[१ महिषा * १८७
तारका अस्तित्व बना रहता है । इस प्रकार उस | लक्ष्मी और यज्ञका उपार्जन किया तथा अन्तमें
तीर्थसे तीन तीर्थ प्रकट हुए। उस समय देवताओं | वे सुदृजनोंके साथ स्वर्गलोकको चले गये।
और गौओँने पवित्र होकर भगवान् शंकरसे | तबसे वह क्षेत्र पिष्पलेश्वरतीर्थं कहलाने लगा।
कहा--'हमलोग अपने-अपने स्थानको जायँगे।| वह सब यज्ञोंका फल देनेवाला पवित्र तीर्थ हे ।
यहाँ सूर्यदेवकी प्रतिष्ठा कौ गयी है। इनके | उसके स्मरणमात्रसे पापोंका नाश हो जाता है ।
प्रतिष्ठित होनेते सब देवता प्रतिष्ठित हो जार्वंगे। | फिर स्नान, दान और सूर्यके दर्शनसे जो लाभ
इसलिये आप हमें आज्ञा दें। सनातन सूर्यदेव | होता है, उसके लिये तो कहना हौ क्या है।
स्थावर-जङ्गमरूप जगत्के आत्मा है । जहौ जगजननी | वहाँ देवाधिदेव महादेवजीके दो नाम हैं--चक्रेशवर
गङ्गा ओर साक्षात् भगवान् श्यम्बक विराज रहे हैं, ओर पिष्पले श्वर । इस रहस्यको जानकर मनुष्य
वहाँ प्रतिष्ठान नामक तीर्थं भी हो। सब अभीष्ट वस्तुओंको प्राप्त कर लेता है।
यों कहकर देवताओंने पिप्पलादसे भी अनुमति ! देवमन्दिरमें सूर्यकी प्रतिष्ठा होनेसे वह क्षेत्र
ली और अपने-अपने निवासस्थानको चले गये। | प्रतिष्ठान कहलाया, जो देवताओंको भी बहुत
वहाँ जितने पीपल थे, कालान्तरे अक्षय स्वर्गको | प्रिय है । यह उपाख्यान अत्यन्त पवित्र है। जो
प्राप्त हुए । प्रतापी पिप्पलादने उस क्षेत्रके अधिष्ठाता | मनुष्य इसका पाठ अथवा श्रवण करता है, वह
देवताके रूपमे भगवान् शंकरकी स्थापना करके | दीर्घजीवी, धनवान् और धर्मात्मा होता है तथा
उनका पूजन किया। फिर गौतमकी कन्याको | अन्तम भगवान् शंकरका स्मरण करके उन्हीको
पत्लीरूपमें प्राप्त करके कई पुत्र उत्पन्न किये, | प्राप्त कर लेता है ।
नागतीर्थकी महिमा
ब्रह्माजी कहते हैं--नागतीर्थक नामसे जो | सका। माता-पिताके सिवा धाय, अमात्य और
प्रसिद्ध क्षेत्र है, वह सब अभीष्ट वस्तुओंको | पुरोहित भी यह बात नहीं जानते थे। उस भयंकर
देनेवाला तथा मङ्गलमय है। बहाँ भगवान् नागेश्वर | सर्पको देखकर पत्नीसहित राजाको प्रतिदिन बड़ा
निवास करते हैं। उनके माहात्म्यकी विस्तृत कथा | संताप होता था। वे सोचते, सर्परूप पुत्रकी अपेक्षा
भी सुनो। प्रतिष्लानपुरमें चन्द्रवंशी राजा शूरसेन | तो पुत्रहीन रहना ही अच्छा है। वह था तो बहुत
राज्य करते थे। वे समस्त गुणोकि सागर और | बड़ा सर्प, किंतु बातें मनुष्योंकी-सी करता था।
युद्धिमान् थे। उन्होंने अपनी पत्नीके साथ पुत्र | उसने पितासे कहा-- मेरे चूडाकरण, उपनयन
उत्पन्न होनेके लिये बड़े-बड़े यल किये दीर्घकालके | तथा वेदाध्ययन- संस्कार कराइये। द्विज जबतक
पश्चात् उन्हें एक पुत्र हुआ, किन्तु वह भयानक | वेदका अध्ययन नहीं करता, तबतक शुद्रके समान
आकारवाला सर्प था। राजाने उस पुत्रको बहुत | रहता है।'
छिपाकर रखा। किसीको इस बातका पता न लगा | पुत्रकौ यह बात सुनकर शूरसेन बहुत दुःखी
कि राजाका पुत्र सर्प है। अन्तःपुर अथवा | हुए। उन्होंने किसी ब्राह्मणकों बुलाकर उसके
बाहरका मनुष्य भी इस भेदसे परिचित न हो | संस्कार आदि कराये। वेदाध्ययन समाप्त करके