५२ श्रीविष्णुपुराण
( अ. १३
जैल्मेक्याश्रयतां प्राप्त परं स्थानं स्थिरायति ।
स्थान प्रप्रा परं धृत्वा या कुक्षित्रिवरे धुवम् ॥ १०१
यश्चैतत्कीत्तये्नित्यं धरुवस्यारोहणं दिवि ।
सर्वपापविनिर्मुक्तः स्वर्गलोके महीयते ॥ १०२
स्थानभ्रदौ न चाप्रोति दिवि वा यदि वा भुवि ।
जो इसकी महिमाका वर्णन कर सके ? जिसने अपनी
कोखने उस धुवकों धारण करके त्रिकोकीका आश्षयभूत
अति उत्तम स्थान प्राप्त कर छिया, जो भविष्यमें भी स्थिर
रहतेवाला है' ॥ १००-१०१॥
जो व्यक्ति धुवके इस दिव्यल्त्रेक-प्राप्तिके प्रसज्ञका
कीर्तन करता है बह सन पापोंसे मुक्त होकर स्वर्गल्ोकमें
पूजित होता है ॥ १०२ ॥ वह स्वर्गमें रहे अथवा पृथिवीमे,
कभी अपने स्थानसे च्युत नहों होता तथा समस्त मड़न्लोंसे
सर्वकल्याणसंयुक्तो दीर्घकाल स जीवति ॥ १०३ | भरपूर रहकर बहुत कालतक जीवित रहता है ॥ १०३ ॥
ऋ ४ -
इति श्रीविष्णुपुराणे प्रथमेंडशे द्वादशोऽध्यायः ॥ १२ ॥
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तेरहवाँ अध्याय
राजा वेन और पृथुका चरित्र
श्रीपङार उवाच
धुवाच्छिष्टिं च भव्यं च भव्याच्छम्भुर्व्यजायत ।
दिष्टेराधत्त सुच्छाया पञ्चपुत्रानकल्मघान् ॥। ९
रिपुं रिपुक्षय॑ विष्र॑ वृकलं वृकतेजसम् ।
रिपोराधत्त वृहती चाक्षूर्ष सर्वतेजसम् ॥ २
अजीजनत्पुष्करिण्यां वारुण्यां चाक्षुषो मनुम् ।
प्रजापतेरात्पजायां वीरणस्य महात्मनः ॥ ३
मनोरजायन्त दशा नड्ब॒लायां महौजसः ।
कन्यायां तपतो श्रष्ठ॒वैराजस्य प्रजापते ॥ ४
कुरुः पुरः शतदयम्रस्तपस्वी सत्ययाञ्छुचिः ।
अम्रिप्टोमोउतिराज्रश्च सुझ्ुप्तनश्नेति ते नव ।
अभिमन्युश्न दशमो नडबलायां महौजसः ॥ ५
कुरोरजनयत्पुत्रान् षडाप्ेयी महाप्रभान्।
अङ्कं सुमनसं ख्याति क्रतुयद्धिरसं शिविप् ॥ ६
अङ्खा्सुनीथापत्यं वै वेनमेकमजायत ।
प्रजार्थमृषयस्तस्य ममन्धुर्दक्षिणे करम् ॥ ७
वेनस्य पाणौ मथिते सम्बभूव महामुने ।
वैन्यो नाम महीपालो यः पृथुः परिकीर्तितः ॥ ८
येन दुग्धा मरही पूर्वं प्रजानां हितकारणात् ॥ ९
श्रीपराक्चरजी बोले--हे मैत्रेय ! धवसे [ उसकी
पलीने ] शिष्टि और भव्यको उत्पन्न किया और भव्यसे
ङम्भुकः जना हुआ तथा शिष्टिके द्वारा उसकी पत्री
सुच्छगयाने रिपु, रिपुक्षय, विप्र. वकल और वृकतेजा
नामक पाँच निष्पाप पुत्र उत्पन्न किये | उनमेंसे रिपुके द्वारा
बृहतीके गर्भे महातेजस्वी चाक्षुपषका जन्म हुआ
॥ १-२॥ चाक्षूषने अपनी पार्या मुष्करणीसे, जो
वरुण-कुलमें उत्पन्न और महात्मा वीरण प्रजापतिको पुत्री
थी, मनुको उत्पन्न किया [ जो छठे गन्वन्तरके अधिपति
हुए ] ॥ ३॥ तपस्थियोँमें श्रेष्ठ मनुमे वैराज प्रजापतिकी
पुत्री नदतलके गर्भमें दस महातेजस्वी पुत्र उत्पन्न
हुए ॥ ४॥ नक्बत्प्रसे कुरु, पुरु, शातघुम्न, तपस्व,
सत्यवान्, शुचि, अम्निप्टोम, अतिरात्र तथा नवां सुद्यूश्न और
दसवां अभिमन्यु इन पहातेजस्वी पुत्रक जन्म
हुआ ॥ ५॥ कुरुकेः द्वारा उसकी पत्री आप्रेयोने अङ्ग,
सुमना, ख्याति, क्रतु, अब्विरा और दिनि इन छः परम
तेजस्वी पुत्रोंकों उत्पन्न किया ॥ ६ ॥ अद्कसे सुनीथाके वेन
नामक पुत्र उत्पन्न हुआ । ऋषियोंने उस (बेन) के दाहिने
हाथका सन्तानके लिये मन्थन किया था।७॥ हे
महामुने ¦ वेनके हाथका मन्थन करनेपर उससे वैन्य
नामक महीपाल उत्पत्र हुए जो पृथु नामसे बिख्यात हैं
और जिन््हेंने प्रजाके हितके लिये पूर्वकाछमें पृथिवोको
दुहा था॥ ८-९ ॥