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+ पुराण परथ पुण्यौ भविष्य सर्वसौख्यदम् +
{ संक्षिप्त भविष्यपुराणाडु
भगवान् सूर्यके सम्पूर्ण शरीस्का स्पर्श करना चाहिये। "श्रीश्च
ते ल्ष्मीश्चः' (यजु- ३११२२) इस मन्त्रका उच्चारण करते
हुए. विधिपूर्वक भगवान् सूर्यनारायणका श्रद्धा-भक्तिपूर्वक
पूजन- अर्चन करना चाहिये। (अध्याय १९८--२०२)
भगवान् भास्करके व्योम-पूजनकी विधि तथा आदित्य-माहात्प्य
विष्णु भगवानले पूछा--हे सुरश्रेष्ठ चतुगनत ! अब
आप भगवान् आदित्यके व्योम-पूजनकी विधि बतलायें।
अष्ट-शृङ्गयुक्त व्योमस्वरूप भगवान् भास्करकों पूजा किस
प्रकार करनी चाहिये।
ब्रह्माजीने कलम - महावाहो ! सुवर्ण, चाँदी, ताम्र तथा
तत्रेहा आदि अष्ट घातुऑसे एक अष्ट भृङ्गपय व्योम बनाकर
उसकी पूजा करनी चाहिये। सर्वप्रथम उसके मध्यमे भगवान्
भास्करकी पूजा करनी चाहिये । "महिषासो." इस मन््रसे
अनेक प्रकारके पुष्पोंकों चढ़ाना चाहिये । ब्रातारपिजँ"' (यजु
२० । ५०) तथा 'उद्दीरतामबर" (यजुः १९ । ४९) इत्यादि
वैदिक मन्त्रोंसे शृगौकी तथा “नमोऽस्तु सर्पेभ्यो" (यजुः
१३।६) इस मन्रमे व्योपपीठकी पूजा करनी चाहिये । जो
व्यक्ति ग्रहोके साथ सब पापोंकों दूर करनेवाले व्योम-पीटस्य
भगवान् सूर्यको नमस्कार कर उनका पूजन करता है, उसकी
सभी कामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है।
भगवान् भास्करकी पूजा करके गुरुक सुन्दर वस्त्र, जूता,
सुवर्णकी औगूठी, गंघ, पुष्प, अनेक प्रकारके भक्ष्य पदार्थ
निवेदित करने चहिये । जो व्यक्ति इस विधिसे उपवास रखकर
भगवान् सूर्यकी पूजा-अर्चना करता है, वह बहुत पुत्रोंचाला,
बहुत धनवान् ओर कीर्तिमान् हो जाता है। भगवान् सूर्यके
उत्तरायण तथा दक्षिणायन होनेपर उपवास रस्छ्कर जो व्यक्ति
उनकी पूजा करता है, उसे अश्वमेध-यज्ञ करनेका फल, विद्या,
कीर्ति और बहुतसे पुत्रोंव प्राप्ति होती है। चन्द्रप्रहण और
सूर्यग्रहणके समय जो व्यक्ति उपवास रखकर भगवान्
भास्करकी पूजा-अर्चना आदि करता है, वह बह्मलोकको प्राप्त
होता है।
इस प्रकार भगवान् भास्करके रत्रपय व्योमकी प्रतिमा
उक्षण
बनाकर उसकी प्रतिष्ठा ओर वैदिक मन्त्रोंसे विविध
उपचारो उसकी पूजा करे । पूजनके अनन्तर ऋग्वेदक पाँच
ऋचाओंसे भगवान् आदित्यकी परास्तुति करे! । इसके बाद
भास्करको अव्यङ्ग निवेदित करे । अनन्तर भगवान् सूर्यको
दीपा, सूक्ष्मा, जया, भद्रा, विभूति, विमत्पर, अमोघा, विद्युता
तथा सर्यनोमुखी मवाल नौ दिव्य शक्तियोंका पूजन करे ।
इस विधिसे जो भगवान् सूर्यकी पूजा करता है, वह इस
लोक और परलोके सभी मनःकामनाओंको पूर्ण कर लेता
है। पुत्र चाहनेबालेक्ो पुत्र तथा धन चाहनेयालेको घन प्राप्त हो
जाता है। कन्यार्थीकों कन्या और वेदार्थ वेद प्राप्त हो जाता
है। जो व्यक्ति निष्कामभावसे भगवान् सूर्यकी पूजा करता है,
उसे मोक्षकी प्राप्ति हो जाती है। इतना कहकर ब्रह्माजी दान्त
हो गये।
व्यासजीने पुनः कहा--हे भीष्म ! अब आप ध्यान करने
योग्य ग्रहोंके स्वरूपक्ा तथा भगवान् आदित्यके माहात्प्यका
श्रवण करें। भगवान् सूर्यका वर्ण जपाकुसुमके समान स्थल
है। वे महातेजस्वी श्वेत पद्मपर स्थित हैं। सभी लक्षणोंसे
समन्वित है। सभी अलंकारोंसे विभूषित हैं। उनके एक मुख
है, दो भुजाएँ हैं। रक्त यस्त धारण किये हुए वे ग्रहोंके मध्यमे
स्थित हैं। जो व्यक्ति तीनों समय एकाग्रचित्त होकर उनके इस
रूपका ध्यान करता है, वह शीघ्र ही इस लोकमें धन-धान्य
प्राप्त कर लेता है और सभी पापोंसे छूटकर तेजस्वी तथा
बलवान् हो जाता है। श्त वर्णके चद्धमा, रक्त वर्णक मंगल,
रक्त तथा इयाम-मिश्रित वर्णके बुध, पीते यर्णके बृहस्पति,
शङ्कं तथा दूधके समान धेते वर्णक शुक्र, अज़्नके समान
कृष्ण वर्णक शनि, ल्म्रजावर्तके समान नील वर्णके गहु और
केतु कहे गये हैं। इन ग्रहोंके साथ प्रहे अधिपति भगवान्
चौरस्तनि धर्मीणः प्रथमान्यासन् ।
4 न
चतवारि वाक् परिमिता पटति तानि विदुर्शाह्मणा ये पनौषिणः । गुहा प्रीणि निहिता नेङगयन्ति तुरीय काचो मनुष्या खदन्ति॥
५.
कुं
मि वरुणमश्निकहुरधो दिष्यः सर सुपर्णों गरुत्मान् । एकं सद् विपरा बहुधा वट्यप्नि यम मातरिश्रानमाहु: ॥
विषा हरयः सूपां आपो वस्र टिकमुततन्वि। त = ञदवनुतरनसदनादृतस्वादिद् पतेन पृथियों. व्युघते ॥
यो रत्रा वसुद य सुटः सरस्कति तमिह घातते कः ।
(ऋचेद १॥ १६४ | ४३, ४५--४७,४९)