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श्र ] [ बह्याण्डःपुराण

लक्षणनररिका्ेस्तैरष्टधा च व्यवस्थिता: 4

सिद्धात्मानो मनुष्यास्ते गन्धवें: सह-धर्मिणः ॥५०

पञ्च मोऽनुग्रहः सगं श्चतुरद्धा स व्यवस्थितः ।

विपर्ययेण शक्त्या च सिद्धमुख्यास्तथेवः च ॥५१.

निवृत्ता वतं मानाश्च प्रजायंते पुनः पुनः ।

भूतादिकानां सत्त्वानां षष्ठः सर्ग: स उच्यते ॥।५२

स्वादनाश्चाप्यलीलाश्च ज्ञेया-भूदादिकांश्च तें ।

भ्रथमो महतः सर्गो विज्ञेयो ब्रह्मणस्तु सः ॥५३

तन्माक्राणां द्वितीयस्तु भूतसगंः स उच्यते ।

वेकारिकस्तृतीयस्तु चे द्वियः सग उच्यते (५४४

इत्येते प्राकृताः सर्गा उत्पन्नाः बुद्धिपूर्वका: ।

मुख्यसर्गं रचतुर्थस्तु मुख्या वे स्थावराः स्मृताः ५५

ति्यकसोतः ससर्गस्तु तेर्यग्योन्यस्तु पञ्चमः ।

तथोद्ध वसोतसां सर्गः षष्ठो. दैवत उच्यते ॥५६

बेःनारक आदि लक्षणों से आठ प्रकार सेः व्यवस्थित होते है। वे

मनुष्य गन्धर्वोके साथ. धमं बाले होते हए सिद्ध आत्मा वाले हैं ।५०। पाँचवाँ

अनुग्रह नामक सर्गाहैजो चार प्रकारका व्यवस्थित है । विषयंय से ओर

शक्ति से-और- शक्ति से उसी भांति सिद्ध मुख्य हैं ।५१। निवृत्त और वर्तमान

बार-बार उत्पन्न हुंआ-करते ह+ भूतादिक सत्वों.का-जो सर्ग है कह -छठा

सर्ग कहा जाता है ।५२। ओर श्रुतादिक स्वादन.आओौर आया गोल जानने के

योग्य हैं; प्रथमः महत्‌ का सर्गं है वह ब्रह्मा कासर्गा तन्मात्रभोंकाहोवादहै

ओर भरतसर्ग कहा जाया करता है और भूतसर्भ कहा जाया. करता. है ।

तीसरा सर्म- वैकारिक है जो इन्द्रिय सर्गकेनामसे पुकारा जाता है ।५४।

येसभी प्राकृत सर्गाँ जो बुद्धि पूर्वक समुत्पन्न हुए हैं । प्रमुख सर्म चौथा है

ओर निचय ही स्फावर मुख्य. कटे ` मये है ।५५। जियक्‌ स्त्रोत तो तिर्थाग

योनियों वाला पांचर्वा होता है. उसी भांति ऊध्वं स्रोतों का-सर्ग-छठा-है

जो-देवत सर्ग के.नाम से कहा जाया करता है ।५६।

तत्रोद्ध.वंसोत्तसां सर्गः सप्तमः स तु मानुषः)

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