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१८८ * संक्षिप्त ब्रह्मपुराण *

सर्पने अपने पितासे कहा-' नृपश्रेष्ठ ! मेरा विवाह | लिये कैसे प्रात्त हो सकती है, बताओ।'

कर दीजिये। मुझे स्त्री प्रात करनेकी इच्छा हो रहो |. बूढ़े अमात्यने कहा--' महाराज ! आपके मनमें

है। मेरा विश्वास है, ऐसा किये बिना आपका कोई | जो बात है, मैं उसे समझ गया। अब आप मुझे

भी कार्य सिद्ध न हो सकेगा। पुत्रका यह निश्चय | कार्य-सिद्धिके लिये जानेकी आज्ञा दे ।' महाराज

जानकर राजाने अमात्योंको बुलाया और उसके | शूरसेनने भूषण, वस्त्र तथा मधुर वाणीसे बूढ़े

विवाहके लिये इस प्रकार कहा--'मेरा पुत्र | मन्त्रीका सत्कार करके उन्हें बहुत बड़ी सेनाके

युवराज नागेश्वर सब गुणोंकी खान है। वह | साथ भेजा । वे पूर्वदेशमें जाकर महाराज विजयसे

बुद्धिमान, शुर, दुर्जय तथा शत्रुओंको संताप | मिले और नाना प्रकारके वचनों तथा नीतिजनित

देनेवाला है । उसका विवाह करना है। मैं बूढ़ा | उपायोंसे राजाको संतुष्ट किया । मन्त्रीने राजकुमारी

हुआ। अब पुत्रको राज्यका भार सौंपकर निश्चिन्त भोगवती और युवराज नागका विवाह तय करा

होना चाहता हूँ। आपलोग मेरे हित-साधनमें | दिया। राजा विजयने कन्या देना स्वीकार कर

तत्पर हो उसके विवाहके लिय प्रयत्न करें।' | लिया। बूढ़े मन्त्री लौट आये ओर शूरसेनसे

राजाकी बात सुनकर अमात्यगण हाथ जोड़कर | उन्होंने विवाह निश्चित होनेका सब वृत्तान्त सुना

बोले-' महाराज ! आपके पुत्र सब गुणोंमें श्रेष्ठ | दिया। तदनन्तर बहुत समय व्यतीत हो जानेपर

हैं और आप भी सर्वत्र विख्यात है । फिर आपके | वृद्ध मन्त्री अन्य सब सचिवोंको साथ लेकर

पुत्रका विवाह करनेके लिये क्या मन््रणा करनी है | सहसा राजा विजयके वहाँ पहुँचे और इस प्रकार

और किस बातकी चिन्ता ।' अमात्योंके यों कहनेपर | बोले--' राजन्‌! महाराज शुरसेनके राजकुमार नाग

नृपश्रेष्ठ शूरसेन कुछ गम्भीर हो गये। वे उन | बड़े हो बुद्धिमान्‌ और गुणोंके समुद्र हैं। वे स्वयं

अमात्योंकों यह बताना नहीं चाहते थे कि मेरा | यहाँ आना नहीं चाहते। क्षत्रियोंक विवाह अनेक

बेटा सर्प है; तथा ये भी इस बातसे अपरिचित ही | प्रकारसे होते हैं। अत: यह विवाह शस््रौ द्वारा हो

रहे। राजाने फिर कहा-'कौन कन्या गुणोंमें |जाय तो अच्छा है।'

सबसे अधिक है तथा कौन राजा ऊँचे कुलमें | वृद्ध मन्त्रीकी बात सुनकर राजा घिजयने उसे

उत्पन्न, श्रीमान्‌ और उत्तम गुणोंके आश्रय हैं ?" | सत्य हौ माना और भोगवतीका विवाह शस्त्रके

राजाका यह कथन सुनकर अमात्योमेंसे एक परम | साथ ही शास्त्र-विधिके अनुसार सम्पन्न हुआ।

बुद्धिमान्‌ पुरुष, जो महाराजके संकेतको समझनेवाले | विवाहके पश्चात्‌ महाराजने बड़े हर्षके साध

थे, उनका विचार जानकर बोले-“महाराज! | बहुत-सी गौएँ, सुवर्णं ओर अश्च आदि सामग्री

पूर्वदेशमें विजय नामके एक राजा हैं। उनके पास | दहेजमें देकर कन्याको विदा किया। साथ ही

घोड़े, हाथी और रत्नोंकी गिनती नहीं है। महाराज | अपने अमात्योंकों भी भेजा। बूढ़े मन्त्री आदि

विजयके आठ पुत्र हैं, जो बड़े धनुर्धर हैं। उनकी | सचिवोंने प्रतिष्ठाममें आकर महाराज शूरसेनको

बहिन भोगवती साक्षात्‌ लक्ष्मीके समान है। राजन्‌! उनकी पुत्रवधू समर्पित कर दी। राजा विजयने जो

वह आपके पुत्रके लिये सुयोग्य पत्नी होगी।' | विनयपूर्ण वचने कहे थे, उनको भी सुनाया और

यूढे अमात्यकौ बात सुनकर राजाने उत्तर | उनकी दो हुई दहेजकी सामग्री--विचित्र आभूषण,

दिया--' राजा विजयकी वह कन्या मेरे पुत्रके | दासियाँ तथा वस्त्र आदि निवेदन किये। इन सब

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