अध्याय १२ ) यपे और यमीका संवाद दे
यप्दुवाच यमी बोली --- जो भाई अपनी योग्य बष्िनको उसके
चन्या चाहनेपर भौ न चाहे, जो बहिनका पति न हो सके,
न भराता भगिनीं योग्यां कामयन्तीं च कामयेत्। उसके भाई होनेसे क्या लाभ? जो स्वामीकौ इच्छा
भ्रातृभूतेन किं तस्य स्वसुर्यो न पतिर्भवेत्॥ १०
अभूत इव स ज्ञेयो न तु भूतः कथज्ञन।
अनाधां नाथमिच्छन्तीं स्वसारं यो न नाधति॥ ११
काङ्क्षन्तं भरातरं नाथं भर्तारं यस्तु नेच्छति ।
भ्रातेति नोच्यते लोके स पुमान् मुनिसत्तमः ॥ १२
स्याद्रान्यतनया तस्य भार्या भवति किं तया।
ईक्षतस्तु स्वसा धातुः कामेन परिदहाते ॥ ९३
यत्कार्यमहमिच्छामि त्वमेबेच्छ तदेव हि।
अन्यधाहं मरिष्यामि त्वामिच्छन्ती विचेतना ॥ १४
कामदुःस्वमसहयं नु भ्रातः किं त्वं न चेच्छसि।
कामाग्निना भृशं तप्ता प्रलीयाप्यद्ग मा चिरम् ॥ १५
कामार्तायाः स्वया; कान्त वशगो भव मा चिरम्।
स्वेन कायेन मे कायं संयोजयितुमरहंसि ॥ १६॥
यप्र उवाच
किपिदं लोकविद्विष्टं धमं भगिनि भापसे।
अकार्यपिह कः कुर्यात् पुमान् भद्रे सुचेतनः ॥ १७
न ते संयोजयिष्यामि कायं कायेन भामिनि।
न भ्राता मदनाताँया: स्वसुः कां प्रयच्छति ॥ १८
महापातकमित्याहुः स्वसारं योऽधिगच्छति ।
पशूनामेव धर्म: स्यात् तिर्यग्योनिवतां शुभे ॥ १९
यम्यं
एकस्थाने यथा पूर्व संयोगो नौ न दुष्यति।
पातृगर्भ तथैवायं संयोगो नौ न दुष्यति॥ २०
किं भ्रातरप्यनाथां त्वं मा नेच्छसि शोभनम्।
स्वसारं निऋती रश्च: संगच्छति च नित्यशः ॥ २१
रखनेवाली अपनी कुमारी बहिनका स्यामौ नहों अनता,
डस भ्राताको ऐसा समझना चाहिये कि वह पैदा ही
नहीं हुआ। किसौ तरह भी उसका उत्पन्न होना नहीं
माना जा सकता। भैया! यदि बहिन अपने भाईकों हो
अपना स्वामी--अपना पति बनाना चाहती है, इस दशामें
जो बहिनको नहीं चाहता, वह पुरुप मुनिशिरोमणि हो
क्यों न हो, इस संसारमें भ्राता नहों कट्टा जा सकता।
यदि किसी दूसरेकी हो कन्या उसकी पत्नौ हौ तो भी
उससे क्या लाभ, यदि उस भारईकौ अपनी बहिन उसके
देखते-देखते कामसे दग्ध हो रहौ है। मेरे होश, इस
समय अपने ठिकाने नहो हैं। में इस समय जो काम
करना चाहती हूं, तुम भौ उसीको इच्छा करो; नहीं तो
मैं तुम्हारी ही चाह लेकर प्राण त्याग देगी, मर जाऊँगी।
भाई ! कारको चेदता अस होती है। तुम मुझे क्यों
नहीं चाहते ? प्यारे भैया! कामाग्रिसे अत्यन्त सतप होकर
सैं मरी जा रही हूं; अब देर न करो। कान्त। मैं कामपीडिता
सजी हूँ। तुम शौघ्र ही मेरे अधीन हो जाओ। अपने
शरीरसे मेरे शरीरका संयोग होने दो ॥ १०--१६॥
यम बोले--बहिन! सारा संसार जिसकी निन्दा
करता है, उसी इस पापकर्मकौ ट् धर्म कैसे यता रही
है? भद्दे! भला कौन सचेत पुरुष यह न करने योग्य पाप
कर्म कर सकता है? भामिनि! मैं अपने शरौरस तुम्हारे
शरीरका संयोग न होने दूँगा। कोई भी भाई अपनी काम
पोड़िता ब्रहिनकी इच्छा नहँ पूरौ कर सकता। जो बहिनक
साध सुमागम करता है, उसके इस कंको महापातक
बताया गया है--शुभे ! यह तिर्यग् योनि पड़े हुए पशुओंका
धर्म है-देवता या मनुष्यका नहीं॥ १७--१९॥
यमी जोली--भैया! हम दोनों जुड़वी संतानें हैं
और माताके गर्भमें एक साथ रहे हैं। पहले माताके गर्भम
एक हो स्थानपर हम दोनोंका जौ संयोग हुआ था, वह
जैसे दूषित नहों माना गया, उसो प्रकार यह संयोग भी
दूषित नहीं हो सफता। भाई ¦ अभोतक मुझे पिकी प्रापि
नहीं हुई है। हुम मेरा भला करना क्यो नहीं चाहते?
' निरति ' नामक राक्षस तो अपनी बहितके साथ नित्य
हो समागम करता है ॥ २० २१॥