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द्वितीयोऽथ्यायः
देवताओंके तेजसे देवीका प्रादुर्भाव ओर महिषासुरकी सेनाका वध
विनियोग
यथावृत्तं तयोस्तद्रन्पहिषासुरचेष्टितम्।
| ॐ> मध्यमचरित्रस्य विष्णुत्ऋषिमंहालष्मीर्देवता, त्रिदशाः कथयामासूर्दवाभिभवचिस्तरम् ॥ ५ #
उष्णिक् छन्दः, शाकम्भरी शक्तिः; दुर्गा जीजम,
वायुस्तत्त्वम्, यजुर्वेदः स्वरूपम्, श्रीमहालक्ष्मी प्रत्यर्थं
प्रध्यमचरित्रजपे धिनियोगः।
55 मध्यम चरित्रके निष्णु ऋषि, महालक्ष्मी
देवता, उष्णिक् छन्द, शाकम्भरी शक्ति, दुर्गा
बीज, वायु ततत्र और यजुर्वेद स्वरूप है।
श्रीमहालक्ष्मीको प्रसशताके लिये मध्यम चरित्रके
पाठसें इसका विनियोग है।
श्वान
ॐ> अक्षस्नक्परशु गदेषुकुलिशं पदं धनुष्कुण्डिकां
दण्डं शक्तिमसिं च चमं जलजं घण्टां सुगश्याजनम्)
शूलं पाशसुदर्शने च दतीं हस्तैः प्रवालप्रभां
सेवे सैरिभमर्दिनीमिह महाल्पी सरोजस्थिताम् ॥ `
तै कमलके आसनपर बैदौ हुई पदिषासुरमर्दिनो
भगवती महालक्ष्यीका भजन करता हूँ, जो अपने
हाथोंमें अक्षमाला, फरसा, गदा, बाण, वचर, पद्म,
धनुष, कण्डिका, दण्ड, शक्ति, ख, ढाल, शंख,
ष्टा, मधुपात्र, शुल, पाश और चक्र पारद
करतो हैं तथा जिनके श्रोविग्रह्मी कान्ति मके
एमान लाल रै ।]
"> ही" ऋषिरुवान 4६ /
देवासुरपभ्ुग्युद्धं/ पूर्णमब्दशत॑ पुरा।
सूर्ेद्धाग्न्यनिलेन्दूनां यमस्य वरूणस्य च।
अन्येषां -चाधिकारान् स स्व्यपेत्ाधितिष्ठति॥ ६ ॥
स्वर्गात्निराकृताः स्वं तेषं देखंगणा भुवि।
विचरन्ति यथा भर्त्यां महिषरेण दुरात्मना ॥ ७॥
एतद्वः कथितं सर्वममरारिविच्चेष्ठितम्।
शरणं वः प्रपनाः स्मो वधस्तस्य सिचिन्त्यताम्॥ ८ ॥
ऋषि कहते हैं -- ॥ १॥ पूर्वकालमे देषताओं
और अपुमे पूरे सौ जर्षोत्क घोर संग्राम
हुआ था। उसमें असुरोंका स्वामी महिषासुर था
और देवताओंके नायक इन्द्र थे। ठस युद्धमें
देबताओंकौ सेना महाबली असुरोसे परास्त हो
गयी। सम्पूर्ण देवताओंकों जीतकर महिषामुर
इन्द्र बनं ठैखा॥२-३॥ तत्र पराजित देवता
प्रजापति ब्रह्याजीको आगे करके उसा स्थानपर
गये, जहाँ भगवान् शंकर और विष्णु त्रिराजमान
शे ॥#॥ देवताओंने महिषासुरके पराक्रम तथा
अपनी पराजयका सधान्नव् वृत्तान्त उन दोनों
देवे शे भे विस्तारपूर्वक कह सुनाया ॥४५॥ ये
बोले-' भगवन् ! महिषासुर सूर्य, इन्द्र, अग्नि,
बायु, चन्द्रमा, यम, वरुण तथा अन्य देबताओंके
भो अधिकार छोनकर स्वय॑ हौ सबका अधिष्ठाता
बना यैटा हैं॥६॥ उस दुशत्मा महिगने समस्स
पदिषेऽसुगणाम्थिपे देवानां च पुरंदरे॥२॥ | देबताओंको स्वर्गसे निकाल दिया हैं। अब थे
तत्रासुरैमहावीर्यदेवसैन्यं पराजितम्।
जित्वा च सकलान् देवानिन्द्रो5भून्महिषासुर: ॥ ३ ॥
ततः पराजिता देवा: पचोनिं प्रजापतिम्।
पुरस्कृत्य गतास्तत्र यवेशगरुडध्वजौ ॥ ४॥
मनुष्योंकी भाँति पृथ्वी ५९ विचरते हैं ॥ ७॥ दैत्मौकीौ
शाह ररी करतूत हमने आपलोगोंसे कह सुनायौ।
अब हम आपकी हो शरणमे आये हैं। उसके
कधा कोई उपाय सोचिये ॥ ८॥