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# धारण घज सर्वेशां सत्युंजयमुमापतिम्‌ #

फिर उस बाणकों उसने छाल रंगके भरसे भर दिया ओर

कानतक खींचकर छोड़ दिया | उस बाणके मुखसे जो भस्म

उड़ा; चद दोनों तेनाओँमें सेनिकोके मर्मस्प्लॉपर गिरा।

केवल पाँच पाच्डव, कृपाचार्य और अश्वत्यामाके शरीरसे

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बोछे--दुर्मते ए्ष्वीक यह महान्‌ भार खमख्त देवताओंके

डिये मी दुःशह दै, उसे दू मोहबश केबल अपने दी द्वारा साध्य

भी इस प्रृष्वीपर अवतीणं हुए. । खूर्यवर्चा ही, यह पटोत्कच-

का पुत्र था, जो मारा गया है। अतः समसत राजाओंको

भीकृष्णमें दोष नहीं देखना चाहिये |”

श्रीभगवान्‌ बोछे-राजओ ! देवीने जो कुछ कटा

दै, वह निःखन्देह वैखा दी दै । मैंने देवधमाजमें दूर्यवर्चाको

ओ ब्र दिया था, उसका स्मरण करके ही गुसक्षेत्रमें देवी-

की आराधनाफे चि मैंने इसे नियुक्त कर दिया था।

राजाओंसे पेखा कहकर भगवान्‌ श्रीकृष्ण फिर

अप्डिकासे बोले--देवि ! यह मक्तका मस्तक हे। इसे

अमृतसे सींचों और राहुके सिरकी भाँति अजर-अमर बना दो ।

देवीने वैखा ही किया | जीवित होनेपर उस मस्तकने भगवान्‌

ओकृष्णको प्रणम किया और कदा-- युद्ध देखना भाइता

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