ताराश्च विल्लालश्च कुमुदो वेणुपर्वतः।
एकभृङ्गो पहाशैलो गजशेलझ पिञ्चकः॥ २९॥
पञ्चशौलोऽध कैलासो हिपवाश्चचलोत्तपः।
इत्येते देवचरिता उत्कटाः पर्वतोत्तमाः॥ ३०॥
अरुणोद सरोवर के पूर्वं में केसराचल, त्रिकूट,
सन्िर.पतद्ग, र्चक, निषध, वसुभार, कलिङ्ग, त्रिशिख,
समूल, वमुवेदि, कुरर, सानुमान्, ताप्रात, विशाल, कुमुद्,
वेणुपर्वत, एकमृड्र, महाशैल, गजशैल, पिञ्ज, पञ्चैल,
कैलास ओर पर्वतो में उत्तम हिमवान्- ये सभौ देवताओं
द्वारा सेवित अति उत्तम पर्वत हैं।
भह्मभद्रस्य सरसो दक्षिणे केमराचलः।
शिखियवास्ष वैदूर्य: कपिलो गपादनः॥३१।
जारुषिश्ष सुराप्युश्च सर्वग्याथलोत्तम:।
गुप गुप कंक: कफ्लि एवं चा।३२॥
विरजो भद्रजालक्च सुसकक्ष महावल:।
अञ्जनो परधुषांस्तद्रचित्रयृूज्े महालव:॥ ३ ३॥
कुपुदो मुकुस्कैव पाण्डुरः कृष्ण एव चा
पारिजातो पहाशैलस्तथेब कपिलाचल:॥ ३ ४॥
सुषेण: पुण्डरीक पहामेघस्तवैव च।
एते पर्वतराज स्रिद्धणजर्वसेविता:॥ ३५॥
महाभद्र सरोवर के दक्षिण में- केसराचल, शिखिवास,
सर्वगन्ध, सुपार्श, सुपक्ष, कङ्क, कपिल, पि, भद्रजाल,
सुसक, महाबल, अञ्जन, मधुमान्, चित्रश्नृद़्, महालय,
कुमुद, मुकुट, पाण्डुर, कृष्ण, पारिजात, महाशैल,
कपिलाचल, सुषेण, पुण्डरीकं और महामेघ- ये सभी
पर्वतराज सिद्धो और गन्धर्व सेवित है।
असिततोदस्य सरमः पश्चिमे केसराचल:।
शद्बुकूटो5ध वृषभो हंसो नागस्तयैव था। ३६॥
कालाञ्जन: शुकशैलो नीलः कमल एव था
पारिजातो महाशैलः शैल: कनक एव च॥३७॥
पुष्पक सुमेघझ वाराहो विरजास्तथा।
मुरः कपिल्छछैव पहाकपिल एव चा। ३८॥
इत्येते देवगर्यासिद्धयदैश्च सेविता:।
सरसो पानसस्येह उत्तरे केसराचलः॥ ३९॥
असितोद सरोवर के पश्चिम में केसराचल, शंखकूर,
वृषभ, हंस, नाग, कालाङ्खन, शुक्ररौल, नील, कमल,
पारिजात, महाशैल, शैल, कनक, वाराह, विरजा, मयूर,
कुर्मपहापुराणम्
कपिल तथा महाकपिल- ये सभी (पर्वत) देव, गन्धव
और सिद्धो के समूहों द्वारा सेवित ह । मानसरोवर के उत्तर में
केसराचल नामक पर्वत है।
एतेषा शैलमुख्यानामसरेषु य्याक्रमम्!
सति चैवानरद्रोण्व: सरांसि च वनाति चा।४ ०॥
वसन्ति तत्र मुनयः सिद्धा व ब्रह्मभावित:।
प्रमन्नः शासरजस: सर्वदुः खविवर्ि्जिताः॥ ४ १॥
इन प्रमुख पर्वतो के मध्य यथाक्रम से 'अन्तरद्रोणी'
नामक जलाशय, सरोवर ओर अनेक वन हैं। वहाँ मुनिगण
और सिद्ध निवास करते हैं, जो ब्रह्मभावयुक्त होने के कारण
शान्त हुए रजोगुण वाले, प्रसप्रचितत ओर सभो दुःखों से
रहित ह ।
चतुर्दशसहस्राणि योजनानां महापुरी।
मेरोरुपरि विख्याता देवदेवस्य वेबस:॥ १॥
तत्रास्ते पगवान् ब्रह्मा विश्वात्पा विश्वपावनः।
उपास्यमानो योगीनेर्ुनीद्रोपेदरशंकरें:॥ २॥
सूतजी बोले- देवाधिदेव ब्रह्मा की मेरु के ऊपरी भाग में
चौदह हजार योजन विस्तृत नगरी विख्यात है। वहां
विश्वभावन विश्वात्मा भगवान् ब्रह्मा निवास करते हैं।
योगीन्द्र, मुनीन्द्र, उपेन्द्र (विष्णु) और शंकर द्वार उनकी
उपासना की जाती है।
वहाँ ईशान देवेश्वर विश्वात्मा प्रजापति की भगवान्
सनत्कुमार नित्य हो उपासना करते हैं। वे योगात्मा सिद्ध,
ऋषि, गन्धर्व तथा देवताओं से पूजित होते हुए परम अमृत
का पान करते हुए वहाँ निवास करते हैं।