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[ कक
माथा टेकते हैं। आप देवेदा, अमृत और अमृतात्मा हैं;
आपको बारंबार नमस्कार है। आप क्षीरसागरमें निवास
करनेवाले और लक्ष्मीके प्रियतम हैं, आपको नमस्कार
है। आप ओंकार, विशुद्ध तथा अविचलरूप हैं; आपको
बारेबार प्रणाम है। आप व्यापी, व्यापक ओर सब
प्रकारके दुःखोंको दूर करनेवाले हैं; आपको नमस्कार है।
“वराहरूपधारी आपको प्रणाम है। महाकच्छपके
रूपमे आपको नमस्कार है। वामन और नृसिंहका रूप
धारण करनेवाले आप परमात्माको प्रणाम है। सर्वज्ञ
मत्स्यभगवान्को प्रणाम है । श्रीराम, कृष्ण, ब्राह्मणश्रेष्ठ
कपिल और हयग्रीवके रूपमे अवतीर्ण हुए आप
[१ अर्चयस्व हषीके यदीच्छसि परे पदम् *
[ संक्षिप्त पद्मपुराण
भगवानको प्रणाम है।'
इस प्रकार इन्द्रियोंके स्वामी भगवान् श्रीजनार्दनका
स्तवन करके सोमशर्माने फिर कहा--प्रभो ! ब्रह्माजी
भी आपके पावन गुणोंकी सीमाको नहीं जानते तथा
सर्वर ! रुद्र॒ और इन्द्र भी आपकी स्तुति करनेमें
असमर्थ हैं; फिर दूसरा कौन आपके गुणोंका वर्णन कर
सकता है। मुझमें बुद्धि ही कौन-सी है, जो मैं आपकी
स्तुति कर सकूँ। केशव ! मैंने अपनी छोटी बुद्धिके
अनुसार आपके निर्गुण ओर सगुण रूपोंका स्तवन किया
है। सर्वेश ! मैं जन्म-जन्मसे आपका ही दास हूँ।
लोकेश ! मुझपर दया कीजिये ।'
--- औ =¬
श्रीभगवानके वरदानसे सोमशर्माको सुव्रत नामक पुत्रकी प्राप्ति तथा सुब्रतका तपस्यासे
माता-पितासहित वैकुण्ठलोकमें जाना
श्रीहरि बोले-- ब्रह्मन् ! मैं तुम्हारी इस तपस्या,
पुण्य, सत्य तथा पावन स्तोत्रसे बहुत सन्तुष्ट हूँ।
मुझसे कोई वर मागो ।
सोमशमने कहा-- प्रभो ! पहले तो आप
मुझे भल्जीभाँति निश्चित किया हुआ एक वर यह
दीजिये कि मैं प्रत्येक जन्ममें आपकी भक्ति करता रहूँ।
दूसरा यह कि मुझे मोक्ष प्रदान करनेवाले अपने
अविचल परमधामका दर्शन कराइये। तीसरे वरके
रूपमे मुझे एक ऐसा पुत्र दीजिये, जो अपने वंद्का
उद्धारक, दिव्य लक्षणोंसे सम्पन्न, विष्णुभक्तिपरायण,
मेरे कुल्को धारण करनेवाल्त्र, सर्वज्ञ, सर्वस्व--दान
करनेवाल्म्र, जितेन्रिय, तप और तेजसे युक्त, देवता,
ब्राह्मण तथा इस जगत्का पालन करनेवाल्त्र,
श्रीभगवान् (आप) का पुजारी और शुभ सङ्कल्पवाला
हो। इसके सिवा, श्रीकशव ! आप मेरी दरिद्वता
हर लीजिये ।
श्रीहरि बोले --द्विजश्रे्ठ ! ! ऐसा ही होगा, इसमें
तनिक भी सन्देह नहीं है । मेरे प्रसादसे तुमको सुयोग्य
पुत्रकी प्राप्ति होगी, जो तुम्हारे वदाका उद्धार करनेवाला
होगा । तुम इस मनुष्यलोक भी परम उत्तम दिव्य एवं
मनुष्योचित भोगोंका उपभोग करोगे । तदनन्तर तुम
परमगतिको प्राप्त होगे ।
इस प्रकार भगवान् श्रीहरि सखीसहित ब्राह्मणको
वरदान देकर अन्तर्धान हो गये । तदनन्तर द्विजश्रेष्ठ
सोमहार्मा अपनी पत्नी सुमनाके साथ नर्मदाके
पुण्यदायक तटपर उस परमपावन उत्तम तीर्थ
अमर्कण्टकमे रहकर दान-पुण्य करने कगे । इस
प्रकार बहुत समय व्यतीत हो जानेपर एक दिन
सोमझर्मा कपिर और नर्मदाके सदङ्गममें स्नान करके
निकले और घर आकर ब्राह्मणोचित कर्ममें लग गये ।
उस दिन त्रतसे शोभा पानेवाली परम सौभाग्यवती
सुमनाने पतिके सहवाससे गर्भ धारण किया । समय
आनेपर उस बड़भागिनीने देवताओंके समान
कान्तिमान् उत्तम पुत्रको जन्म दिया, जिसके शरीरसे
तेजोमयी किरणे छिटक रही थीं । उसके जन्मके समय
आकादाम बारंबार देवताओंके नगारे बजने र ।
तत्पधात् ब्रह्माजी देवताओंको साथ लेकर वहां
आये और स्वस्थ चित्तसे उस बालकका नाम उन्होंने
“सुन्नत' रखा । नामकरण करके महाबली देवता
स्वर्गको चले गये ।