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* प्लक्ष आदि छः दीपो वर्णन और भूमिका माज * द

किसीकी मृत्यु नहीं होती । मानसिक चिन्तां तथा | पर्वततोकि नाम सुनो । कुमुद, उन्नत, वलाहकः, द्रोण,

व्याधियाँ भी नहीं सतातीं । वहाँ हर समय सुख | कङ्क, महिष तथा पर्वतश्रेष्ठ ककुद्यानू-ये सात

मिलता है। प्लक्षद्रौपके वर्षो सात ही ऐसी | पर्वत हैं। इनमें द्रोणपर्वतपर कितनी ही महौषश्रियाँ

नदियाँ है, जो समुद्रमें जा मिलती है । अनुतप्ता, | हैं। नदियोंके नाम इस प्रकार हैं-- श्रोणी, तोया,

शिखा, विप्राशा, त्रिदिवा, क्रमु, अमृता तथा | वितृष्णा, चन्द्रा, शुक्रा, विमोचनी तथा निवृत्ति।

सुकृता-ये सात वहाँकौ नदियाँ ह । इस प्रकार | वहाँ श्वेत आदि सात वर्ष हैं, जिनमें चारों वर्णेकि

प्लक्षद्वीपके प्रधान-प्रधान पर्वतो ओर नदियोंका | लोग निबास करते है! शाल्मलद्वीपमें कपिल,

वर्णन किया गया। छोटी-छोटी नदियाँ और छेटे- | अरुण, पीत तथा कृष्ण वर्णके लोग होते हैं, जो

छोटे पहाड़ तो वहाँ हजारों हैं। उन वर्षोंमें युगोंकी | क्रमशः ब्राह्मण, कषत्रिय, वैश्य और शुद्र माने जाते

व्यवस्था नहीं है। वहाँ सदा हौ त्रेतायुगके समान | हैं। ये सब लोग यज्ञपरायण हो सबके आत्मा,

समय रहता है। प्लक्षद्वीपसे लेकर शाकद्वीपतकके | अविनाशी एवं यज्ञमें स्थित भगवान्‌ विष्णुकी

लोग पाँच हजार वर्घोतक नीरोग जीवन व्यतीत | बायुरूपमें आराधना करते हैं। इस अत्यन्त मनोहर

करते हैं। उन द्वापोंमें वर्णाश्रम-विभागपूर्वक चार | ट्वीपमें देवताओंका सांनिध्य बना रहता है। वहाँ

प्रकारका धर्म है तथा वहाँ चार ही वर्ण हैं, शाल्मलि नामका महान्‌ वृक्ष है, जो उस द्वीपके

जिनके नाम इस प्रकार हैं--आर्यक, कुरु, विविश्व | नामकरणका कारण बना है। यह द्वीप अपने

तथा भावी ये क्रमशः ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा | समान विस्तारवाले सुराके समुद्रसे घिरा हुआ है

शूद्रकौ कोटिके हैं। उस द्वीपके मध्यभागमें प्लक्ष | | और वह सुराका समुद्र शाल्मलट्टीपसे दुगुने

(पाकड़) नामका बहुत विशाल वृक्ष है, जो | विस्तारवाले कुशद्वीपद्वारा सब ओरसे आवृत है।

जम्बूद्वीपमें स्थित जम्बू (जामुन) वृक्षके ही बराबर | कुशद्ठीपमें ज्योतिष्मान्‌ राजा हैं; अब उनके पुत्रोंके

है। उसीके नामपर उस द्वीपका प्लक्षद्वीप नाम | नाम बतलाये जाते हैं, सुनो-उद्धिद, वेणुमान्‌,

रखा गया है। प्लक्षद्वीपमें आर्यक आदि वर्णोंके सुरथ, रन्धन, धृति, प्रभाकर ओर कपिल। इन्हीकि

लोग जगत्लष्टा सर्वेश्वर भगवान्‌ श्रीहरिका चन्रमाके | नामोंपर बहाँके सात वर्ष प्रसिद्ध हैं। वहाँ मनुष्योंके

रूपमे यजन करते हैं। प्लक्षद्वीप अपने ही बराबर | साथ-साथ दैत्य, दानव, देवता, गन्धर्व, यक्ष ओर

विस्तारबाले मण्डलाकार इक्लुस्सके समुद्रसे घिरा | किंनर आदि भी निवास करते हैं। वहाँके मनुष्यों

हुआ है। अब शाल्मलद्रीपका वर्णन सुनो। भी चार ही वर्ण हैं, जो अपने-अपने कर्तव्यके

शाल्मलद्वीपके स्वामी वीर वपुष्मान्‌ हैं। उनके | पालनमें तत्पर रहते हैं। उन वर्णोंके नाम इस

सात पुत्र हैं और उन्हींके नामपर बहाँ सात वर्ष | प्रकार हैं-दमी, शुष्मी, स्नेह तथा मन्देह। ये

स्थित हैं। जिनके नाम इस प्रकार हैं--श्रेत, हरित, | क्रमशः ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्रक श्रेणीमें

जौमूत, रोहित, वैद्युत, मानस तथा सुप्रभ । इकषुरसका | बताये गये हैँ । वे शास्त्रोक्त कर्मोका टीक-ठीक

जो समुद्र बताया गया है, वह अपने दुगुने | पालन करते ओर अपने अधिकारके आरम्भक

विस्तारवाले शाल्मलद्वीपके द्वारा सब ओरसे घिरा | कर्मोका क्षय होनेके लिये कुशह्टीपमें ब्रह्मरूपी

हुआ है) वहाँ भी सात ही वर्षपर्वत हैं, जहाँ | भगवान्‌ जनार्दनका यजन करते है । विद्रुम, हेमशैल,

रत्ोंकी खाने है । नदियाँ भी सात ही हैं। पहले , द्युतिमान्‌. पुष्टिमान्‌, कुशेशय, हरि और मन्दरा्चल--ये

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