प्रतिसर्गपर्व, प्रथम खण्डे ]
* ज्रेतायुगके सूर्य एवं उन्द्र-राजवंशोंका सर्णन «
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भ्रतिव्योम हुए। उनके पुत्र देवकर और उनके पुर सहदेव हुए! पाँच पुत्र हुए, जिनमेंसे तीन पुत्र म्लेच्छ देशोंके शासक हो
सहदेवके पुत्र बृहदश्च, उनके भानुरल तथा भानुरनके सुप्रलौक
हए । उनके मरूदेव ओर मर्देवके पुत्र सुनक्षत्र हुए। सुनक्षके
पुत्र केशोनर, उनके पुत्र अन्तरिक्ष और अन्तरिक्षके दुत
सुवर्णाज्ञ दुए। सुवर्णा पुत्र अमिष्नजित्, उनके पुत्र बृहद्राण
और बूहद्ाजके पुत्र धर्मराज हुए। धर्मराजके पुत्र कुलक्षय और
उनके पुत्र रणज्जय हुए। रणकफ्के पुत्र सञझ्य, उनके पुत्र
शञाक्यवर्धन और शआक्यवर्धनके पुत्र ऋ्रोधदान हुए । करोधदानके
पुत्र अतुलविक्रम, उनके पुत्र प्रसेनजित् और प्रसेनजितके पुत्र
अदरक हुए। शूद्रकके पुत्र सुरथ हुए। ये सभी महाराज रघुके
वैशज तथा देवोकी आधर रत रहते थे। यह्ञ-
यागादि तत्पर रहकर अन्ते इन सभी ७ओनि स्वर्गत्प्रेक
आतर किया। जो बुद्धके वरान हुए, ये सब पूर्ण शुद्ध कषत्रिय
नहीं थे ।
्रे्छयुगके तृतीय चरणके प्रारम्भसे नवीनता आ गयी।
देवराज इनदरने रोहिणी -पति चद्रपाको पृथ्वीपर भेजा । चन्द्रमाने
तीर्थराज प्रयागके अपनी राजधानी नाया । वै भगवान् विष्णु
तथा भगवान् दिवकी आशगधनामें तत्पर रहे । भगवती
महापायाकी प्रसन्नताके लिये उन्होंने सौ यज्ञ किये और
अट्टारह हजार यर्षोततक एाज्यकर् ये पुनः स्यर्गल्येक चकते गये ¦
चन्रमाके पुत्र युध हुए। युधका विवाह इल्मके साथ
विधिपूर्वक हुआ, जिससे पुरूरवाकी उत्पत्ति हुईं। राजा
पुरूरवाने चौदह हजा वर्षोतक पृथ्वीपर शास्त्र किया । उनको
भगवान् विष्णु आराधये तत्पर राहनेवात्थ्र आयु ऋमका
शक धर्मात्मा पुत्र उत्पन्न हुआ। महाएज आयु छत्तोस हजार
वर्षोतक ग़ज्यकर गब्धर्वव्लोककोों प्रा्ष करके पुनः सवर्ग
देवताके समान आनन्द भोग रहे हैं। आयुके पुत्र हुए नहुष,
जिन्होंने अपने पिताके समान ही धर्मपूर्षक पृथ्वोपर राज्य
किया। तदनत्तर उन्होंने इनद्रत्यकये प्राशकर तीनों सतेकोको
अपने अधीन कर लिया । फिर बादमें महर्षि दुर्षासाके शपते"
यजा नहुष अजगर हो गये। इसके पुत्र ययाति हुए । ययातिके
गये* । शोष दो पुने आर्यत्वको प्राप्त किया। उनमें यद् व्ये
ये और पुर कनिष्ठ । उन्होंने तपोबछ तथा भगवार् विषते
प्रफादसे एक खख जपोंतक राज्य किया, अनन्तर ये वैकुण्ठ
जले गये।
यदुके पुत्र क्रोहुुने साठ हजार वर्षोत्क राज्य किया।
कोष्टके पुत्र यूजिनाप्र हुए, उन्होंने बीस हजार बर्षोतक पृथ्वीपर
उश्सन किया; उनको स्वाहार्थन नामक एक पुत्र हुआआ। उनके
पत्रे चित्ररथ हुए और उनके अरविन्द हुए। अरविन्दको
किष्णुभक्तिपरायण श्रवस् नामका पुत्र उत्पन्न हुआ। उसके
तमस हुए, तामसके उरान ऋय पुत्र हुआ। उनके युर
औताशुक हुए तथा झोतशुक्रके पुत्र कमल्मेशु हुए । उनके र
यारावत हुए, उने ज्यामप नापका पुत्र उत्पन्न हुआ! । ज्यापधके
पु विदर्ध हुए। उनको क्रथं नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। उनके
पुत्र कुन्तिभोज हुए। वुश्तिभोजने पात्लमे निवास करनेवाली
पुर दैत्यौ पुत्रस विवाह किया, जिससे बृषपर्थण मक पुत्र
हुमा । उनके पुत्र फयाविष्य हुए, जो देवीके भक्त थे। उनदेरि
प्रवाकके प्रतिष्ठानपुर (सौ) में दस हजार वर्षो राज्य
किया फिर ले स्वर्ग सिधार गये। मायाविद्यके पुत्र जनपेजर
(प्रधम) हुए और उनका पुत्र प्रचिन्यात् हुआ। पिः खनके
पुत्र परवीर हुए । उनके पुत्र नभस्य हुए, नभस्ये पुत्र भयद
और उनके सुधर नामक पुत्र हुआ। सुचये पुत्र बाहुगा,
उनके पुत्र संयाति और संयातिके पुत्र धनयाति हए:
वनयातिके पुत्र ऐल््राश्व, उनके पुत्र रत्तीनर और रत्तोनरके पूर्
सुतपा हुए। सुतपाके पुत्र संबरण हुए, जिन्होंने हिमालूर
पर्वतपर तपस्या करनेकी इच्छा की और सौ वर्षोशक तपस्यः
करनेपर भगवान् सूर्यने अपनी तपती नामपि एन्यासे इसख्य
विवाह कर दिया। संतुष्ट होकर राजा संवरण सूर्यकः चर
गये । तदनन्तर कालके प्रभावसे त्रेतायुग अन्त सपय
उपस्थित हो! गया, जिससे चौ समुद्र उमड़ आये और
प्रल्यका दृश्य उपस्थित हो गया। दो वर्षोत्क पृथ्वी
३- अन्य सभी कूर्मे सूर्योदय दहीतकः वर्णन है। पुरक भुस यर देवापि स्दथ करप प्यते विकसक स्वधया कर छे हैं, छत
इस पुराणे अनुस्तर सूर्ेऽ स्मन सुदूर आऋगेशक हुआ है, जो प्रायः कम्तियुगतऊ पहुँच जाता है ¦
रे" द्भ्य आदिमे ये अगस्त्य ऋषिके इपर अजगर हुए ये।
३- इसका धूर विवस्य मत्यपूगशकेः प्राशधक अध्यायोमे प्राय होता है ।