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किशेश्वस्संहिता *

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विधान करे । शनैश्चर अपमृत्युक्ता निध्रारण

करनेवाला है। उस दिन श्रुद्धिमान्‌ युरुष रत्र

आदिकी पूजा करे । तिलूके होमसे, दाने

देवताओंको संतुष्ट करके ग्राह्मणोंको तित्क-

निशित अक्तं भोजन कराये। जो इस तरह

देखताओंकी पूजा करेगा, वह आरोग्य

आदि फलका भागी होगा।

स्तरानं, दान, जप, होम शथा ब्राह्मणतर्पण

आदिमे एबं रि आदि वारोमे त्रिदोष तिथि

और नक्षत्रोंका योग प्राप्त दोनेपर विभिन्न

देखताओंके. युजनमें. सर्वज्ञ जगिदीश्चर

भगवान्‌ शिव ही उन-उन देखताओंके रूपमें

पूजित हो संख छोगॉंको आरोग्य आदि फल

चदान करते हैं। देका, काल, पात्र, द्रव्य,

श्रद्धा एवं लोकके अनुसार उनके तारतप्य

क्रमका ध्यान रखते महादेवजी

आराधना करनेवाले आरोग्य

आदि फल देते है । शुभ (माज़लिक कर्म)

के आरण्ममें और अशुभ (अन्‍्ल्येप्टि आदि

साथ होना चाहिये। (यहाँ ब्राह्मण शब्द

क्षत्रिय और चैड्यका भी उपल्कक्षण टै \)

आहिये। तिर्धन मनुष्य तपस्या (तरते

आदिक कष्ट-सहन) द्वारा और धनी धनके

ङ्स देवशाओऑकी आराधना करे। यह

खरवार श्रद्धापूर्वकं इस तरहके धर्मका

अनुश्ान करता है और वारंवार

पुण्यल्वेकॉमें नाया प्रकारके फल भोगकर

पुनः इस पृथ्वीपर जन्म पहा करता ई ।

धनवान्‌ पुरुष सदा भोग सिक्किके लिये

मार्गमें चृक्षादि लूगाकर लोगोंके लिये

छायाकी व्यवस्था करे! जतकाय { कअ,

बावल्ही और पोखरे) यनवाये। केद्‌-

धर्मका संग्रह करता रहे। धमीको यह सब्र

कार्श सदां ही करते रहना चाहिये।

समयानुसार पुण्यक्रमॉफके. परिपाकसे

अन्तःकरण शुद्ध होनेपर ज्ञानकी सिद्धि

हो जाती है। द्विजो ! जो इस अध्यायको

सुनता, पढ़ता अथया सुननेकी व्यवस्था

करता है, उसे देवबज़्ञका फल प्राप्न

होता है। (अध्याय ९६)

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