+ अध्याय ८६१
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नियोजनका मन्त्र यों है--' ॐ हां हां हामात्मने
नमः ॥ ॥ १९--२६॥
इसके बाद पूर्ववत् उस जीवचैतन्यके पितासे
संयुक्त होनेकी भावना करके वामा उद्धव-
मुदराद्वारा उसे देवीके गर्भमें स्थापित करे। साथ ही
इस मन्त्रका उच्चारण करे-- ॐ हां हां हामात्मने
नमः ।' देहोत्पत्तिक लिये हृदय-मन्त्रसे पाँच बार
और जीवात्माकी स्थितिके लिये शिरोमन्त्रसे पाँच
बार आहूति दे। अधिकार-प्राप्तिके लिये शिखा-
मन्त्रसे, भोगसिद्धिके लिये कवच-मन्त्रसे, लयके
लिये अस्त्र-मनत्रसे, स्रोत:सिद्धिके लिये शिव-
मन्त्रसे तथा तत्त्वशुद्धिक लिये हृदय-मन्त्रसे इसी
तरह पाँच-पाँच आहुतियाँ देनी चाहिये। इसके
बाद पूर्ववत् गर्भाधान आदि संस्कार करे। पाशकी
शिधिलता और निष्कृति (प्रायश्चित्त) -के लिये
शिरोमन्त्रसे सौ आहुतियाँ दे। मलशक्तिके तिरोधान
(निवारण) -के लिये स्वाहान्त अस्त्र-मन्त्रसे पाँच
बार हवन करे ॥ २७ -३०॥
इस प्रकार पाश-बियोग होनेपर भी सात बार
अस्त्र-मन््रके जपपूर्वक कलाबीजसे युक्त अस्त्र-
मन्त्रूपी कटारसे उस कलापाशको काट डाले।
कह मन्त्र इस प्रकार है -' ॐ हीं प्रतिष्ठकलापाशाय
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आहुति दे दे। इसके बाद शङ्कौ निवृत्तिके
लिये अस्त्र-मन्त्रसे पाँच आहुतियाँ दे और प्रायश्चित्त-
निवारणके लिये फिर आठ आहुतियोंका हवन
करे। आहुतिके लिये अस्त्र-मन्त्र इस प्रकार है--
"ॐ हः अस्त्राय हूं फट्।'॥ ३१--३५॥
इसके बाद हृदय-मन्त्रसे भगवान् हषीकेशका
आवाहन करके पूर्वोक्त विधिसे उनका पूजन और
तर्पण करनेके पश्चात् अधिकार-समर्पण करे।
इसके लिये मन्त्र इस प्रकार है--' ॐ हां विष्णो
रसं शुल्कं गृहाण स्वाहा ।' इसके बाद उन्हें
भगवान् शिवकी आज्ञा इस प्रकार सुनावे-' हरे!
इस पशुका पाश सम्पूर्णतः दग्ध हो चुका है । अब
आपको इसके लिये बन्धनकारक होकर नहीं
रहना चाहिये ।' शिवाज्ञा सुनानेके बाद रौद्री
नाड़ीद्वारा गोविन्दका विसर्जन करके राहुमुक्त
आधे भागवाले चन्द्रमण्डलके समान आत्माको
नियोजित करे-संहारमुद्रद्रारा उसे आत्मस्थ
करके उद्धवमुद्राद्वारा सूत्रमें उसकी संयोजना करे।
तत्पश्चात् पूर्ववत् जलबिन्दु-सदृश उस आत्माकों
शिष्यके सिरपरे स्थापित करे। इससे उसका
आप्यायन होता है। फिर अग्निके पिता-माताका
आदिसे पूजन एवं विसर्जन करके विधिकी
हूं फट्।' तदनन्तर पाश-शस्त्रसे उस पाशको | पूर्तिक लिये विधानपूर्वक पूर्णाहुति प्रदान करे।
मसलकर वर्तुलाकार बनाकर पूर्ववत् घृतपूर्ण | ऐसा करनेसे प्रतिष्ठाकलाका भी शोधन सम्पन हो
सुवार्मे रख दे और कला-शस्त्रसे हौ उसकी | जाता है॥ ३६--४१॥
इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें “निर्वाण-दीक्षाके अन्तर्गत प्रतिष्ठाकलाके शोधनकी
विधिका वर्णन” नामक प्रचासीयाँ अध्याय पूरा हुआ॥८५॥
हा“ 72202:
छियासीवाँ अध्याय
निर्वाण-दीक्षाके अन्तर्गत विद्याकलाका शोधन
भगवान् शिव कहते हैं-- स्कन्द ! पूर्ववर्तिनी | हीं हूं हां।'--यह संधान-मन्त्र है। राग, शुद्ध
कला-प्रतिष्ठाके साथ विद्याकलाका संधान करे | विद्या, नियति, कला, काल, माया तथा अविद्या--
तथा पूर्ववत् उसमें तत्त्व-बर्ण आदिका चिन्तन भी | ये सात तत्त्व तथा र, ल, व, श, ष,
स-येछः
करे । उसके लिये मन्त्र इस प्रकार है--' ॐ हां | वर्ण विद्याकलाके अन्तर्गत बताये गये हैं। प्रणव