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२४८ # श्री लिंग पुराण &#

हृदय से भास्कर, कण्ठ से सोम, भूमध्य से आत्मा,

मस्तिष्क से स्वर्ग इस प्रकार चढ़कर सब जगत जिनसे

उत्पन्न होता है ऐसे सर्वज्ञ और सर्वगत देव की ध्यान

पूर्वक प्रतिष्ठा करके मनुष्य शिव सायुज्य को प्राप्त करता

है।

बैल पर स्थित, चन्द्रमा का भूषण धारण किए हुए

शिव की जो प्रतिष्ठा करता है वे किंकिणी जालों से

युक्त स्वर्ण के विमान में बैठकर दिव्य शिव लोक में

जाकर वास करता है और मुक्त हो जाता है। गण अम्बिका

और नन्दी से युक्त शिव की प्रतिष्ठा करने वाला, सूर्य

मण्डल के सदृश विमानों में बैठकर अप्सरा आदि के

नृत्य के साथ शिव लोक में गणपति होकर निवास करता

है। पार्वती सहित वृषभध्वज शिव को ब्रह्मा, इन्द्र, विष्णु

आदि से सदा प्रतिष्ठा करने वाला सर्व यज्ञ, तप, दान

तीर्थों के फल को प्राप्त करके शिव लोक में जाकर महा

प्रलय तक भोगों को भोगता है।

नग्न, चतुर्भुज, श्वेत, सर्प मेखला वाले, त्रिनेत्र वाले,

कपाल हाथ में धारण किए हुए, काले केश वाले शिव

की स्थापना करके शिव सायुज्य को प्राप्त करता है। धूम्र

वर्ण वाले, लाल नेत्र वाले, चन्द्रभूषण, काकपक्ष धारी,

बाघम्बर ओढ़े हुए, मृगचर्म धारण किये हुए, तीक्ष्ण दाँत

वाले, कपाल जिसके हाथ में है, हूँ तथा फट्‌ शब्द से

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