अध्याय ९६ ]
पहुँचे, जहाँ भगवती रौद्री तपस्यामें संलग्न होकर
स्थित थीं। देवीने देवताओंको देखकर उच्च
स्वरसे कहा-' भय मत करो।'
देवी बोलीं - देवतागण ! आपलोग इस प्रकार
भीत एवं व्याकुल क्यों हैं? यह मुझे तुरंत
॥
देवताओंने कहा--' परमेश्वरि ! इधर देखिये!
यह 'रुरु' नामकं महान् पराक्रमी दैत्यराज चला
आ रहा है । इससे हम सभी देवता त्रस्त हो गये
हैं, आप हमारी रक्षा कीजिये।' यह देखकर
देवी अद्रृहासके साथ हँस पड़ीं। देवौके हँसते
ही उनके मुखसे बहुत-सी अन्य देवियाँ प्रकट
हो गयीं, जिनसे मानो सारा विश्च भर गया।
वे विकृत रूप एवं अस्त्र-शस्त्रसे सुसज्जित थीं
ओर अपने हाथोंमें पाश, अङ्कुश, त्रिशूल तथा
धनुष धारण किये हुए थीं। वे सभी देबियाँ
करोड़ोंकी संख्यामें थीं तथा भगवती तामसीको
चारों ओरसे घेरकर खड़ी हो गयीं। वे सब
दानवोंके साथ युद्ध करने लगीं और तत्काल
असुरोंके सभी सैनिकोंका क्षणभरमें सफाया कर
दिया। देवता अब पुनः लड़ने लग गये थे।
कालरात्रिको सेना तथा देवताओंकों सेना अब
नयी शक्तिसे सम्पन्न होकर दैत्योंसे लड़ने लगी
और उन सभीने समस्त दानवोंके सैनिकोंको
यमलोक भेज दिया। बस, अब उस महान्
युद्धभूमिमें केवल महादैत्य 'रुरु' ही बच रहा था।
व्ह बड़ा मायावी था। अब उसने 'रौरवी'
नामक भयंकर मायाकी रचना को, जिससे सम्पूर्ण
देवता मोहित होकर नींदमें सो गये। अन्ते
देवीने उस युद्ध-स्थलपर त्रिशुलसे दानवको मार
डाला। शुभलोचने! देवोके द्वारा आहत हो
जानेपर ' रुरु"-दैत्यके चर्म (धड़) और मुण्ड--
अलग-अलग हो गये। दानवराज “रुरु'के चर्म
और मुण्ड जिस समय पृथक् हुए, उसी क्षण
देवीने उन्हें उठा लिया, अतः वे 'चामुण्डा'
+ ब्रिशक्तिमाहात्प्यमें रौद्रीव़त *
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कहलाने लगीं । वे हौ भगवती महारौद्री, परमेश्वरी,
संहारिणौ और “कालरात्रि' कही जाती हैं।
उनकी अनुचरौ देवियाँ करोड़ोंकी संख्यामें बहुत-
सी हैं। युद्धके अन्तमें उन अनुगामिनी देवियोंने
इन महान् ऐश्वर्यशशालिनी देवीको--सब ओरसे घेर
लिया और वे भगवती रौद्रीसे कहने लगीं--'हम
भूखसे घबड़ा गयी हैं। कल्याणस्वरूपिणि देवि!
आप हमें भोजन देनेकी कृपा कीजिये।'
इस प्रकार उन देवियोंके प्रार्थना करनेपर जब
रौद्री देवीके ध्यानमें कोई बात न आयी, तब
उन्होने देवाधिदेव पशुपति भगवान् रुद्रका स्मरण
क्रिया। उनके ध्यान करते हौ पिनाकपाणि परमात्मा
रुद्र वहाँ प्रकट हो गवे। वे बोले--' देवि ! कहो!
तुम्हारा क्या कार्य है?'
देवीने कहा- देवेश! आप इन उपस्थित
देवि्योके लिये भोजनकौ कुछ सामग्री देनेकी
कृपा करें; अन्यथा ये बलपूर्वक मुझे ही खा
जायँगी।
रुद्रने कहा--देवेश्वरि! महाप्रभे! इनके
खानेयोग्य वस्तु वह है--जो गर्भवती स्त्री दूसरी
स्त्रीके पहने हुए वस्त्रकों पहनकर अथवा विशेष
करके दूसरे पुरुषका स्पर्शकर पाकका निर्माण
करती है, वह इन देवियोंके लिये भोजनक
सामग्री है। अज्ञानी व्यक्तियोंद्रारा दिया हुआ
बलिभाग भी ये देवियाँ ग्रहण करें और उसे
पाकर सौ वर्षोके लिये सर्वथा तृप्त हो जायें
अन्य कुछ देवियाँ प्रसव-गृहमें छिद्रका अन्वेषण
करें। वहाँ लोग उनकी पूजा करेंगे। देवेशि! उस
स्थानपर उनका निवास होगा। गृह, क्षेत्र, तडागों,
वापियों और उद्यानोंमें जाकर निरन्तर रोती हुई
जो स्त्रियां मनमारे बैठी रहेंगी, उनके शरीरमें
प्रवेशकर कुछ देवियाँ तृप्ति लाभ कर सकेंगी।
फिर भगवान् शंकरने इधर जब रुरुकों मरा
हुआ देखा, तब वे देवोकी इस प्रकार स्तुति
करने लगे।