अध्याय १९ ]
उसने यह पवित्र प्रश्न किया--' भगवन्! दुःखरूपी
* प्रतिपदा तिथि एवं अग्निकी महिमाका वर्णन +
डरे
राजा प्रजापालने पूछा-- भगवन्! आप सप्पूर्ण
संसार-सागरमें डूबते हुए मनुष्योंके मनमें यदि | धर्मोको भलीभाँति जानते हैं। मोक्षकी इच्छा
दुस्तर संसारके तरने (विजय पाने)-कौ इच्छा हो
तो उन्हें जो कार्य करना उचित हो, वह आप मुझ
शरणागतको बतानेकी कृपा करें ।'
महातपाजी बोले-- राजन्! संसाररूपी समुद्रे
डूबनेवाले मनुष्योंके लिये कर्तव्य यह है कि वे
पूजा, होम, दान, ध्यान एवं अनेक यज्ञ आदि
उपकरणरूपी दृढ़ नौकाका आश्रय लें। नाव
बनानेमें कीलोंकी आवश्यकता होती है। ये
उपर्युक्त पूजा आदि, जिनसे मोक्ष मिलना निर्विवाद
है, कीलका काम देती हैं। देवसमाजसे बड़ी
रस्सियोंकी आवश्यकता पूरी हो जाती है। अतः
अब तुम प्राण आदिके सहयोगसे त्रिलोके धररूपी
नौका तैयार कर लो। भगवान् नारायण ही
ब्रिलोकेश्वर हैं। उनकी कृपासे नरकमें नहीं जाना
पड़ता। राजन्! जो बड़भागीजन उन देवेश्वरको
भक्तिपूर्वक प्रणाम करते हैं, उनकी चिन्ताएँ शान्त
हो जाती हैं और वे उनके उस परम पदको पा
लेते हैं, जो कभी नष्ट नहीं होता।
करनेवाले पुरुषको सनातन श्रीहरिकी विभूतियोंका
किस प्रकार चिन्तन करना चाहिये ? इसे बतानेकी
कृपा करें।
मुनिवर महातपाने कहा--राजन्! तुम बड़े
विज्ञ पुरुष हो। सम्पूर्ण योगियोंके स्वामी श्रीविष्णु
स्त्रियों एवं पुरुषोंपर जिस प्रकार प्रसन होते हैं,
उसे सुनो। पितरोंके सहित सभी देवता तथा ब्राह्मणके
भीतर विचरनेवाले ब्रह्मा प्रभृति-ये सब-के-सब
श्रीविष्णुसे ही उत्पन्न हुए हैं-ऐसी वेदकी श्रुति
प्रसिद्ध है। अग्नि, अश्विनीकुमार,- गौरी, गजानन,
शेषनाग, कार्तिकेय, आदित्यगण, दुर्गासहित चौंसठ
मातृकाएँ, दस दिशाएँ, कुबेर, वायु, यम, रुद्र,
चन्द्रमा और पितृगण--इन सबकी उत्पत्तिमें जगत्प्रभु
श्रीहरिकी ही प्रधानता है। हिरण्यगर्भ श्रीहरिके
श्रीविग्रहमें इनका स्थान बना रहता है और बहाँसे
निकलकर ये चारों ओर पृथक्-पृथक् परिलक्षित
होते हैं, पर अहंता (मैं हूँ)-का अभिमान उनका
साथ नहीं छोड़ता। [अध्याय १७-१८]
प्रतिपदा तिथि एवं अग्निकी महिमाका वर्णन
महातपा बोले-- राजन्! प्रसङ्गवश भगवान्
विष्णुकी विभूतिका वर्णन कर दिया। अब
तिथियोंका माहात्म्य कहता हूँ, सुनो। जब ब्रह्माके
क्रोधसे अग्निका प्राकट्य हुआ तो उन्होंने ब्रह्माजीसे
कहा--'विभो! मेरे लिये तिथि निश्चय करनेकी
कृपा कीजिये, जिसमें पूजित होकर सम्पूर्ण
जगत्के समक्ष मैं प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकूँ।'
ब्रह्माजी बोले- परम श्रेष्ठ अग्निदेव ! देवताओं,
यक्षो ओर गन्धर्वोकि भी पूर्वं तुम सर्वप्रथम
प्रतिपदाको उत्पन्न हुए हो और तुम्हारे पश्चात् इन
सबका यहाँ प्राकट्य हुआ है। अतः प्रतिपद्
नामकी यह तिथि तुम्हारे लिये विहित होगी । इस
तिथिमें प्रजापतिकी मूर्पिभूत हविष्यसे जो तुममें
हवन करेगे, उन्हें सम्पूर्ण देवताओं ओर पितरोंकी
प्रसन्नता प्राप्त होगी। चार प्रकारके प्राणी-
अण्डज, पिण्डज, स्वेदज, उद्धिज्ज तथा देवता,
दानव, मानव, पशु एवं गन्धर्व--ये सभी तुममें
हवन करनेपर तृप्त हो सकते हैं। तुम्हारे प्रति
श्रद्धा रखनेवाला जो पुरुष प्रतिपदा तिथिके दिन
उपवास करेगा अथवा केवल दूधके आहारपर हो
रहेगा, उसके महान् फलका वर्णन सुनो-
'“छब्बीस चतुर्युगीतक वह स्वर्गलोकमें सम्मानपूर्वक