतका यड़ा-सा भूभाग
समुद्री-तूफान आदिके प्रभावसे नष्ट हो गया। सम्पूर्ण प्राणी
विनष्ट हो गये और सारी पृथ्वों जलमप्र हो गयी। पुनः कुछ
विवाह कर टेवीके प्रसादसे राजाओंको जीतकर धर्मपूर्वक्:क समयके अनन्तर भूमि स्थलरूपमे दिखलायी देने लगी।
सम्पूर्ण भरतश्नष्डपर पाँच हजार वर्षोतक राज्य किया । (अध्याय १)
जा४प०+9--
त्रेतायुगके सूर्य एवं चन्द्र-राजवंशोंका वर्णन
सूतजी बोले--महामुने ! वैशाख मासके शुक्र पक्षकी
तृतीया तिथिमें यृहस्पतियारके दिन महाराज सुदर्शन अपने
परिकरोंके साथ हिमालयपर्वतसे पुनः अयोध्या लौट आये।
मायादेवीके प्रभावसे अयोध्यापुरी पुनः विविध अन्न-घनसे
परिपूर्ण एवं समृद्धिसम्पप्र हो गयी । महाराज सुदर्शनने' दस
हजार वर्षोतक राज्यकर नित्यक्लोककों प्राप्त किया। उनके पुत्र
दिलीप (द्वितीय) हुए, उन्हें नन्दिनी गौके बरदानसे श्रेष्ठ रघु
नामक एक पुत्र उत्पन्न हुआ। राजा दिलीपने दस हजार
यर्षोतक भलीभाँति राज्य किया। दिलीपके बाद पिताके ही
समान महाराज रघुने भी राज्य किया। भृगुनन्दन ! ज्रेतामें ये
र्वै क्षत्रिय रपी नामसे प्रसिद्ध हुए। ब्राह्मणके
वरदानसे उनके अज नामक पुत्र हुआ, उन्होंने भी पिताके
समान ही राज्य किया । उनके पुत्र महाराज दक्षरथ (द्वितीय)
हुए, दवारथके पुत्ररूपमें (भगवान् विष्णुके अवतार) स्वयै
राम उत्पन्न हुए। उन्होंने ग्यारह हजार वर्तक राज्य किया।
श्रीरामके पुत्र कुशने दस हजार वर्षोतक राज्य किया। कुशके
पुत्र अतिथि, अतिथिके निषध, निषधके पुत्र नल हुए, जो
झक्तिके परम उपासक थे। नलके पुत्र नभ, तभके पुत्र
पुण्डरीक, उनके पुत्र क्षेमधन्वा, क्षेमधन्वाके देवानीक और
देवानीकके पुत्र अहीनग तथा अहीनगके पुत्र कुरु हुए। इन्होंने
ब्रेतामें सौ योजन विस्तास्का कुरुक्षेत्र बनाया। कुरुके पुत्र
पारियात्र, उनके वलस्थल, बलस्थरूके पुत्र उक्थ, उनके
यद्भनाधि, वद़नाभिके पुत्र शङ्खनाभि ओर उनके व्युत्थनाधि
हुए। व्युत्थनाभिके पुत्र विश्वपाल, उनके स्वर्णनाभि और
स्वर्णनाभिके पुत्र पुष्पसेन हुए। पुष्पसेनके पुत्र धुवसन्थि तथा
धरुषसब्धिके पुत्र अपवर्मा हुए। अपवर्माके पुत्र दीघ्रगन्ता,
झीघ्रगस्ाके पुत्र मरुपाल और उनके पुत्र प्रसुशरुत हुए।
प्रसुशुतके पुत्र सुसंधि हुए। उन्होंने पृथ्वीक एक छोरसे दूसरे
छोरतक राज्य किया । उनके पुत्र अमर्षण हुए। उन्होंने पिताके
समान राज्य किया। उनके पुत्र महाश्व, महाश्वके पुत्र यूहद्वल
और इनके पुत्र यृहदैशान हुए । यूहदैशानके पुत्र मुरुकषेप, उनके
वत्सप्यरः और उनके पुत्र वत्सव्यूह हुए । वत्सव्यूहके पुत्र राजा
३-शाज सुदर्शनकी जिस्तृत कथा देवोभागततके तृतौय स्कन्धे प्राप्त होती है।
२-यै नल दमयन्ती पति अत्वत्त प्रसिद्ध महाराज नलम भित्र हैं।