ख्राह्मपर्ण ]
* सूर्यनारायणकी महिमा, अर्यं प्रदान करनेका फल +
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ब्रह्मा तथा विष्णुके मध्य हुए संवादको सुनें। एक बार क्रह्माजी
मेरुपर्वतपर स्थित आपनी मनोवती नामकी सभामें सुखपूर्वक
यैदे हुए थे। उसी समय विष्णुधगवानने प्रणाम कर उनसे
कहा -- ' हान् ! आप भगवान् भास्करकी आयाधना-विधि
बतायें ओर मण्डलस्थ भगवान् सूर्यनासयणकी पूजा किस
प्रकार करनी चाहिये, इसे करें ।
ब्रह्मने कहा-- महाबाहो ! आपने बहुत उत्तम बात
पूछी है, आप एकाग्रचित्त होकर भगवान् भास्करकी पूजन-
विधि सुनिये ।
सर्वप्रथम दाखोक्त विधिसे भूमिका विधिवत् दोधनकर्
केसर आदि गन्धोसि साते आवरणोंसे युक्त कर्णिकासमन्वित
एक अष्टदलकमल बनाये ! उसमें दीप्ता आदि सूर्यकी दिव्य
अष्ट शक्तियोंको पूर्वीदि-क्रमसे ईशानकोणतक स्थापित करे ।
बीचमें सर्वतोमुखी देवीकी स्थापना करे । दीप्ता सुक्ष्मा, जया,
ध्र, विभूति, विमा, अमोघा, विद्युता और सर्वतोमुली--ये
नौ सूर्यदाक्तियां है । इन शक्तियॉंका आवाहनकर पकी
कर्णिकाके ऊपर भगवान् भास्करको स्थापित करना चाहिये।
"उदु त्यं जातवेदसं" (यजु । ४१) तथा “अत्रिं दूतं"
(यजु २२। १७) --ये मन्त्र आयाहन और उपस्थान्के कहे
गये दै । "आ कृष्णोन रजसा»' (यजु ३३ । ४३) तथा 'हा-
खः शुचिषद्” ( यजु" १५ । २४) इन मन्त्रोंसे भगवान् सूर्यकी
पूजा करनी चाहिये । "अपदे तारकं॑"' मसे दीप्तादेवीकी पूजा
करे । "अदुश्रपस्य केतवो" (यजुः ८ ।४०) मन्त्रसे
सूक्ष्मादेवीकी, 'सरणिविश्विदर्शतो*' (यजु° ३३ ।३६) से
जयाकी, 'प्रत्यइ्देवाना*' इस मन्रमे भद्राकी, "येना पायक
चक्षसा" (यजु ३३।३२) इस ॒यन्त्रसे विभृक्तिकी,
“विद्यामेषि*' इस मन्त्रसे विमलादेवीकी पूजा करनी चाहिये ।
इसी प्रकारसे अमोघा, विद्युता तथा सर्वतोमुखी देवियोंकी भी
पूजा करनी चाहिये । अनन्तर वैदिक मन्त्रोंसे सप्तावरण-पूजन-
पूर्वक मध्यमे भगवान् सूर्यकी पूजा करे । भगवान् सूर्य एक
चक्रवाले रथपर बैठकर श्वेत कमलपर स्थित हैं। उनका लाल
वर्ण है। वे सर्वाभरणभूषित तथा सभी लक्षणोंसे समन्वित
और महातेजस्वी हैं। उनका विम्ब वर्तुल्मकार है। वे अपने
हा्ोपे कमल और धनुष लिये हैं। ऐसे उनके स्वरूपका
ध्यानकर नित्य श्रद्धा-भक्तिपूर्वक उनकी पूजा करनी चाहिये ।
भगवान् विष्णुने कहा--हे सुरश्रेष्त! मण्डलस्थ
भगवान् भास्करकी प्रतिमारूपमें किस प्रकारसे पूजा की जाय,
उसे आप बतल्मनेकी कृपा करें।
ब्रद्माजी बोले--हे सुत्रत ! आप एकाम्चित्त-मनसे
प्रतिमा-पूजन-विधिकों सुनिये। इषे त्वो” (यजुः १।१)
इस मनत्रसे भगवान् सूर्यके सिर-प्रदेशका पूजन करना चाहिये ।
“अग्निमीक्े० (ऋ ६३ १।१) इस मनसे भगवान् सूर्यके
दक्षिण हाथकी पूजा करनी चाहिये। "अग्न आ याहि"
(ऋ ६। १६। १०) इस मन्त्रसे सूर्यभगवानके दोनों
चरणोंकी पूजा करनी चाहिये। 'आ जिध्न० (यजुर ८ । ४२)
इस घन्वसे पुष्पपाला समर्पित करनी चाहिये। "योगे योगेऽ"
(यजु*११ । १४) इस मन्वे पुष्पाञ्जलि देनी चाहिये। “समुद्र
गच्छ" (यजुः ६।२९) तथा “इमं ये गड्ढे” (ऋ
१०। ७०८ | ५) तथा "समुद्रनयेश्चाः^" (ऋ ७।४९। १) इन
मज्रोंसे उन्हें अगराग लगाये। "आ प्यायस्व० (यजुः
१२। ६६२) इस मचसे दुग्ध-स्रान, "दधिक्राः" (यजु
२३।३२) इस मन्रसे दधिक्लान, "तेजोऽसि सुक्रः" (यजु-
२२॥ १) इस मन्त्रसे घृत-स्नान तथा "या ओषधीः*' (यजुः
१२ । ७५) इस मन्त्रद्रारा ओषधि-खान कराये । इसके बाद
"द्विपदाः (ययु २३। ३४) इस मन्त्रसे भगवानका उद्वर्तन
करे । फिर "पा नस्तोके" (यजु १६। १६) इस मन्से पुनः
स्नान कराये। 'बिष्णों रराट*' (यजु ५।२१) इस मन्त्रसे
गन्ध तथा जलसे खान कराये। 'स्वर्ण घार्म:*' (यजुः
६८। ५०) इस मन्त्रसे पाद्य देना चाहिये। 'इदे विष्णुर्वि
चक्रेः (यजु ५।१५) इस मन््रसे अर्य प्रदान करना
चाहिये । "येदोऽसि (यजु २ । २१) इस मन्त्रसे यज्ञोपवोत
और "बृहस्पतेः" (यज्" २६। २३) इस मन्त्रसे वख-उपवसख
आदि भगवान् सूर्यको चढ़ाना चाहिये । इसके अनन्तर
पुष्पमाला चढ़ाये। "भूरसि पूर्वः" (यनु" १।८) इस मन्रसे
गुग्गुलसहित धूप दिखाना चाहिये । "समिद्धो, (यजु
२९। १६) इस मचखसे रोचना छगाये। 'दीर्घायुस्त-
(यजु०१२ | १००) इस मखसे आलक्त (आरुता) छगाये।
'सहस्तज्ञीर्षा' (यजु ३१। १) इस मन्से भगवान् सूर्यके
सिरका पूजन करना चाहिये। 'संभाषषया"' इस मन्त्रसे दोनों
नो ओर 'विश्वतअक्षु"" (यजु- १७। १९) इस मन्रसे