श्ध्ड] [_भ्रह्माण्ड पुराण
वभुवुरथ देतेयास्तयाष्टौ तु महाबला: ।
इन्द्रणत्र् रमित्रध्नो विद्युन्माली विभीषणः ।
उग्रकर्मोग्रधन्वा च विजयश्रुतिपा रग: ॥ ६२
सुमोहिनी कुमुदिनी चित्रांगी सुन्दरी तथा ।
चतस्रो वनितास्तस्य व्भूदु: प्रियदर्शना: ।। {३
तमसेवंत कालज्ञा देवाः सर्वे सवासवाः ।
स्यंदनास्तुरगा नागा: पादाताश्च सहस्रशः ।। १४
दो चमर भी चन्द्रमा के समान थे जो सजोव थे और ब्रह्माजी के ही
द्वारा निर्मित हुए थे । इसके निषेवण करने का यह प्रभाव था कि सेवन
करने वाले कोई भी रोग ओर दुःख नहीं हुआ करता था। उनको भी
इसने धारण किया था ।८। उसका जो आतपत्र (छत्र) भी पहिले ही निर्मित
किया हुआ ब्रह्माजी ने ही प्रदान किया था जिसकी छाया में जो भी उप-
विष्ट होते हैं उनको करोड़ों अस्त्र भी कुछ बाधा नहीं दिया करते हैं ।६।
विजय नामक धरमुष और रिपरुओं का घात करने वाला शंख था । उनके
अतिरिक्त अन्य-अन्य भी बहुत कीमती भूषण प्रदान किये थे ।१०। उसको
जो सिंहासन प्रदान किया था वह अक्षय था और सूर्य के समान था उस
पर वह बैठकर उत्तेजित रत्न के ही सहश अतीव तेजस्वी हो गया भा ।११।
उसके आठ देतेय महा बलवान हुए थे--उनके नाम ये थे--इन्द्र शत्रु--
अमित्रष्न-विद्यु स््माली-विभीषण-- उग्र कर्मा--उम्रधन्वा--विजय--श्रुति-
पारग ।१२। उसकी चार प्रिय दर्शन वाली पत्नियाँ थी जिनके नाम ये हैं--
सुमोहिनी--कुमुदिनी--चित्रांगी और सुन्दरी ।१३। काल के ज्ञान रखने
वाले इन्द्र के सहित सभी देवगणों ने उसकी सेवा की थी। उसके पास
सहस्रौ ही रथ-अश्व-गज और पदाति सैनिक थे ।१४।
संबभूव महाकाया महांतो जितकाशिनः ।
बभूबुर्दानवाः सर्वे भृगुपुत्रमतानुगा: ॥ १५
अचंयंतो महादेवमास्थिता: शिवशासने ।
बभूवुर्दानवास्तत्र पुत्रपौन्नधत्तान्विता: ।
गृहे गृहे च यज्ञाश्च संबभूवुः समंततः ॥१६