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पतिब्रताओंके लिये यह सनातन धर्म है। तथापि
मेरी बातोंपर निश्चित विचार करके मेरी पीड़ाके
विषयमे आपको नहीं पूछना चाहिये।'
उस समय कलिङ्गं - नरेशको अपनी पत्नीकी
पीड़ासे भीषण मानसिक संताप हो रहा था,
अतएव उसने मधुर वाणौ्े कहा--'देवि, मँ
तुम्हारा पति हूँ, ऐसी स्थितिमें मेरे पूछनेपर तुम्हें
शुभ हो या अशुभ उसे अवश्य बताना चाहिये ।
धर्मके मार्गपर चलनेवाली स्त्रीका कर्तव्य है कि
वह गुप्त बात भी पतिके सामने प्रकट कर दे। जो
स्त्री किसी राग या लोभसे मोहिते होकर अपकर्म-
कर उसे पतिसे छिपाती है तो विद्रत्समाज उसे
सती नहीं कहता । यशस्विनि ! ऐसा विचार करके
तुम्हें मुझसे अपनी गुप्त बात भी अवश्य कहनी
चाहिये । यदि इस गोपनीय बातको तुम मुझे बता
देती हो तो तुम्हें अधर्मका भागी नहीं होना पडेगा ।'
राजकुमारी बोली--' प्राणनाथ ! राजा देवता,
गुरु एवं ईश्वरके समान पूज्य हैं--आप मेरे पति
भी हैं। महाराज! सुनिये! यद्यपि मेरा कार्य बहुत
गुह्य नहीं है, तब भी मैं आपसे प्रार्थना करती हूँ,
स्वामिन्! अपने राज्यपर बड़े राजकुमारका अभिषेक
कर दीजिये, यह नियम कुलके अनुसार है और
आप मेरे साथ 'सौकरव (वराह)-क्षेत्र' में चलनेकी
कृपा करें।'
पत्नीकी यह बात सुनकर कलिङ्ग नेेशने
सहर्ष उसका अनुमोदन कर दिया। अपने वाक्योंसे
पत्नीकों प्रसन्नकर उसने कहा--' सुन्दरि ! तुम्हारे
कथनानुसार मैं पुत्रको राज्यपर बैठा दूँगा। फिर
वे दोनों रनिवाससे बाहर निकले। राजकुमारने
कञ्चुकीको देखकर कहा--'द्वारपाल! तुम यहाँके
सब लोगोंकों सूचित कर दो। वे आकर यहाँ
उपस्थित हों।
इसके बाद कलिड्डभ-नरेशने अपनी रुचिके
* संक्षिप्त श्रीवराहपुराण *
[ अध्याय १३७
अनुसार उस समय कुछ खाने योग्य अन-जल
ग्रहण किया और आचमन करके कुछ समयतक
विश्राम किया। फिर उन्होंने अपने पुत्रका अभिषेक
करनेके लिये मन्त्रिमण्डलकों बुलाया और आज्ञा
दी-' सब लोग आचारके अनुसार माङ्गलिक
कृत्य करके राजधानीका संस्कार करनेमें जुट
जायं ।' फिर कलिङ्ग-नरेशने अपने वृद्ध मन्त्रीसे
कहा-' तात! कल मैं राज्यपर अपने पुत्रका
विधिके अनुसार अभिषेक करना चाहता हूँ।
उसकी आप शीघ्र तैयारी करें ।' नरेशकी बात
सुनकर मन्त्रियोंने कहा-“राजन्! सभी वस्तुं
तैयार ही हैं। आप जो कह रहे हैं, वह हम
सभीको पसंद है। महाराज! आपके ये राजकुमार
सम्पूर्ण प्राणियोंक हितमें सदा संलग्न रहते है ।
प्रजाओंपर प्रेम रखनेवाले, नीतिके पूर्ण जानकार,
विचारशील ओर शूरवीर भी हैं। प्रभो ! आपके
मनमे जो अभिलाषा है, वह हमलोगोंको सम्यक्
प्रकारसे प्रिय लगती है।' ऐसी बात कहकर
मन््रीलोग अपने स्थानपर चले गये और भगवान्
सूर्य अस्त हो गये। राजा और रानीने सुखपूर्वक
शयन किया। रात आनन्दपूर्वक बीत गयी।
प्रातःकाल गन्धर्वो, वन्दीजनों, सूतों एवं
मागधोंने अपने समुचित स्तुति-पाठसे राजाको
जगाया। राजाने शुभ मुहूर्तका अबसर पाकर उस
परम योग्य अपने कुमारका अभिषेक कर दिया।
कलिड्डनरेश धर्मका पूर्ण ज्ञाता था। राजगद्दीपर
बैठानेके पश्चात् उसने राजकुमारका मस्तक सूँघा।
साथ ही उससे यह मधुर वचन कहा--' बेटा! तुम
पुत्रोंमें श्रेष्ठ हो। मैं तुम्हें राजधर्म बताता हूँ, वह
सुनो--तात ! यदि तुम चाहते हो कि मुझे परम
धर्म प्राप्त हो जाय तथा मेरे पितर तर जायें तो
तुम्हें धर्मात्मा पुरुषोंको किसी प्रकार क्लेश नहीं
देना चाहिये। जो दूसरोंकी स्त्रियोंपर बुरी दृष्टि