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सर्वोत्तम तीर्थ है। उसे श्रेष्ठ अविमुक्त क्षेत्र भी | ऋषभतीर्थ भी श्रेष्ठ हैं। श्रीपर्वत, कोलाचल,
कहते है । कपाल-मोचनतीर्थं भी उत्तम है, प्रयाग | सहयगिरि, मलयगिरि, गोदावरी, तुङ्गभद्रा, वरदायिनी
तो सब तीर्थौका राजा ही है। गोमती और | कावेरी नदी, तापी, पयोष्णी, रेवा (नर्मदा) और
गङ्गाका संगम भी पावन तीर्थं है। गङ्गाजी कहीं | दण्डकारण्य भी उत्तम तोर्थ है । कालंजर, मुञ्जवर,
भी क्यों न हों, सर्वत्र स्वर्गलोककी प्राति करनेवाली | शुर्पारक, मन्दाकिनी, चित्रकूट और श्रृड्रवेरपुर
हैं। राजगृह पवित्र तीर्थ है। शालग्राम तीर्थ | श्रेष्ठ तीर्थ है । अवन्ती भी उत्तम तीर्थं है । अयोध्या
पार्पोका नाश करनेवाला है । वेश, वामन तथा | सब पापोंका नाश करनेवाली है । नैमिषारण्य परम
कालिका-संगम तीर्थ भी उत्तम हैँ ॥ १८-२०॥ | पवित्र तीर्थ है। वह भोग और मोक्ष प्रदान
लौहित्य-तीर्थ, करतोया नदी, शोणभद्र तथा | करनेवाला है ॥ २१-२४॥ `
इस प्रकार आदि आण्तेव महापुराणमें 'तीर्थमाहात्म्य-वर्णत” नामक
एक सौ तवां अध्याय पुरा हआ ॥ १०९५
एक सौ दसवां अध्याय
गङ्खाजीकी महिमा
अग्निदेव कहते है -- अब गङ्गाका माहात्म्य | गङ्गादेवी सब पापोंकों दूर करनेवाली तथा
बतलाता हूँ। गङ्गाका सदा सेवन करना चाहिये । | स्वर्गलोक देनेवाली है । गङ्गाके जले जबतक
वह भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाली हैँ । जिनके | हड्डी पड़ी रहती है, तबतक वह जीव स्वर्गमें
बीचसे गङ्गा बहती हैं, वे सभी देश श्रेष्ठ तथा | निवास करता है। अंधे आदि भी गङ्गाजीका
पावन है । उत्तम गतिकी खोज करनेवाले प्राणि्योके | सेवन करके देवताओके समान हो जाते हैं।
लिये गङ्गा ही सर्वोत्तम गति है। गङ्गाका सेवन | गङ्गा-तीर्थसे निकली हुई मिट्टी धारण करनेवाला
करनेपर वह पाता और पिता-दोनोंके कुलोंका | मनुष्य सूर्यके समान पापका नाशक होता है । जो
उद्धार करती है। एक हजार चादद्रायण-व्रतकौ | मानव गङ्गाका दर्शन, स्पर्श, जलपान अथवा
अपेक्षा गङ्गाजीके जलका पीना उत्तम है। एक | ' गङ्गा" इस नामका कीर्तन करता है, वह अपनी
मास गङ्गाजीका सेवन करनेवाला मनुष्य सब | सैकड़ों-हजारों पीढ़ियोंके पुरुषोंकों पवित्र कर
यज्ञोंका फल पाता है ॥ १--३॥ देता है॥ ४--६॥ -
इस प्रकार आदि आण्तेव महापुराणमें “गड़जीकी महिमा ” नामक
एक सौ दसवां अध्याय पूरा हुआ॥ ११० #
एक सौ ग्यारहवाँ अध्याय
प्रयाग-माहात्म्य
अग्निदेव कहते हैं-- ब्रह्मन्! अब मैं प्रयागका | आदि देवता तथा बड़े-बड़े मुनिवर निवास करते
माहात्म्य बताता हूँ, जो भोग और मोक्ष प्रदान | हैं। नदियाँ, समुद्र, सिद्ध, गन्धर्व तथा अप्सराएँ
करनेवाला तथा उत्तम है। प्रयागमें ब्रह्मा, विष्णु | भी उस तीर्थम वास करती हैं। प्रयागमें तीन