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६] * [ मत्स्य पुराण

६४-मनुमत्स्य संकाद वणेन

पश्यरूपमभूदेतत्‌ कथं हेममयं जगत्‌ ।१.

कथञ्च वैष्णवी सृष्टि: पञ्ममध्येऽभवत्पुरा ।२

श्र त्वा च नारसिहंमाहात्म्यं रविनन्दनः ।

चिस्मयोत्फुल्लनयनः पुनः प्रयच्छ केशवम्‌ ।३

कथं पाश्यं महाकल्पे तव पद्ममयं जगत्‌ ।

जलाणेवगतस्येह नाभौ जातं जनादन ! ।४

प्रभावात्‌ पद्मनाभस्य स्वपतः सागराम्भसि ।

पुष्करे च कथं भूता देवाः सर्षिगणा:पुरा ।*

एनमाख्याहि निखिलं योगं योगविदाम्पते ! ।

श्ृण्वतस्तस्य मे कीतिनं तृप्तिरुपजायते ।६

कियता चैव कालेन शेते वै पुरुषोत्तमः ।

कियन्तं वा स्वपिति च कोऽस्य.कालस्य सम्भवः ।७

ऋषिगण ने कहा--हमारी यह प्रार्थना है कि सृष्टि रचना को

कुछ और अधिक विस्तार के साथ आप वर्णन कीजिए ।१-२। यह

सम्पूर्ण जगत्‌ किस प्रकार से हेमभय पदुम के स्वरूप वाला हो गया था

ओर पहिले उस पदम के मध्य में यह वैष्णबी सृष्टि किस प्रकार से हुई

थी ।३। महा महि श्री सूतजी ने कहा--रविनन्दन ने प्रभ. नरसिह

के माह।त्म्य का श्रवण करके विस्मयसे उत्फुल्ल नेत्रो वाला होक पुनः

केशव प्रभ. से पूछा था ।४। मनु ने कहा- हे जनार्दन ! पाद्म महा

कल्प में जिस समय में आप जलार्णेव में लीन होकर स्थित धे तब यह

पद्ममय जगत्‌ आपकी नाभि से किस प्रकार उत्पन्न हुआ था ? सागर

के जल में शयन करने वाले पद्मनाभ के प्रभाव से उस पुष्कर में पहिले

देव--ऋषिगण और समस्त भूत किस रीति से समुत्पन्न हुए थे ।५।

है योग के वेत्ताओंके स्वामिन्‌ ! इस सम्पूर्ण योग का वर्णन कृषा करके

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