मादेभ्वरखण्ड-कुमारिका खण्ड ] # बर्यरीकका वध तथा उसके पूर्यजन्मके वृत्तान्तका बणन #
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है । इसलिये तुम उस समयकी प्रतीक्षा करो ओर हमारी
बात मानो ।? देवियोंके ऐसा कहनेपर बर्यरीक उदास मनये
खोट आया । «वर्जरीक चण्डिकाके कार्यकी सिद्धिके लिये
बढ़ा भारी युद्ध करेगा, इसब्ल्ये संसारमें चण्डि नामसे
प्रसिद्ध और समस्त विश्वके किये पूजनीय होगा ।› यों कहकर
शद आवी हुईं कव देवियों अन्तर्थान हो गर्वी | भीमेन भी
बर्वरीककों खाथ छेकर आये और अन्य पाष्डबोंसे भी यद
सारा खमाचार कह खुनाया। चुनकर सब पाण्डवोको यदा
आश्चर्य हुआ | सबने बार-बार उसकी प्रशंसा की और
आशस्य त्यागकर विधिके अनुसार तीर्थ-स्नान किया ।
निर
बरबरीकका वध तथा उसके पूर्वजन्मके बृत्तान्तका वर्णन और ग्रन्थका उपसंहार
खतजी कहते है--तदनन्तर पाण्डरवोके धनवाखका
तेरहवाँ वर्ष व्यतीत हो आनेपर जय ८उपप्रभ्य' नामक स्वानमें
सब राजा युद्धके लिये एकत्र हो गये, तब महारथी पाण्डव
भी युद्ध करनेके लिये कुरक्षेत्रमें आकर स्थित हुए।
दवोषन आदि कौरव भी यहाँ पहलेसे ही के हुए ये ।
उस समय भीष्मजीने रथियों और अतिरथिवोकी गणना की
थी । उसका स समाचार गुसचरोंद्वारा सुनकर राजा युधिष्ठिरे
अपने पद्षके राजाओंके बच भगवान् भीकृष्णसे कदा--
“देवकीनन्दन ! पितामद भीष्मने रपियों और अतिरथियोंका
यर्णन किया दै, उसे चुनकर दुर्योधनने अपने पञ्चके
मद्धारयियोंसे पूछा दे कि (केन वीर कितने समयमें सेनासद्वित
पाण्डवो वध कर ५कता है !? इसके उत्तरमें फितामइ
भीष्म तथा क्ृपाचार्यने एक मासमे हम ख्वको मारनेकी
परति की है । द्रोजाचार्यने प्रह दिनोमे, अश्वत्थामाने दस
दिनम तथा सदा मुझे भयभीत छरनेवाकते कर्णने छः दिनमें
सेनासहित पाण्दवोंचो मारनेकी घोषणा की र । अतः पटी
प्रश्न मैं अपने पञ्चके महारयियोंके खामने रखता हूँ---'कौन
कितने € पये सेनासदित कोरबोकों मार सकता दे !?
राजा युधिष्ठिरका यह बचन सुनकर अन बोले--
महाराज ! भीष्म आदि महारथियोंने जो प्रतिदा या घोषणा
की दै क् सर्वधा असब्भत दै; क्योकि विजय और पजय
पदतले किया हुआ निश्चय शठा रोता दे । आपके पक्षमें भी
जो वीर राजा टैः वे युद्धके छिये कमर कसकर रणभूमिमें डटे
हुए हैं। देखिये--ये नरभेट्ट काच्के «मान दुर्घर्द है
छुपद, विराटः कैकेव, उइदेव, शत्यः बुर्जय चीर चेकितानः
धृष्टयुपन, पु्रसदित महापराक्रमी घटोत्कच, महाधनुरषर मीमनेन
आदि तथा कभी किसीसे परा न दोनेवाले भगवान् भीकृष्ण---
ये खच आपके पश्चमे हैं। मैं तो समझता हूँ, इनमेंले एक-एक
वीर सारी कौरवसेनाका संहार कर सकता है। इनके रते
कौरव इस प्रकार भागेंगे जेषे शिले बरे हुए पग । बूदे
भीष्मे, बूढ़े वावा द्रोण और कृपते तथा अश्रस्थासासे
अपनेकों क्या भय है ! अथवा यदि चित्तकी शान्तिके चिवि
आप जानना ही चाहते हैं, तो मेरी बात सुनिये--मैं अकेला
ही युद्धमें छेनासद्वित समस्त कौरवोकों एक दिने नष्ट कर
सकता हूँ ।
अज्जुनकी यह बात सुनकर घटोत्कचके पुत्रने हँसते
हुए कद्ा--महात्मा अर्जुनने जो प्रतिशा की है; बह मुझे नहीं
रुद्दी जाती, क्योंकि इनके द्वारा दूसरे वी रोपर महान् आक्षेप
हो रहा दै। अतः अर्जुन और ओऔकृष्णसद्दित आप लव छोग
चुपचाप खड़े रहें; मैं एक ही मुहूर्त भीष्म आदि सबको
यमलछोक्म पहुँचा दूँगा। मेरे भयङ्कर षनुषको, इन दोनों
अक्षय तूणीरोंकरों तथा भगवती सिद्धाम्बिकाके दिये हुए इस
स्वह्को भी आपलोग देखें । ऐसी दिव्य बस्नु मेरे पाल हैं।
तभी मैं इस प्रकार सबको जीतनेकी बात कहता हूँ। बर्बरीक-
का यद वचन सुनकर सब क्षत्रिय बढ़े विस्मयकों परास हुए. ।
अर्चुनने भी आक्षेप करनेके कारण छित हो ओऔीकृष्णकी
ओर देखा । तेतर भीकृष्तने कह्टा-“पार्थ ! घटोश्कलके इस
पुने भपनी शक्तिके अनुरूप दी बात दी है। इसके विषयरमे
बढ़ी भदूमुत बातें सुनी जाती हैं। पूर्यकारूमें इसने पाताले
जाकर नौ करोड़ पाशी नामक देत्योंकों क्षणमरमें मौतके
घाट उतार दिया या ।?
तत्पश्चात् यादयेन्द्र भ्रीकृष्णने घ्दोत्कचके पुत्रसे
कह्ा--यत्स | भीष्म, द्रोण, कृप, अश्वत्थामा, कर्ण और दुर्योधन
आदि महद्वारथियोंके द्वारा सुरक्षित कोरवसेनाकों, जिसपर
विजय पाना महादेवजीके लिये भी कठिन दै, तुम इतना शीघ्र
कैसे मार सकते हो ! द्द पास ऐथा कौन-सा उपाय है !
समक्त प्राणियोंके अधीक्ष* भगवान् य्रासुदेवके इस प्रकार
पूछनेपर सिंहके चमन वश्चःस्यड, पर्वताकार शरीर तथा अतुछित
बलसे सम्पन्न एवं नाना प्रकारके आभूषणोंसे विभूषित बर्वरीकने
चरं दौ धनुष चढ़ाया और उसपुर बाण सन्धान किया।